Budget 2023: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने लोगों को बेहतर हेल्थ सर्विसेज उपलब्ध कराने को अपनी प्राथमिकता में रखा है। सरकार ने 2017 में नेशनल हेल्थ पॉलिसी के तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च को 2025 तक बढ़ाकर GDP के 2.5 फीसदी तक करने का वादा किया था। लेकिन, हेल्थ पर सरकारी खर्च अब तक GDP के सिर्फ 1 फीसदी तक पहुंचा है। सरकार ने फाइनेंशियल ईयर 2022-23 में स्वास्थ्य पर होने वाले आवंटन को सिर्फ 16 फीसदी बढ़ाया था। उसमें भी यह आवंटन स्वास्थ्य मंत्रालय और परंपरागत इलाज पद्धति के लिए बनाए गए आयुष मंत्रालय के लिए संयुक्त रूप से किया गया था। यह आवंटन सिर्फ 89300 करोड़ रुपये का था।
बजट में एक फ्लैगशिप हेल्थ स्कीम का हो सकता है ऐलान
एक्सपर्ट्स का मानना है कि वित्तीय घाटे से निपटने के दबाव की वजह से यूनियन बजट 2023 में फाइनेंशियल ईयर 2023-24 के लिए हेल्थ सेक्टर के आवंटन में किसी बड़ी बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं है। लेकिन सरकार 2024 के आम चुनावों को ध्यान में रखते हुए एक फ्लैगशिप हेल्थ स्कीम का ऐलान कर सकती है।
हेल्थ के लिए आवंटन बढ़ाने की जरूरत
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी से जुड़े अर्थशास्त्री प्रीतम दत्ता का कहना है कि 11वीं पंचवर्षीय योजना में स्वास्थ्य पर सरकार की तरफ से किए जाने वाले खर्च को 2012 तक जीडीपी के कम से 2 फीसदी तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया था। 15वें वित्त आयोग ने भी इस बात की सिफारिश की थी कि राज्य सरकारों द्वारा स्वास्थ्य पर किया जाने वाला खर्च उनके बजट का 8 फीसदी से ज्यादा होना चाहिए। इसके अलावा राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों की तरफ से स्वास्थ्य पर किए जाने वाला खर्च 2024-25 तक उनके बजट का ढाई फीसदी होना चाहिए। लेकिन, हेल्थ पर वास्तविक खर्च अभी इससे काफी कम है।
स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च में केंद्र सरकार की 34% हिस्सेदारी
स्वास्थ्य पर किए जाने वाले खर्च में सिर्फ 34 फीसदी हिस्सेदारी केंद्र सरकार की है। राज्य सरकारों द्वारा पब्लिक हेल्थ में किए जाने वाले खर्च का योगदान 66 फीसदी है। दत्ता का कहना है कि राज्य और केंद्र सरकारों को अपने स्वास्थ्य बजट में कई गुना बढ़ोतरी करने की जरूरत है। देश का पब्लिक हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चरकाफी जर्जर स्थिति में है।
उन्होंने कहा कि 15वें वित्त आयोग ने भी इस बात का इशारा किया था कि भारत के लोग अपनी कम या भुगतान क्षमता के बावजूद धीरे-धीरे अपने स्वास्थ्य जरूरतों के लिए प्राइवेट सेक्टर को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं। ऐसे में भारत को अपने सावर्जनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत बनाने की जरूरत है।