यूनियन बजट (Union Budget) ने लंबा सफर तय किया है। आजादी के बाद देश का पहला बजट आरके शणमुगम चेट्टी (RK Shanmukham Chetty ) ने 26 नवंबर, 1947 को पेश किया था। तब से बजट में नई चीजें शामिल होती रही हैं। कुछ पुरानी चीजें हटती रही हैं। ऐसी ही एक शुरुआत 1957-58 के बजट में हुई थी। तब सरकार ने वेल्थ टैक्स लगाने का ऐलान किया था। यह करीब 6 दशक तक बना रहा। 28 फरवरी, 2015 को पेश बजट में वेल्थ टैक्स हटाने का ऐलान किया गया था। तब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि 1 अप्रैल, 2015 से वेल्थ टैक्स खत्म हो जाएगा। हालांकि, सरकार ने अमीर लोगों पर लगने वाला सरचार्ज बढ़ा दिया था। किस पर लगता था वेल्थ टैक्स? वेल्थ टैक्स कितना होता था? वित्त वर्ष 2013-14 में वेल्थ टैक्स से सरकार को कितने पैसे मिले थे? आइए इन सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं।
इंडिविजुअल, हिंदू अविभाजित परिवार और कंपनी वेल्थ टैक्स के दायरे में आते थे। 30 लाख रुपये से ज्यादा वैल्यू के नेट वेल्थ पर यह टैक्स चुकाना पड़ता था। अचल सपंत्ति, व्हीकल्स, ज्वेलरी, बुलियन, बोट, एयरक्रॉफ्ट इसके दायरे में आते थे। म्यूचुअल फंड्स, फिक्स्ड डिपॉजिट्स, ईटीएफ और सेविंग्स बैंक अकाउंट्स वेल्थ टैक्स के दायरे से बाहर थे। 500 वर्ग मीटर तक का प्लॉट भी वेल्थ टैक्स के दायरे से बाहर था। खुद के रहने के लिए इस्तेमाल होने वाले 500 वर्ग मीटर तक के घर पर भी वेल्थ टैक्स नहीं लगता था। वेल्थ टैक्स की दर एसेट्स की वैल्यू का 1 फीसदी थी। फाइनेंशियल ईयर 2013-14 में वेल्थ टैक्स से सरकार को 1,008 करोड़ रुपये मिले थे। जेटली ने कहा था कि वेल्थ टैक्स कलेक्शन पर आने वाली कॉस्ट बहुत ज्यादा है। इसलिए इसे खत्म करने का फैसला किया गया है।
1959-60 के केंद्रीय बजट में अकाउंटिंग के तरीके में बदलाव
1959-60 के केंद्रीय बजट में भी एक बड़ा ऐलान किया गया था। यह बदलाव अकाउंटिंग से जुड़ा था। तब सरकार ने बजट अनुमान (Budget Estimates) को दो हिस्सों में बांट दिया था। ये थे-प्लान और नॉन प्लान एक्सपेंडिचर। हर साल यानी बार-बार होने वाले खर्च को नॉन-प्लान एक्सपेंडिचर के तहत रखा गया था, जबकि योजना के तहत किए जाने वाले खर्च को प्लान एक्सपेंडिचर के तहत रखा गया। यह व्यवस्था तब से जारी है। इंटरेस्ट पेमेंट, सब्सिडी, सैलरी, राज्य सरकारों को ग्रांट, पेंशन, पुलिस आदि पर होने वाले खर्च को नॉन-प्लान एक्सपेंडिचर में रखा जाता है। विकास की योजनाओं पर होने वाले खर्च को प्लान एक्सपेंडिचर के तहत रखा जाता है।
1965-66 के बजट में काले धन पर अंकुश लगाने के लिए वॉलेंटरी डिसक्लोजर स्कीम
सरकार ने 1965-66 के बजट में काले धन पर अंकुश लगाने के लिए बड़ा कदम उठाया था। सरकार ने पहली बार काले धन को घोषित करने के लिए वॉलेंटरी डिसक्लोजर स्कीम की शुरुआत की थी। इसका मकसद लोगों को काले धन को घोषित करने का एक मौका देना था। लोग अपने उस पैसे को आरबीआई के पास जमा कर सकते थे, जिस पर उन्होंने टैक्स नहीं दिया था। सरकार का मानना था कि इससे सिस्टम में काले धन का इस्तेमाल घटेगा। उसके बाद से सरकार काले धन को घोषित करने के लिए कई वॉलेंटरी डिसक्लोजर स्कीम का ऐलान कर चुकी है।