H-1B Visa Fee Hike: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 20 सितंबर को H-1B वीजा की फीस को कई गुना बढ़ाकर 1 लाख डॉलर करने का ऐलान किया। हालांकि इस फैसले से भारत के आईटी सेक्टर पर कोई बहुत बड़ा असर पड़ने की उम्मीद नहीं है। इसकी वजह यह है कि भारतीय आईटी कंपनियां पिछले काफी समय से H-1B वीजा पर लगातार अपनी निर्भरता घटा रही हैं और अमेरिकी बाजार में लोकल हायरिंग को प्राथमिकता दे रही हैं।
टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), इंफोसिस (Infosys), एचसीएलटेक (HCLTech), विप्रो (Wipro) और टेक महिंद्रा (Tech Mahindra) जैसी कंपनियों की नॉर्थ अमेरिका में कर्मचारी तैनात करने के लिए H-1B वीजा पर निर्भरता अब 20 फीसदी से लेकर 50 फीसदी तक ही है।
H-1B वीजा अमेरिका में काम करने वाली कंपनियों को STEM और IT जैसे सेक्टर्स में विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करने की इजाजत देता है। हालांकि भारत की टॉप 7 आईटी कंपनियों के लिए 2015 से 2023 के बीच स्वीकृत H-1B आवेदनों की संख्या में 56 फीसदी की गिरावट आई और यह घटकर 6,700 रह गई। Infosys और TCS जैसी कंपनियां अब अमेरिका में अपने 50% से अधिक कर्मचारी लोकल स्तर पर हायर कर रही है, जिससे वीजा पर उनकी निर्भरता घटी है।
TCS अपनी लगभग आधी कमाई नॉर्थ अमेरिका से करती है और इस समय वह अपने 50 प्रतिशत से अधिक अमेरिकी कर्मचारियों को स्थानीय स्तर पर हायर कर रही है। TCS के सीईओ के कृथिवासन ने इस साल जनवरी में में मनीकंट्रोल को बताया था हर साल औसतन उन्हें 3,000 से 4,000 H-1B वीजा मिलते हैं। उन्होंने कहा, "यह कुल मिलाकर एक छोटी संख्या है। अगर H-1B वीजा की उपलब्धता में कमी आती है, तो हम इसकी लोकल हायरिंग कर भरपाई कर सकते हैं या काम को भारत शिफ्ट कर सकते हैं।"
इसी तरह Infosys ने भी अपने अमेरिकी कर्मचारियों में 60 फीसदी से अधिक लोकल हायरिंग की हैं। कंपनी के CFO जयेश संगराजका ने बताया कि उनके ऑन-साइट H-1B कर्मचारियों का अनुपात वित्त वर्ष 2025 में घटकर 24 फीसदी रह गया है, जो पहले लगभग 30 फीसदी था।
HCL Tech और Wipro की H-1B पर सबसे कम निर्भरता है। दोनों कंपनियों के करीब 80 फीसदी अमेरिकी कर्मचारी स्थानीय हैं। HCL Tech के चीफ पीपल ऑफिसर रामचंद्रन सुंदरराजन के मुताबिक, कंपनी हर साल अधिकतम 500 से 1,000 H-1B वीदा ही इस्तेमाल करती है। वहीं विप्रो के सीईओ श्रीनिवास पल्लिया ने जनवरी में कहा था कि कंपनी के पास H-1B का पर्याप्त स्टॉक है और अगर जरूरत पड़ी तो वह अमेरिकी मांग को पूरा कर सकती है।
टेक महिंद्रा की स्थिति भी लगभग यही है। कंपनी का केवल 30 फीसदी अमेरिकी वर्कफोर्स ही H-1B वीजा पर है। कंपनी के सीईओ मोहित जोशी ने बताया कि कंपनी ने बड़े पैमाने पर स्थानीय टीम बनाई है और नजदीकी डिलीवरी सेंटर्स विकसित किए हैं, जिससे H-1B वीजा पर निर्भरता घटकर 30 फीसदी से नीचे आ गई है।
भारतीय आईटी कंपनियों ने H-1B वीजा पर भले ही अपनी निर्भरता कम कर ली है, लेकिन H-1B की मांग अब भी मजबूत बनी हुई है। अमेरिकी इमिग्रेशन एजेंसी USCIS के आंकड़ों के अनुसार, साल 2024 में H-1B वीजा के आवेदनों की संख्या में 3.1 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। वहीं मंजूर होने वाले आवेदनों की संख्या में 4 फीसदी की बढ़ोतरी हुई, जबकि रिजेक्शन दर में 32.5 फीसदी की गिरावट देखी गई। अप्रूवल की दर बढ़कर 98.4 फीसदी तक पहुंच गई, जो 2021 के बाद सबसे ऊंचा स्तर है।
स्टाफिंग फर्म एक्सफीनो के कोफाउंडर कमल करंत का कहना है कि डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्लाउड कंप्यूटिंग और साइबर सिक्योरिटी जैसे क्षेत्रों में बढ़ती मांग और अमेरिका में STEM स्किल की कमी ने H-1B वीजा की मांग को मजबूत बनाए रखा है। टीमलीज डिजिटल के बिजनेस हेड कृष्णा विज ने भी यही मानना कि आईटी सेक्टर में चल रहे ग्लोबल ट्रेंड इस मांग को आगे और बढ़ाएंगे।
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