IMf ने कहा है कि ग्लोबल इकोनॉमी (Global Economy) अनिश्चितता की तरफ बढ़ रही है। उसने ग्लोबल इकोनॉमी में एक-तिहाई हिस्सेदारी रखने वाले देशों की इकोनॉमी में इस साल या अगले साल कम से कम लगातार दो तिमाही गिरावट (Contraction) आने की आशंका भी जताई है। इससे यह संकेत मिलता है कि ग्लोबल इकोनॉमी के लिए आने वाला समय अच्छा नहीं है।
IMF की चीफ क्रिस्टलिना जार्जीवा (Kristalina Georgieva) ने कहा है कि ग्लोबल इकोनॉमी के बारे में अब तक अनुमान लगाना मुमकिन था। लेकिन अब यह ऐसी दिशा में बढ़ रही है, जिसमें इसके बारे में अनुमान लगाना मुश्किल होगा। उन्होंने गुरुवार को ग्लोबल इकोनॉमी के बारे में यह अनुमान जताया।
World Bank और International Monetary Fund (IMF) की सालाना बैठक से पहले जार्जीवा ने कहा कि अगले हफ्ते वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिलीज होने वाला है। इसमें ग्लोबल इकोनॉमी की ग्रोथ के अनुमान में कमी देखने को मिल सकती है। उन्होंने कहा कि हम पहले ही ग्रोथ के अनुमान को तीन बार घटा चुके हैं। इसे 2022 के लिए घटाकर सिर्फ 3.2 फीसदी और 2023 के लिए 2.9 फीसदी कर दिया गया है।
जार्जीवा ने कहा कि अगले हफ्ते आने वाले वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक में हम अगले साल की ग्रोथ के अनुमान में और कमी करेंगे। हम बताएंगे कि मंदी का रिस्क बढ़ रहा है। हमारा मानना है कि ग्लोबल इकोनॉमी में एक तिहाई हिस्सेदारी रखने वाले देशों की इकोनॉमी में इस साल या अगले साल कम से कम लगातार दो तिमाही तक गिरावट देखने को मिल सकती है।
IMF की चीफ ने कहा कि ग्रोथ पॉजिटिव होने पर भी हमें मंदी जैसी हालत दिखेगी। इसकी वजह यह यह है कि रियल इनकम घट रही है और कीमतें बढ़ रही हैं। कुल मिलाकर हमें अब से लेकर 2026 तक ग्लोबल आउटपुट (वैश्विक उत्पादन) में करीब 4 लाख करोड़ डॉलर की कमी आने का अनुमान है। यह जर्मनी इकोनॉमी के साइज के बराबर है। इससे ग्लोबल इकोनॉमी को बड़ा झटका लगेगा।
उन्होंने कहा कि रूस-यूक्रेन वॉर और कोरोना की महामारी के असर से बहुत ज्यादा अनिश्चितितता की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में हमें बड़े आर्थिक झटके लग सकते हैं। फाइनेंशियल स्टैबिलिटी को लेकर रिस्क बढ़ रहा है। एसेट्स की कीमतों में गिरावट आ रही है। इसके साथ हाई सॉवरेन डेट और लिक्विडिटी को लेकर चिंता फाइनेंशियल मार्केट पर असर डाल सकते हैं।
आईएमएफ चीफ ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग, लो इंटरेस्ट रेट्स, लो इनफ्लेशन... की जगह अब हमें अनिश्चितता, ज्यादा आर्थिक उतार-चढ़ाव, जियोपॉलिटकल टकराव और बार-बार प्राकृतिक आपदाएं दिख रही है। इससे किसी भी देश की इकोनॉमी पटरी से उतर सकती है।