भारत सरकार ने कुछ हफ्ते पहले अचानक चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसके चलते कई कार्गो पिछले एक पखवाड़े से भारतीय बंदरगाहों पर फंसे हैं। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने इंडस्ट्री के अधिकारियों के हवाले से बताया कि भारतीय बंदरगाहों पर कम से कम 20 जहाज करीब 6 लाख टन चावल के लोड होने का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि समय से चावल नहीं लोड हो पाने के कारण ये जहाज नियत समय पर बंदरगाहों को खाली नहीं कर पाए, ऐसे में अब इन्हें मजबूरन विलंब शुल्क देना पड़ रहा है।
भारत सरकार ने 8 सितंबर को टूटे चावलों के एक्सपोर्ट को बैन कर दिया और विभिन्न किस्मों के चावल के एक्सपोर्ट पर 20 फीसदी शुल्क लगा दिया। भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल एक्सपोर्टर है। हालांकि इस साल मॉनसून के दौरान सामान्य से कम बारिश होने के कारण धान का रकबा घटा है। ऐसे में कीमतों को काबू में रखने और घरेलू मार्केट में चावल की पर्याप्त सप्लाई सुनिश्चित रखने के लिए सरकार को एक्सपोर्ट पर अंकुश लगाना पड़ा।
द राइस एक्सपोर्ट्स एसोसिएशन (TERA) के प्रेसिडेंट बी वी कृष्णा ने बताया कि सरकार के इस अचानक उठाए कदम से वे कार्गो (जहाज में लदने वाला माल) फंस गए, जो इस ऐलान से पहले ही बंदरगाहों के लिए निकल गए थे या बंदरगाहों पर पहुंच गए थे। उन्होंने कहा, "हमने सरकार से आग्रह किया है कि वे हमें इन कार्गो पर नियमो सें छूट दें क्योंकि हमें इसकी वजह से भारी विलंब शुल्क चुकाना पड़ रहा है।"
उन्होंने बताया कि वेसल्स में मौजूद 6 लाख टन के चावल के अलावा, बंदरगाहों के वेरयहाउसों और कंटेनर फ्रेट स्टेशंस पर भी करीब 4 लाख अतिरिक्त चावल फंसा हुआ है। जबकि हमारे पास इन चावलों के कॉन्ट्रैक्ट्स को लेकर सरकार के ऐलान से पहले के लेटर ऑफ क्रेडिट (LCs) मौजूद है।
डीलर्स ने बताया कि टूटे चावल के शिपमेंट्स बैन की वजह से फंसे हुए है, जबकि सफेद चावल के शिपमेंट्स इसलिए फंसे हुए हैं कि बायर्स और सेलर्स जो कीमत तय हुई थी, उसके ऊपर 20 फीसदी ड्यूटी देने को राजी नहीं हैं।
नई दिल्ली स्थित एक डीलर ने बताया, "जब इन चावल को लेकर कॉन्ट्रैक्ट साइन किए गए, तब एक्सपोर्ट्स पर किसी तरह का टैक्स नहीं था। चूंकि अब एक्सपोर्ट पर टैक्स लग रहा है, ऐसे में विवाद है कि टैक्स लगने से जो कीमत बढ़ी है उस बढ़ी हुई कीमत या टैक्स के पैसे का भुगतान कौन करेगा।"