पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी (Hardeep Singh Puri) का कहना है कि कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से दुनिया के कुछ हिस्सों में 'संगठित उपद्रव' और 'बर्बादी' देखने को मिल सकती है। उनका कहना था कि कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के कारण पिछले 18 महीनो में दुनिया भर में तकरीबन 10 करोड़ लोग भीषण गरीबी झेलने को मजबूर हैं।
ऑयल मार्केट्स में सप्लाई सीमित होने की वजह से हाल के महीनों में कच्चे तेल की कीमतें 90 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई हैं। सऊदी अरब और रूस समेत दुनिया के प्रमुख तेल उत्पादक देशों ने कच्चे तेल की सप्लाई में कटौती करने का फैसला किया है, ताकि कीमतों को सहारा मिल सके। पेट्रोलियम मंत्री का कहना था कि अगर कच्चे तेल की कीमत 80 डॉलर प्रति बैरल या इसे थोड़ा कम रहती है, तो यह प्राइस रेंज देशों के लिए सुविधाजनक होगी।
उन्होंने कहा, 'अगर कच्चे तेल के मामले में उचित प्राइस बैंड को लेकर चर्चा होती है, तो यह सभी देशों यानी तेल उत्पादक और तेल की खपत करने वाले, दोनों कैटगरी के देशों के हित में है।' सऊदी अरब ने 4 अक्टूबर को ऐलान किया कि वह कच्चे तेल की सप्लाई में इस साल के अंत तक 10 लाख बैरल रोजाना की कटौती करेगा। रूस ने भी इस साल के आखिर तक एक्सपोर्ट में कटौती जारी रखने पर सहमति जताई है।
पुरी का कहना था कि अगर कच्चे तेल की कीमतों में तेजी बनी रहती है, तो मांग के स्तर पर नुकसान देखने को मिल सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि कच्चे तेल की ऊंची कीमतों की वजह से एक बार फिर 2008 की तरह आर्थिक संकट देखने को मिल सकता है। उन्होंने कहा, 'ग्लोबल इकनॉमी में इनफ्लेशन की चिंता और इंटरेस्ट रेट में बढ़ोतरी की बावजूद सरप्लस लिक्विडिटी की मौजूदगी के कारण ऐसी स्थिति हो जाएगी, जहां कच्चे तेल की कीमतें 2008 के हालात को दोहरा सकती हैं।'
जनवरी-जुलाई 2008 के दौरान ब्रेंट क्रूड की कीमतें 93.60 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 134.3 डॉलर प्रति बैरल हो गई थीं। इस वजह से आखिरकार कच्चे तेल की मांग काफी कम हो गई थी, लिहाजा कीमतें भी काफी कम हो गई थीं।