आज सुबह देश के जाने मानें निवेशक राकेश झुनझुनवाला का 62 वर्ष की आयु में निधन हो गया। राकेश झुनझनवाला को तमाम जानी-मानी हस्तियां श्रद्धांजलि दे रही हैं। दिग्गज निवेशक शंकर शर्मा ने राकेश झुनझुनवाला को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि राकेश और मैं सदैव बहुत ही कम अंतर से एक -दूसरे से अलग रहे हैं। उम्र में भी हम दोनों में बहुत कम अंतर है और हमारी जन्म तिथियों में भी सिर्फ 3 दिन का अंतर है। हम रहते भी एक -दूसरे से बस कुछ कदम की दूरी पर हैं। लेकिन आज राकेश और इस दुनिया में बहुत बड़ा और कभी भी ना भरा जाने वाला अंतर पैदा हो गया है। अब हम इस अंतर को कभी भी नहीं पाट पाएंगे और राकेश के साथ वो हंसी-मजाक और खुशियों के दिन फिर कभी वापस लौट कर नहीं आएंगे। मैं करीब 25 साल से राकेश झुनझुनवाला को RJ के नाम से जानता हूं।
आज मुझे राकेश झुनझुनवाला के साथ साउथ मुंबई में स्थित Geoffrey में लिए जाने वाले ड्रिंक और फाइनेंशियल मुद्दे पर होने वाली बातचीत समय याद आ रही है। मैं अक्सर उनके साथ ड्रिंकिंग सेशन को छोड़ने वाला पहला व्यक्ति होता था। मुझे 2000 की शुरुआत में अपने एक दोस्त के बर्थडे पार्टी में RJ के साथ हुई मुलाकात याद आती है। उस समय बाजार में टेक शेयरों की जोरदार रैली चल रही थी। वो मुझे पार्टी के दौरान एक और लेकर गए और अपने जाने पहचाने अंदाज में जोर से कहा "साला शंकर, तेरे को मंदी क्यों लगता है"। पूरी पार्टी में चारों तरफ शांति छा गई। इस समय हम दोनों की स्थिति बॉक्सिंग रिंग में खड़े दो अल्फा मेल जैसी नजर आ रही थी। सबकी नजरें हमारे ऊपर लगी हुई थी कि इस रिंग में कौन विजेता होगा। यह जीत नॉक आउट के आधार पर होगी या कुछ प्वाइंट से होगी।
लोग अधिकतर बिगबुल के वेट को देखते हुए उनको ही विजेता मान रहे थे और तभी दोनों लड़ाके एकाएक सबको सरप्राइस करते हुए गले लग गए और एक सोलो डांस शुरु कर दिया है। पीने-पिलाने के इस दौर में पूरी पार्टी अचंभित हो गई। इस तरह था RJ के साथ मेरा रिश्ता। हमने टीवी चैनलों पर सनसनी पैदा करने के लिए ये सब किया था। यह सब एक फिक्स्ड WWE कुश्ती की तरह था। निश्चित तौर पर कई बार बाजार की दशा और दिशा पर हमारी राय जुदा होती थी। लेकिन ध्यान रखने की बात यह है कि बाजार पर कभी एक राय नहीं हो सकती । अलग-अलग राय होने का मतलब यह नहीं होता है कि हमारे बीच मतभेद है।
राकेश झुनझुनवाला के बारे में आपनी यादें ताजा करते हुए शंकर शर्मा ने कहा कि उनकी वेल्थ की साइज अलास्का जैसी थी लेकिन उनके दिल का आकार ग्रीनलैंड जैसा था। वो असली दिल के साफ इंसान थे जिसको अपनी गलतियां मानने में कोई परेशानी नहीं होती। वे परेशान लोगों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे।
RJ अपने पीछे एक ऐसी बड़ी विरासत छोड़कर गए हैं जिसको सिर्फ संपत्ति के पैमाने पर नहीं नापा जा सकता। उनकी विरासत को हम उनके द्वारा पीछे छोड़े गए आदर्शों, सिद्धांतों और तरीकों के आधार पर ही जान सकते हैं। वो अपने पीछे तमाम नए विचार और नई आशाएं छोड़कर गए हैं।
RJ ने भारतीय निवेशकों में 90 के दशक में हर्षद मेहता द्वारा बाजार में फैली गई तबाही और 2000 की शुरुआती दौर में टेक बबल के फूटने के बाद आई मंदी के दौर में फिर जान फुंकने का काम किया। 2003 तक बाजार के बारे में अहम धारणा यह थी कि यह एक बड़े जुआ घर की तरह है जहां सारी चीजें कुछ लोगों के फायदे के लिए पहले से तय होती हैं । आम लोगों को इसमें नुकसान उठाना पड़ता है।
इस बात को समझने के लिए पीछे की तरफ जाएं तो 1992 के बुल रन में सेंसेक्स 4000 के पास था और इसके 11 साल बाद भी यह इसी के आसपास नजर आ रहा था। अधिकांश म्यूचुअल फंडों की AUM बहुत दयनीय स्थिति में थी। इन फंडों के मैनेजरों हमें उन सेल्स मैन की तरह नजर आ रहे थे जो हीरो होंडा मोटरसाइकिल के जमाने में बजाज स्कूटर बेचने की कोशिश कर रहे थे। यह काफी निराशाजनक स्थिति थी। वह एक दशक का समय एक सेंचुरी की तरह नजर आ रहा था।
लेकिन इस निराशाजनक समय में राकेश झुनझुनवाला ने बाजार में उम्मीद की किरण जगाई और भारतीय स्टॉक मार्केट के ग्रोथ स्टोरी को झंडाबरदार की भूमिका निभाई। वो अक्सर टीवी चैनलों पर कहा करते थे , भारत की स्थिति बिना जूते के दौड़ने वाले धावक की तरह है। कल्पना करें कि अगर उसको जूते मिल जाए तो क्या होगा और वह कितनी लंबी दूरी तय कर सकता है। भारत के स्टॉक मार्केट को एक सपने के सौदागर की जरूरत थी और राकेश झुनझुनवाला ने यह भूमिका बखूबी निभाई।