Rare Earths: भारत के पास दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा रेयर अर्थ भंडार, फिर चीन से कैसे पिछड़ गए हम?

Rare Earths: भारत के पास दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा रेयर अर्थ भंडार है, फिर भी उत्पादन 1% से कम है। जानिए भारत किस वजह से रेयर अर्थ के उत्पादन में चीन से इतना पीछे है और अब सरकार इस दिशा में क्या काम कर रही है।

अपडेटेड Nov 08, 2025 पर 6:59 PM
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भारत की घरेलू रेयर अर्थ उत्पादन क्षमता लगभग 3,000 टन है।

Rare Earths: भारत की रेयर अर्थ कहानी 1950 में Indian Rare Earths Limited (IREL) की स्थापना से शुरू हुई। यह एक बड़ा कदम था, क्योंकि आगे चलकर रेयर अर्थ दुनिया की इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री की नींव बनने वाले थे। बेशक भारत ने इस सेक्टर में शुरुआत काफी पहले की थी, लेकिन फिर वह अपने पड़ोसी चीन की तरह इसकी धुरी नहीं बन पाया। आज भी हम अपनी रेयर अर्थ जरूरत का बड़ा आयात से पूरा करते हैं।

अब सरकार दोबारा रेयर अर्थ का उत्पादन बढ़ाने पर फोकस कर रही है। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि इस दिशा में अब क्या नया हो रहा है और पहली बार भारत का इसका लाभ उठाने से क्यों चूक गया था।

रेयर अर्थ की रेस में कैसे पिछड़ा भारत


भारत में रेयर अर्थ का उत्पादन 1950 के दशक से शुरू हुआ। लेकिन, भारत में एक बड़ी गलती की, जिसके चलते हम रेयर अर्थ की रेस में काफी पीछे छूट गए। दरअसल, शुरुआती समय में मांग काफी कम थी, इसलिए IREL ने रेयर अर्थ पर फोकस नहीं किया। उसका ध्यान बीच की रेत से मिलने वाले दूसरे खनिजों पर गया। साथ ही, कड़े नियमों के चलते भारत इस सेक्टर में आगे नहीं बढ़ सका।

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भारत में तैयार मैग्नेट आयात करना सस्ता पड़ा, क्योंकि घरेलू स्तर पर मांग और तकनीक विकसित नहीं हो पाई। इसके अलावा, भारत के रेयर अर्थ मोनाजाइट सैंड्स में पाए जाते हैं, जिनमें थोरियम (एक रेडियोएक्टिव तत्व) भी होता है। इसकी वजह से इन्हें 'एटॉमिक' कैटेगरी में रखा गया है। ऐसे प्रोजेक्ट्स को मंजूरी मिलना बेहद मुश्किल और समय लेने वाला होता है। सरकारी नियंत्रण अधिक होने से चुनौतियां और बढ़ीं।

लंबे प्रोजेक्ट समय, भारी निवेश और कम प्रोत्साहन के कारण निजी क्षेत्र भी इस उद्योग से दूर रहा। भारत के पास दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा रेयर अर्थ भंडार है, लेकिन वैश्विक उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 1% से भी कम है।

भारत की मौजूदा उत्पादन क्षमता

भारत की घरेलू रेयर अर्थ उत्पादन क्षमता लगभग 3,000 टन है। IREL हर साल लगभग 500 टन NdPr (Neodymium-Praseodymium) ऑक्साइड तैयार करती है, जो परमानेंट मैग्नेट बनाने का सबसे जरूरी कच्चा माल है। फिलहाल IREL ही इसे बड़े पैमाने पर बनाती है।

इसके बावजूद, 2024-25 में भारत ने चीन से 43,610 टन Rare Earth Permanent Magnets (REPMs) आयात किए। इनमें से लगभग 90% आयात केवल चीन से हुआ। EVs, एयरोस्पेस, कंप्यूटर और अन्य हाई-टेक उपकरणों में इस्तेमाल होने वाले मैग्नेट भारत में बड़े पैमाने पर नहीं बनते।

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IREL के भीतर क्या स्थिति है

IREL, Department of Atomic Energy के तहत काम करती है। यह विशाखापत्तनम में इंडिजिनस टेक्नोलॉजी पर आधारित एक एक्सक्लूसिव REPM प्लांट भी बना चुकी है। सरकार चीन पर निर्भरता कम करने पर जोर दे रही है, लेकिन IREL लगभग एक साल से चेयरपर्सन और CMD के बिना चल रही है। PESB ने जुलाई 2025 में सरदा भूषण मोहंती का नाम सुझाया है, लेकिन कैबिनेट कमेटी की मंजूरी अभी बाकी है।

कंपनी लंबे समय से लाभ में है और उत्पादन क्षमता बढ़ाने, वैल्यू-चेन को सपोर्ट करने और R&D पर काम कर रही है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अकेली IREL भारत की बढ़ती REPM जरूरतों को पूरा नहीं कर सकती। तुलना के लिए, 2024 में चीन का कुल रेयर अर्थ कोटा लगभग 2,70,000 टन था। इसमें दो सरकारी समूहों- चाइना नॉर्दर्न रेयर अर्थ (ग्रुप) और चाइना रेयर अर्थ ग्रुप का दबदबा है।

एक एनालिस्ट ने नाम न बताने की शर्त पर मनीकंट्रोल से कहा, 'भारत को REPM (Rare Earth Permanent Magnets) की खोज, माइनिंग और प्रोसेसिंग के लिए और अधिक कंपनियों की जरूरत है। IREL अकेले यह काम नहीं कर सकती। भले ही उसे चाहे जितने प्रोत्साहन दिए जाएं। क्योंकि मांग हद से ज्यादा है।'

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IREL का उत्पादन और वित्तीय प्रदर्शन

IREL मुख्य रूप से Mixed Rare Earth Chlorides (MRCL) बनाती है। FY24 में इसका उत्पादन 5,872 टन रहा। यह FY21 के मुकाबले 16% अधिक रहा। लेकिन, कंपनी अब भी अपनी क्षमता से काफी कम उत्पादन कर रही है, जो 11,000 टन से भी ज्यादा है।

FY24 में कंपनी का मुनाफा 1,012 करोड़ रुपये रहा, जो सालाना आधार पर 25% अधिक और FY21 की तुलना में 246% ज्यादा है। Moneycontrol को एक अधिकारी ने बताया कि सरकार की आने वाली सपोर्ट स्कीम में IREL निजी कंपनियों को NdPr सप्लाई करेगी और वित्तीय मदद पाने के लिए खुद भी बोली लगाएगी। यह स्कीम लगभग ₹7,300 करोड़ की होगी और 7 साल चलेगी। लेकिन कैबिनेट की मंजूरी बाकी है।

भारत को आगे क्या करना चाहिए?

Crisil Intelligence के सीनियर प्रैक्टिस लीडर और डायरेक्टर सतनाम सिंह का कहना है कि भारत ने रेयर अर्थ मिनरल्स की खोज (exploration) पर पर्याप्त काम नहीं किया है। उनके मुताबिक, IREL और अन्य PSU को गहरी खोज (deep exploration) के लिए इंसेंटिव दिए जा सकते हैं। जैसे कि Kerala Minerals and Metals Ltd (KMML)।

Rare Earths mining (1)

सिंह ने कहा, 'भारत कोयला, चूना-पत्थर और आयरन ओर की माइनिंग में काफी अनुभव रखता है। लेकिन रेयर अर्थ की बात आती है, तो देश की कुल क्षमता काफी सीमित है। हमने पर्याप्त माइनिंग ही नहीं की। यह समस्या तब और बढ़ गई, जब चीन ने अपनी तरफ से प्रतिबंध लगाना शुरू किया।' उन्होंने आगे कहा कि आगे बहुत काम करने की जरूरत है।'

फिलहाल चीन वैश्विक रेयर अर्थ उत्पादन का लगभग 70% हिस्सा नियंत्रित करता है। अमेरिका करीब 12% और भारत 1% से भी कम। सरकार ने लगभग 7,300 करोड़ रुपये की एक नई स्कीम तैयार की है, जिसके तहत भारत में रेयर अर्थ मैग्नेट प्रोसेसिंग यूनिट्स और सप्लाई चेन विकसित की जाएगी। स्कीम को कैबिनेट की मंजूरी मिलते ही इसे सात साल के लिए लागू किया जाएगा।

रेय अर्थ में NCMM की भूमिका

अप्रैल 2025 में लॉन्च हुआ NCMM भारत के रेयर अर्थ प्रोडक्शन, प्रोसेसिंग और आपूर्ति को मजबूत करने की दिशा में अहम कदम है। यह मिशन न केवल घरेलू उत्पादन बढ़ाने, बल्कि विदेशों में जाकर संसाधन हासिल करने पर भी जोर देता है।

मिशन के तहत GSI को 2024-25 से 2030-31 के बीच 1,200 एक्सप्लोरेशन प्रोजेक्ट्स करने का लक्ष्य दिया गया है। राजस्थान के सिरोही और भीलवाड़ा में पहले भी नियोडिमियम सहित अन्य रेयर अर्थ तत्वों की खोज हो चुकी है। Department of Atomic Energy ने बालोत्रा में भी 1,11,845 टन Rare Earth Oxide (REO) की खोज की है।

मिशन में तेज मंजूरी प्रणाली, नया Exploration Licence, सेकंडरी सोर्सेज जैसे फ्लाई ऐश और टेलिंग्स से खनिज निकालने की अनुमति, प्रोसेसिंग पार्क और राज्यों व PSUs की बढ़ी भूमिका जैसे सुधार शामिल हैं।

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