शुरू हो गई Byju's की दिवालिया प्रक्रिया, मौजूदा और पूर्व एंप्लॉयीज के सामने अब सिर्फ यह विकल्प
भारतीय क्रिकेट बोर्ड BCCI की याचिका पर नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने 16 जुलाई को बायजूज (Byju's) की पैरेंट कंपनी थिंक एंड लर्न के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने की मंजूरी दे दी। बीसीसीआई ने यह केस 158 करोड़ रुपये के स्पांसरशिप बकाए को लेकर दायर किया था। अब ट्रिब्यूनल ने पंकज श्रीवास्तव को बायजूज का अंतरिम रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल (IRP) बनाया है और पंकज के पास ही अब कंपनी की पूरी कमान है
Byju’s बीसीसीआई के साथ कोर्ट के बाहर भी सेटलमेंट का रास्ता अपना सकती है। हालांकि एक मामले में भी अगर इनसॉल्वेंसी की याचिका मंजूर हो गई तो सभी क्रेडिटर्स के मामले में इनसॉल्वेंसी को स्वीकार माना जाता है. चाहे वे फाइनेंशियल क्रेडिटर्स हों या ऑपरेशनल क्रेडिटर्स।
भारतीय क्रिकेट बोर्ड BCCI की याचिका पर नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने 16 जुलाई को बायजूज (Byju's) की पैरेंट कंपनी थिंक एंड लर्न के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने की मंजूरी दे दी। बीसीसीआई ने यह केस 158 करोड़ रुपये के स्पांसरशिप बकाए को लेकर दायर किया था। अब ट्रिब्यूनल ने पंकज श्रीवास्तव को बायजूज का अंतरिम रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल (IRP) बनाया है और पंकज के पास ही अब कंपनी की पूरी कमान है। वह तब तक कंपनी संभालेंगे, जब तक लेंडर्स क्रेडिटर्स की कमेटी (CoC) नहीं बना लेते हैं। एनसीएलटी ने मामले को ऑर्बिट्रेशन यानी मध्यस्थ के पास भेजने के बायजूज के अनुरोध को खारिज कर दिया।
अब बायजूज इनसॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रोसेस के दौरान अपनी किसी संपत्ति की बिक्री नहीं कर सकेगी। इसके अलावा बायजूज के खिलाफ कोई भी मुकदमा फिलहाल आगे नहीं बढ़ेगा। इस दौरान कर्ज पर ब्याज भी नहीं बढ़ेगा। अब सवाल उठता है कि बायजूज इस स्थिति में कैसे पहुंची, आगे क्या होगा, मौजूदा-पूर्व एंप्लॉयीज का क्या होगा?
कैसे बना बुलबुला?
कोरोना महामारी के दौरान कई टेक स्टार्टअप का कैशफ्लो रातोंरात जीरो हो गया और कुछ महीने के लिए नई फंडिंग ही नहीं आई। इसी समय इक्विटी के रूप में डेट फाइनेंसिंग का चलन तेजी से एकाएक बढ़ गया। हालांकि इस बात की आशंका हमेशा बनी रही कि जब बड़ी डिजिटल कंपनियां दिवालिया होंगी तो क्या होगा? ई-कॉमर्स ऐप और वेबसाइट बनाने वाले स्टार्टअप्स के पास शायद ही कोई अचल संपत्ति होती है। हालांकि यह माना गया कि उनके पास ब्रांड, प्लेटफॉर्म के यूजर्स डेटाबेस और यूजेज पैटर्न्स, ऐप या वेबसाइट का कोडबेस; ये तीन चीजें तो मिलेंगी हीं। हालांकि महामारी के दौरान दुनिया तेजी से डिजिटल हो रही थीं, तो सभी किंतु-परंतु को डस्टबिन में डाल दिया गया।
दो साल के भीतर 50 से अधिक तकनीकी स्टार्टअप यूनिकॉर्न बन गए। यूनिकॉर्न का मतलब 1 बिलियन डॉलर से अधिक वैल्यू वाला स्टार्टअप या कंपनी। फिर समय बदला और अब सामने आ रहा है कि एक समय देश का सबसे बड़ा स्टार्टअप बायजूज जिसकी वैल्यू कभी 2200 करोड़ डॉलर थी, अब उसकी वैल्यू जीरो हो चुकी है। अब तो यह दिवालिया प्रक्रिया से भी जूझ रही है।
BCCI से सेटलमेंट पर भी Byju’s के लिए आसान नहीं रास्ता
मनीकंट्रोल को सूत्रों के हवाले से जो जानकारी मिली है, उसके मुताबिक कंपनी बीसीसीआई के साथ कोर्ट के बाहर भी सेटलमेंट का रास्ता अपना सकती है। हालांकि एक मामले में भी अगर इनसॉल्वेंसी की याचिका मंजूर हो गई तो सभी क्रेडिटर्स के मामले में इनसॉल्वेंसी को स्वीकार माना जाता है. चाहे वे फाइनेंशियल क्रेडिटर्स हों या ऑपरेशनल क्रेडिटर्स। यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि फाइनेंशियस क्रेडिटर्स पैसे उधार देने वाले हैं जबकि ऑपरेशनल क्रेडिटर्स गुड्स और सर्विसेज जिन्हें पेमेंट मिला नहीं है। इनसॉल्वेंसी कानून के मुताबिक ये दोनों ही क्रेडिटर्स न्यूनतम 1 करोड़ रुपये के डिफॉल्ट पर इनसॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रोसेस शुरू कर सकते हैं लेकिन सीओसी सिर्फ फाइनेंशियल क्रेडिटर्स की याचिका पर ही बनता है।
अभी बायजूज की कमान अंतरिम रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल (IRP) के पास है लेकिन जब क्रेडिटर्स की कमेटी (CoC) बन जाएगी तो यह कंपनी के सभी मामले देखेगी। हालांकि आईआरपी अभी भी रहेंगे लेकिन वह सीओसी के लिए काम करेंगे और यह अधिकतम 330 दिनों तक होगा। हालांकि सीओसी चाहे तो उन्हें हटा भी सकती है। 330 दिनों तक अगर नीलामी सफल नहीं हो पाती है या कंपनी चलाने की कोई ठोस योजना पेश नहीं करती है तो एनसीएलटी इसे लिक्विडेट करने का आदेश दे सकती है। सीओसी में लेंडर के पास वोटिंग की कितनी शक्ति होगी, यह उसके फाइनेंशियल एक्सपोजर पर निर्भर करेगा। जो इसे खरीदेगा, वह कुछ समय के भीतर सारा बकाया चुकाएगा और जो प्लान पेश करेगा, वह रिजॉल्यूशन प्लान कहा जाता है। रिजॉल्यूशन की प्रक्रिया 180 दिनों के भीतर पूरी होनी चाहिए और एनसीएलटी के पास इसे अधिकतम 330 दिनों तक करने की शक्ति है। 330 दिनों का काउंटडाउन 16 जुलाई से शुरू हो चुका है।
मौजूदा और पूर्व एंप्लॉयीज के पास क्या हैं विकल्प?
कमेटी 330 दिनों के भीतर मौजूदा एंप्लॉयीज से पूछेगी कि वह कंपनी कैसे चलाना चाहेंगे। हालांकि कमेटी चाहे तो सभी एंप्लॉयीज को निकाल सकती है। एंप्लॉयीज की किस्मत कंपनी के मौजूदा रेवेन्यू और रिजर्व पर निर्भर है। अब पूर्व एंप्लॉयीज की बात करें तो बायजूज ने अभी हाल ही में हजारों एंप्लॉयीज की छंटनी की थी। करीब 200 एंप्लॉयीज ने हाल ही में कर्नाटक लेबर कमिश्नर से शिकायत की कि उनका फुल एंड फाइनल (F&F) सेटलमेंट अभी तक नहीं किया गया है। इनका कुल बकाया करीब 4.5 करोड़ रुपये था। व्यास लीगल के फाउंडर विधान व्यास के मुताबिक अब कंपनी इनसॉल्वेंसी प्रोसेस से गुजर रही है तो पूर्व एंप्लॉयीज को रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल से संपर्क करना होगा।
हालांकि इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) के तहत सेटलमेंट प्रॉयोरिटी के हिसाब से होता है। विधान के मुताबिक आईबीसी के सेक्शन 53(1) के तहत सबसे पहली प्रॉयोरिटी रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल है और इसके बाद रिजॉल्यूशन प्रोसेस शुरू होने से 24 महीने तक एंप्लॉयीज का बकाया और क्रेडिटर्स का सिक्योर्ड लोन है। इसके बाद एंप्लॉयीज का 12 महीने तक का बकाया है। फिर इसके बाद अनसिक्योर्ड क्रेडिटर्स का लोन है। इस प्रकार आईबीसी के तहत एंप्लॉयीज हाई प्रॉयोरिटी में हैं।
सरकार का भी फंस गया टैक्स
इस पूरे मामले में एक बात और चौंकाने वाली रही कि कंपनी ने जुलाई 2023 से टीडीएस नहीं जमा कराया है। यह खुलासा तब हुआ, जब इसके मौजूदा और पूर्व एंप्लॉयीज आईटीआर भरने लगे। लॉ फर्म एबी लीगल के फाउंडर Amir Baavani का कहना है कि अब इनसॉल्वेंसी प्रोसेस शुरू हो चुका है कि इसकी देनदारी सस्पेंड हो चुके मैनेजमेंट पर है क्योंकि यह उन्हीं की गलती है। हालांकि सरकार इसकी फिलहाल वसूली नहीं कर सकती है क्योंकि रिजॉल्यूशन प्रोसेस चल रहा है। सरकार कोई केस भी नहीं कर सकती है। ऐसे में वसूली के लिए सरकार के पास सिर्फ रिजॉल्यूशल प्रोफेशनल के पास अपना दावा फाइल करने का ही विकल्प है। हालांकि इसे चुकता करने में प्रॉयोरिटी निचली रहेगी।