Tata Trusts: क्या टाटा ट्रस्ट्स में बढ़ती गुटबाजी का असर टाटा संस की लिस्टिंग पर पड़ेगा? जानिए क्या है पूरा मामला
टाटा ट्रस्ट्स जिस तरह टाटा संस को कंट्रोल को करने की कोशिश कर रहा है, उससे ट्रस्ट्स के दोनों गुटों के बीच टकराव अब खुलकर सामने आ गया है। दरअसल, रतन टाटा के निधन के बाद 11 अक्टूबर, 2024 को नोएल टाटा को टाटा संस का चेयरमैन नियुक्त किया गया था। बताया जाता है कि नोएल टाटा के कामकाज के तरीके पर 4 ट्रस्टीज ने असंतोष जताया है
Ratan Tata ने दशकों तक टाटा ट्रस्ट्स का नेतृत्व किया था। कभी उनकी अथॉरिटी को ट्रस्टीज और नॉमिनी डायरेक्टर्स की तरफ से चैलेंज नहीं किया गया था।
टाटा ट्रस्ट्स के बोर्ड की बैठक 10 अक्टूबर को होने वाली है। इस बैठक पर करीबी नजरें हैं। शायद ही कभी टाटा ट्रस्ट्स के बोर्ड की बैठक में ऐसी दिलचस्पी पहले कभी देखी गई होगी। इसकी वजह टाटा ट्रस्ट्स के दो गुटों के बीच बढ़ती वर्चस्व की लड़ाई है। टाटा ट्रस्ट्स की टाटा संस में करीब 66 फीसदी हिस्सेदारी है। टाटा संस देश के सबसे बड़े कारोबारी समूह टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी है। टाटा संस में 66 फीसदी हिस्सेदारी की वजह से इस समूह के कामकाज पर टाटा ट्रस्ट्स का खासा असर है।
नोएल टाटा के काम करने के तरीके से कई ट्रस्टीज नाखुश
सूत्रों ने मनीकंट्रोल को बताया कि Tata Trusts जिस तरह Tata Sons को कंट्रोल को करने की कोशिश कर रहा है, उससे ट्रस्ट्स के दोनों गुटों के बीच टकराव अब खुलकर सामने आ गया है। दरअसल, रतन टाटा के निधन के बाद 11 अक्टूबर, 2024 को नोएल टाटा को टाटा संस का चेयरमैन नियुक्त किया गया था। बताया जाता है कि नोएल टाटा के कामकाज के तरीके पर 4 ट्रस्टीज ने असंतोष जताया है। उनका कहना है कि टाटा ट्रस्ट्स की तरफ से टाटा संस के बोर्ड में नॉमिनेट किए गए डायरेक्टर्स समूह के कामकाज से जुड़ी पूरी जानकारियां उनके साथ शेयर नहीं कर रहे हैं।
आरबीआई टाटा संस को लिस्टिंग के लिए कह चुका है
टाटा संस पर कंट्रोल के लिहाज से टाटा ट्रस्ट्स को दो गुटों के बीच यह टकराव ऐसा वक्त बढ़ता दिख रहा है, जब RBI की तरफ से टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी (Tata Sons) पर खुद को स्टॉक मार्केट्स में लिस्ट कराने का दबाव है। दरअसल, टाटा संस इनवेस्टमेंट फर्म की कैटेगरी में आती है। आरबीआई ने बड़ी इनवेस्टमेंट फर्मों को खुद को स्टॉक मार्केट्स में लिस्ट कराने को कहा है। Tata Trusts ने 10 अक्टूबर को मीटिंग के एजेंडा के बारे में जानने के लिए भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं दिया।
रतन टाटा के कार्यकाल में कभी गुटबाजी देखने को नहीं मिली थी
Ratan Tata ने दशकों तक टाटा ट्रस्ट्स का नेतृत्व किया था। कभी उनकी अथॉरिटी को ट्रस्टीज और नॉमिनी डायरेक्टर्स की तरफ से चैलेंज नहीं किया गया था। उनके कार्यकाल के दौरान कभी टाटा संस और टाटा ट्रस्ट्स के बीच के संबंधों पर दबाव नहीं देखा गया। इसकी सबसे बड़ी वजह दोनों पर उनका व्यक्तिगत प्रभाव था। सूत्रों का कहना है कि ऐसा प्रभाव नोएल टाटा डालने में नाकाम रहे हैं। उनके नाम में भी टाटा सरनेम जुड़ा है और रतन टाटा के बाद उन्हें सर्वसम्मति से टाटा संस का चेयरमैन चुना गया था। लेकिन, टाटा ट्रस्ट्क के अंदर अब स्थितियां बदल गई हैं।
मेहिल मिस्त्री का गुट नोएल टाटा के फैसलों का कर चुका है विरोध
इस मामले की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि नोएल टाटा बड़े फैसले खुद ले रहे हैं। यह दूसरे ट्रस्टीज को नागवार गुजरा है। शापूरजी पलोनजी परिवार से जुड़े और टाटा संस के ट्रस्टी मेहिल मिस्त्री ने नोएल टाटा के कई कदमों पर अपना विरोध जताया है। शापूरजी पलोनजी परिवार की टाटा संस में 18.37 फीसदी हिस्सेदारी है। सूत्रों का कहना है कि मेहिल का मानना है कि उन्हें बड़े मसलों के बारे में पूरी जानकारी नहीं दी जा रही है। इससे टाटा ट्रस्ट्स के बोर्ड में दोनों गुटों के बीच अविश्वास बढ़ता दिख रहा है।
नए डायरेक्टर्स के नॉमिनेशन में भी दिख रही रस्साकशी
टाटा संस के बोर्ड में नए डायरेक्टर्स के नॉमिनेशन को लेकर भी दोनों गुटों के बीच रस्साकशी बढ़ती दिख रही है। बताया जाता है कि विचार के लिए नोएल टाटा की तरफ से कुछ नाम पेश किए गए हैं। लेकिन, यह अभी पता नहीं चल पाया है कि मेहिल मिस्त्री का गुट इन नामों को एप्रूव करने को तैयार है या नहीं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन नामों में उदय कोटक, प्रसिद्ध वकील बेहराम वकील और टाटा स्टील के एमडी टीवी नरेंद्रन के नाम शामिल हैं। इन नामों को लेकर टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन की सोच के बारे में भी पता नहीं चल पाया है।
टाटा संस की लिस्टिंग से शापूरजी पलोनज को मिलेगी राहत
उधर, टाटा संस में 18 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी रखने वाला शापूरजी पलोनजी ग्रुप (SPG) बड़े फाइनेंशियल प्रेशर का सामना कर रहा है। उसने काफी कर्ज ले रखा है और टाटा संस में अपनी हिस्सेदारी वाले शेयरों को वह पहले ही गिरवी रख चुका है। एसपीजी का मानना है कि टाटा संस की स्टॉक मार्केट में लिस्टिंग से उसकी (टाटा संस) वैल्यू अनलॉक होगी और शेयरों का पारदर्शी मार्केट प्राइस सामने आएगा। बताया जाता है कि इस ग्रुप ने सरकार को भी इस मामले में अपनी राय बताई है। इसकी बड़ी वजह यह है कि टाटा संस की लिस्टिंग से एसपीजी को फाइनेंशियल प्रेशर घटाने में मदद मिलेगी।
खुद को लिस्ट कराने में नहीं रही है टाटा संस की दिलचस्पी
इधर, टाटा ट्रस्ट्स शुरुआत से ही स्टॉक मार्केट्स में खुद की लिस्टिंग के खिलाफ रही है। ऐसे में टाटा संस के चेयरमैन के रूप में नोएट टाटा की मुश्किल और बढ़ गई है। नोएल टाटा का मिस्त्री परिवार से रिश्ता है। उनकी शादी अलू मिस्त्री से हुई है, जो एसपी ग्रुप के चेयरमैन शापूर मिस्त्री की बहन हैं। हालांकि, अभी ऐसा नहीं कहा जा सकता कि इस पारिवारिक रिश्ते का असर नोएल टाटा के फैसलों पर पड़ता है। टाटा संस पहले ही RBI की तरफ से लिस्टिंग की 30 सितंबर, 2025 की डेडलाइन को पार कर चुकी है। आरबीआई ने अपर लेयर के तहत आने वाली एनबीएफसी की लिस्टिंग के लिए यह डेडलाइन तय की थी। टाटा संस ने मार्च 2024 में कोर इनवेस्टमेंट कंपनी का अपना रिजस्ट्रेशन सरेंडर करने के लिए अप्लाई किया था। लेकिन, अभी इस पर RBI ने फैसला नहीं लिया है।
कई डायरेक्टर्स की दोबारा नियुक्ति को लेकर तस्वीर साफ नहीं
टाटा संस की लिस्टिंग से जुड़े फैसलों में नॉमिनी डायरेक्टर्स की बड़ी भूमिका होगी। ऐसे में नए नॉमिनी डायरेक्टर्स की नियुक्ति का मसला काफी अहम हो जाता है। 11 सितंबर को टाटा ट्रस्ट्स की एक मीटिंग में कम से कम चार ट्रस्टीज ने नॉमिनी डायरेक्टर के रूप में विजय सिंह की दोबारा नियुक्ति के प्रस्ताव का विरोध किया। उन्होंने कहा कि उन्हें टाटा संस के बोर्ड की मीटिंग के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं दी गई। बताया जाता है कि वेणु श्रीनिवासन की दोबारा नियुक्ति को लेकर भी तस्वीर साफ नहीं है।
10 अक्टूबर को होने वाली बैठक पर लगी हैं करीबी निगाहें
इन मसलों की वजह से टाटा ट्रस्ट्स में कामकाज और अहम मसलों को लेकर सर्वसम्मति बनती नहीं दिख रही है। दोनों गुटों के बीच बढ़ती दूरियों को देख एन चंद्रशेखरन ने बीते हफ्तों में ताज चैंबर्स में ट्रस्टीज से मुलाकात की थी। इस मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि यह मीटिंग उन ट्रस्टीज के कहने पर हुई थी, जो बड़े मसलों को लेकर पूरी जानकारी चाहते हैं। अगर टाटा ट्रस्ट्स के दोनों गुटों के बीच मतभेद खत्म नहीं होता है तो इसका असर टाटा समूह की 26 लिस्टेड कंपनियों पर पड़ सकता है। इन कंपनियो का मार्केट कैपिटलाइजेशन 31 मार्च, 2025 को 328 अरब डॉलर था। ऐसे हालात में टाटा ट्रस्ट्स के बोर्ड की 10 अक्टूबर को होने वाली मीटिंग पर करीबी नजरें होंगी।