Tata Trusts Row: डेरियस खंबाटा बोले- तख्तापलट या टेकओवर की कहानी बेतुकी, नोएल टाटा को किया सपोर्ट
खंबाटा का लेटर यह साफ करता है कि वह मौजूदा विवाद को कंट्रोल के लिए लड़ाई के बजाय मामले को गलत तरीके से पेश किए जाने का नतीजा मानते हैं। लेटर से पता चलता है कि टाटा संस की संभावित लिस्टिंग को लेकर चिंताओं ने पिछले कुछ महीनों में टाटा ट्रस्ट्स के अंदर चर्चा को तेज कर दिया था
डेरियस खंबाटा अभी दोराबजी टाटा ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट के बोर्ड में हैं।
टाटा ट्रस्ट्स की 11 सितंबर, 2025 को हुई मीटिंग सिर्फ एक सालाना रिव्यू थी। यह टाटा फिलैंथ्रोपिक ग्रुप के अंदर तख्तापलट या टेकओवर की कोशिश नहीं थी। सीनियर एडवोकेट डेरियस जे खंबाटा ने सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट के खास ट्रस्टियों को एक कॉन्फिडेंशियल लेटर लिखा है। इस लेटर में ही ऐसा जिक्र किया गया है। खंबाटा महाराष्ट्र के पूर्व एडवोकेट जनरल और भारत के पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल हैं। वह अभी दोराबजी टाटा ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट के बोर्ड में हैं।
10 नवंबर, 2025 के लेटर में खंबाटा ने लिखा है कि वह मीटिंग के बारे में मीडिया द्वारा गढ़ी गई कहानी से परेशान हैं और तख्तापलट की बातें बेतुकी हैं। खंबाटा ने यह लेटर सर दोराबजी और सर रतन टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन नोएल टाटा के साथ-साथ ट्रस्टी वेणु श्रीनिवासन, विजय सिंह, प्रमित झावेरी, और जहांगीर एचसी जहांगीर को लिखा है।
खंबाटा के मुताबिक, 11 सितंबर की मीटिंग एक सालाना रिव्यू थी न कि किसी को हटाने या कंट्रोल कब्जाने की कोशिश। उन्होंने लिखा, "टाटा संस के बोर्ड में वह रिप्रेजेंटेशन ट्रस्ट के प्रति एक ड्यूटी है, कोई इनाम नहीं।
क्या हुआ था 11 सितंबर को
11 सितंबर की विवादित मीटिंग में विजय सिंह को टाटा संस के बोर्ड से इस्तीफा देना पड़ा, क्योंकि 7 में से 4 ट्रस्टीज ने उनके उस पद पर बने रहने के खिलाफ वोट दिया था। टाटा ट्रस्ट्स के टाटा संस बोर्ड में 3 रिप्रेजेंटेटिव थे- नोएल टाटा, वेणु श्रीनिवासन और विजय सिंह। 11 सितंबर की घटनाओं के बाद, अभी दो नॉमिनी डायरेक्टर हैं- नोएल टाटा और वेणु श्रीनिवासन।
खंबाटा का कहना है कि उन्हें और मीटिंग में मौजूद दूसरे लोगों को विजय के खिलाफ बिल्कुल भी कुछ महसूस नहीं हुआ और उन्हें इस बात का अफसोस है कि संबंधित ट्रस्टी उनकी बात आमने-सामने सुनने के लिए मौजूद नहीं थे। उन्होंने मीडिया कवरेज में गलत नजरिए और इसके चलते विजय को जो दर्द सहना पड़ा उस पर भी अफसोस जताया है। खंबाटा ने कहा है कि सभी को आम सहमति बनाने की ज्यादा कोशिश करनी चाहिए थी।
टाटा संस, टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी है। लेटर से पता चलता है कि टाटा संस की संभावित लिस्टिंग को लेकर चिंताओं ने पिछले कुछ महीनों में टाटा ट्रस्ट्स के अंदर चर्चा को तेज कर दिया था। सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट मिलकर टाटा संस के सबसे बड़े शेयरहोल्डर हैं। उनके नॉमिनी डायरेक्टर ग्रुप-लेवल के फैसलों में अहम भूमिका निभाते हैं। 11 सितंबर की बातचीत के बारे में अपनी वजह बताते हुए खंबाटा कहते हैं कि उनका मकसद सिर्फ एक ही था- टाटा संस के बोर्ड में अपनी बात मजबूती से रखना, ताकि ट्रस्टों का टाटा संस को लिस्ट न करने का पक्ष मजबूत हो सके।
टाटा ट्रस्ट्स का पक्ष है कि Tata Sons को प्राइवेट कंपनी ही रहना चाहिए ताकि ग्रुप की फैसला लेने की प्रक्रिया पर नियंत्रण बना रहे। वहीं टाटा संस में माइनॉरिटी शेयरहोल्डिंग रखने वाला शपूरजी पलोनजी मिस्त्री परिवार चाहता है कि कंपनी शेयर बाजार में लिस्ट हो, जिससे उन्हें अपने कर्ज कम करने के लिए पूंजी निकालने का मौका मिले।
RBI ने अक्टूबर 2022 में टाटा संस को अपर-लेयर वाली नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों की लिस्ट में डाला था। नियमों के मुताबिक, इस लिस्ट में आने वाली NBFC कंपनियों को 3 साल के भीतर खुद को शेयर बाजार में लिस्ट कराना होता था। इस हिसाब से टाटा संस के पास अपना आईपीओ लाने के लिए सितंबर 2025 तक का वक्त था। यह डेडलाइन गुजर चुकी है और अब फैसला करना जरूरी हो चुका है।
नोएल टाटा को चेयरमैन बनाने का किया था सपोर्ट
खंबाटा ने लेटर में लिखा है कि रतन टाटा के गुजरने के बाद वह और दूसरे लोग चाहते थे कि नोएल टाटा ट्रस्टों को लीड करें और उनका मानना था कि वह अकेले ऐसे व्यक्ति हैं, जो ऐसा कर सकते हैं। लेटर के मुताबिक, मेहली मिस्त्री ने नोएल टाटा को चेयरमैन बनाने का प्रस्ताव दिया था और खंबाटा ने प्रस्ताव को सपोर्ट किया था। इसलिए अब अफसोस की कोई वजह नहीं है। टाटा की विरासत अच्छे हाथों में है।
खंबाटा ने यह भी बताया कि 11 सितंबर की विवादित मीटिंग के बाद, उन्होंने दो बार ट्रस्टीज की तरफ से नोएल टाटा की लीडरशिप को पक्का करते हुए ट्रस्ट्स में एकता का जॉइंट स्टेटमेंट देने का प्रस्ताव रखा था। इस तरह के स्टेटमेंट की पहली कोशिश मीटिंग के लगभग तुरंत बाद की गई थी। इससे पता चलता है कि कम से कम कुछ ट्रस्टी टाटा संस की लिस्टिंग और बोर्ड में टाटा ट्रस्ट्स के हितों को कैसे दिखाया जा रहा है, इस पर मतभेदों के बावजूद अंदरूनी एकजुटता का संकेत देने के लिए उत्सुक थे।
खंबाटा का लेटर यह साफ करता है कि वह मौजूदा विवाद को कंट्रोल के लिए लड़ाई के बजाय मामले को गलत तरीके से पेश किए जाने का नतीजा मानते हैं। खंबाटा ने टाटा संस के बोर्ड में शामिल होने की किसी भी पर्सनल इच्छा से इनकार किया है और नोएल टाटा की लीडरशिप को साफ तौर पर सपोर्ट किया है।