वोडाफोन आइडिया (Vodafone Idea-VI) भारी दिक्कतों से जूझ रही है और इसके पास पर्याप्त फंड ही नहीं है। मनीकंट्रोल को सूत्रों से जो जानकारी मिली है, उसके मुताबिक इसने डेविडसन केम्पनर, ओक्ट्रि और वार्ड पार्टनर्स जैसे प्राइवेट क्रेडिट फंड्स से फंड के लिए बातचीत शुरू की है ताकि यह कर्ज जुटा सके। कंपनी के अंदरूनी अनुमान के मुताबिक अगर इसे कर्ज नहीं मिलता है तो इस वित्त वर्ष 2026 की चौथी तिमाही तक यानी मार्च 2026 तक ही कैपिटल एक्सपेंडिचर जारी रख पाएगी। सूत्रों के मुताबिक टेलीकॉम कंपनी कई लेंडर्स से नए लोन के लिए बातचीत कर चुकी है लेकिन वे कंपनी को कर्ज नहीं देना चाह रहे हैं।
क्या है Voda Idea का प्लान?
कंपनी अपने ₹50 हजार-₹55 हजार करोड़ के कैपेक्स प्लान के लिए फंड जुटाने की कोशिश कर रही है। कंपनी की कोशिश है कि इस साल नवंबर महीने तक ही इसे फंड मिल जाए ताकि 4जी और 5जी सर्विसेज के विस्तार में रुकावट न आए जोकि ग्राहकों को अपने से जोड़े रखने के लिए काफी अहम है। इन सबके लिए चूंकि बड़े बैंक से फंड मिलने को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है तो अस्थायी तौर पर टेलीकॉम कंपनी अस्थायी उपाय के रूप में प्राइवेट क्रेडिट फंड्स के पास पहुंची है।
कर्ज देने से क्यों हिचक रहे हैं बैंक?
सूत्रों के मुताबिक केपीएमजी ने वीआई को ₹25 हजार करोड़ का लोन मिलने का रास्ता आसान करने के लिए टेक्नो-इकनॉमिक वायबिलिटी (TEV) रिपोर्ट में बदलाव कर जुलाई के आखिरी हफ्ते में दाखिल किया था। हालांकि सूत्रों के मुताबिक बैंक दो वजहों से वोडा आइडिया को कर्ज देने से बच रहे हैं। एक तो ये कि एजीआर (एडजस्टेड ग्रास रेवेन्यू) बकाए को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है और जब तक सरकार औपचारिक रूप से इसके रीपेमेंट शेड्यूल को स्थगित नहीं कर देती है. बैंक दूरी बनाए रखेंगे। दूसरी वजह ये है कि वाटरफाल रीपेमेंट मैकेनिज्म को लेकर सवाल बना हुआ है, खासतौर से ये कि केंद्र सरकार अब वोडा आइडिया में अब मेजॉरिटी शेयरहोल्डर है तो बैंक लोन के ऊपर क्या सरकारी बकाए को प्राथमिकता मिलेगी? लेंडर्स इसे लेकर सरकार से स्पष्ट आश्वासन मांग रहे हैं और इसके बिना आगे बढ़ने में हिचक रहे हैं।
कब खत्म हो रही है एजीआर बकाए की मोहलत?
वोडा आइडिया मार्केट में बने रहने की पूरी कोशिश कर रही है और 30 मई को बोर्ड ने एफपीओ (फॉलोऑन पब्लिक ऑफर), प्राइवेट प्लेसमेंट या अन्य किसी तरीके से ₹20 हजार करोड़ तक जुटाने की मंजूरी दी थी ताकि कंपनी अपना कारोबार जारी रख सके। यह फैसला उस समय आया जब कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि बैंक फंडिंग के बिना वह मौजूदा वित्तीय वर्ष के बाद काम नहीं कर पाएगी, लेकिन लेंडर्स इसके ₹84,000 करोड़ के AGR बकाए के चलते आगे नहीं बढ़ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट में जाने से पहले कंपनी ने सरकार से AGR देनदारियों पर ब्याज, पेनल्टी और पेनल्टी पर ब्याज माफ करने का अनुरोध किया था, लेकिन सरकार नहीं मानी।
अब कंपनी के सामने चुनौतियां बढ़ने वाली है क्योंकि सितंबर में सरकार से AGR और स्पेक्ट्रम पेमेंट को लेकर मिली चार साल की मोहलत खत्म हो जाएगी। 31 मार्च 2026 से कंपनी को छह वर्षों तक सालाना ₹18,000 करोड़ से अधिक AGR और स्पेक्ट्रम देनदारियां चुकानी होंगी। केवल वित्त वर्ष 2026 में ही AGR के ₹16,428 करोड़ और स्पेक्ट्रम देनदारियों के ₹2,539 करोड़ पेमेंट करने हैं। हालांकि कंपनी का कहना है कि इनमें से कुछ आंकड़े बदल सकते हैं और फाइनल अमाउंट दिसंबर 2025 के आखिरी तक तय हो जाएगा और फिर मार्च 2026 से इसे छह समान किश्तों में चुकाया जाएगा। बता दें कि मार्च 2025 के आखिरी तक वोडाफोन आइडिया पर सरकार का कुल बकाया ₹1,94,000 करोड़ था, जिसमें ₹1,18,000 करोड़ का स्थगित स्पेक्ट्रम भुगतान और ₹75,945 करोड़ AGR देनदारियां शामिल हैं।
क्या कहना है एक्सपर्ट का?
एंबिट कैपिटल रिसर्च के एनालिस्ट विवेकानंद एस का कहना है कि अनिश्चितता से सिर्फ सिर्फ टावर कंपनियां ही नहीं, बल्कि बैंकर्स भी डरते हैं। रेटिंग एजेंसियों ने भी चिंता जताई है। विवेकानंद के मुताबिक AGR देनदारियों पर स्पष्टता का न होना ही सबसे बड़ी दिक्कत है। इसे लेकर वोडाफोन आइडिया और सरकार के बीच नियामकीय बातचीत चल रही है, लेकिन आगे क्या होगा, इसे लेकर कुछ कह नहीं सकते हैं। उनका मानना है कि इसके निपटारे के लिए सिर्फ सरकार ही रास्ता दिखा सकती है। वोडाफोन आइडिया ने बार-बार नेटवर्क सुधार और ग्राहक को अपने से जोड़े रखने के लिए नई कैपिटल एक्सपेंडिचर की जरूरत जताई है, लेकिन सरकारी समर्थन के अभाव में इस पर संकट बना हुआ है।