भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने भारतीय मुद्रा रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण करने के लिए 11 जुलाई, 2022 को आयातकों और निर्यातकों को रुपये में लेनदेन करने की अनुमति दी थी। इस पहल के तहत कुछ चुनिंदा देशों के साथ नॉन-ऑयल ट्रेड में कुछ सफलता मिली है, लेकिन तेल निर्यातकों की रुपये से दूरी जारी है। कच्चे तेल के आयात पर रुपये में भुगतान करने की भारत की पहल को अब तक खास कामयाबी नहीं मिल पाई है। पेट्रोलियम मंत्रालय ने संसद की एक स्थायी समिति को यह जानकारी देते हुए कहा है कि सप्लायर्स ने फंड को पसंदीदा मुद्रा में बदलने और लेनदेन की ऊंची लागत को लेकर चिंता जताई है।
इंटरनेशनल ट्रेड प्रैक्टिस के तहत कच्चे तेल के आयात के सभी कॉन्ट्रैक्ट्स के भुगतान की प्रचलित मुद्रा अमेरिकी डॉलर है। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने विभाग से संबंधित संसदीय समिति को बताया है कि वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान सार्वजनिक पेट्रोलियम कंपनियों ने कच्चे तेल के आयात के लिए कोई भी भुगतान भारतीय रुपये में नहीं किया। कच्चे तेल की आपूर्ति करने वाले देशों ने फंड को पसंदीदा मुद्रा में बदलने, इससे जुड़ी उच्च लेनदेन लागत और विनिमय दर के जोखिमों पर अपनी चिंता जताई है।
पिछले सप्ताह संसद में पेश की गई समिति की रिपोर्ट में मंत्रालय के इस पक्ष का उल्लेख है। इसके मुताबिक, सार्वजनिक क्षेत्र की इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (IOC) ने कहा है कि उसे उच्च लेनदेन लागत का सामना करना पड़ा है, क्योंकि कच्चे तेल के आपूर्तिकर्ता अतिरिक्त लेनदेन लागत का भार IOC पर डालते हैं। मंत्रालय ने कहा कि कच्चे तेल के लिए भुगतान भारतीय रुपये में किया जा सकता है, बशर्ते आपूर्तिकर्ता इस संबंध में नियामकीय दिशानिर्देशों का पालन करें।
प्रतिदिन 46 लाख बैरल तेल का आयात
मंत्रालय ने कहा है कि इस समय रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और सार्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम कंपनियों ने कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए भारतीय मुद्रा में खरीदारी करने के लिए कोई भी समझौता नहीं किया है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है और अपनी अधिकांश जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है। मंत्रालय ने समिति को बताया कि भारत की कच्चे तेल की खपत लगभग 55-56 लाख बैरल प्रतिदिन है। इसमें से हम प्रतिदिन लगभग 46 लाख बैरल तेल का आयात करते हैं, जो दुनिया में कुल तेल व्यापार का लगभग 10 प्रतिशत है।