एक साल लगभग हर महीने दाल कम से कम 10% महंगी हो रही है। पिछले महीने मई में दाल 18 फीसदी महंगा हुआ था। अब मौसम विभाग के नए आंकड़ों के मुताबिक दाल पैदा करने वाले प्रमुख क्षेत्रों में बारिश की कमी के चलते दाल और महंगी हो सकती है। इससे जमाखोरों पर सख्ती करके महंगाई को थामने की सरकार की कोशिश कमजोर हो सकती है। सरकार ने दालों के स्टॉक की नई लिमिट फिक्स कर दी है। हालांकि अब माना जा रहा है कि मौसम की मार पड़ी तो सरकारी कोशिश से जो राहत होगी, वह अस्थायी ही होगी।
सरकारी कोशिशों से अब दालें हो रही हैं सस्ती
एक न्यूज एजेंसी इनफॉर्मिस्ट ने आज 24 जून को खुलासा किया कि मिलर्स से कमजोर मांग के चलते इंडिया पल्सेज एंड ग्रेन्स एसोसिएशन को तुअर दाल की कीमतों पर दबाव दिख रहा है। उपभोक्ता मामलों की सचिव निधि खरे ने पुष्टि की कि स्टॉक सीमा लागू होने के बाद से कीमतों में गिरावट शुरू हो गई है। सरकार अकेले दस लाख टन तुअर दाल का बफर स्टॉक बनाने की भी योजना बना रही है।
मौसम सरकारी कोशिशों में लगा सकता है अड़ंगा
एक तरफ सरकार देश में दालों का उत्पादन बढ़ाने के लिए कदम उठा रही है, वहीं मौसम इसमें रुकावट डाल रही है। इस वर्ष दक्षिण-पश्चिम मानसून की धीमी चाल उत्पादन को प्रभावित कर सकती है क्योंकि जिन क्षेत्रों में सबसे अधिक बारिश की कमी है, वे ही क्षेत्र हैं जहां देश में सबसे अधिक दाल पैदा होता है। इस समय दाल पैदा करने वाले सभी अहम राज्यों में फिलहाल लगभग सूखे की स्थिति है।
भारत में खाद्य महंगाई की सबसे बड़ी वजहों में एक दाल भी है क्योंकि यह लगभग हर थाली का किसी न किसी रूप में हिस्सा है। सरकार ने तुअर दाल की एमएसपी ₹550 प्रति क्विंटल बढ़ाकर ₹7,550 कर दिया है ताकि किसान इसे अधिक से अधिक पैदा करें। अभी स्थिति ये है कि घरेलू जरूरतों को आयात कर पूरा करना पड़ता है। अप्रैल 2023 से मार्च 2024 के बीच भारत ने 46.5 लाख टन दाल आया किया था जो छह साल में सबसे अधिक रहा।