तेल उत्पादक देशों के संगठन OPEC+ ने एक बार फिर कच्चे तेल देशों के उत्पादन को बढ़ाने का फैसला एक महीने आगे खिसका दिया है। यह दूसरी बार है, जब ओपेक+ ने इसे आगे खिसकाया है। पहले योजना थी कि कच्चे तेल के उत्पादन को दिसंबर से बढ़ाया जाएगा लेकिन अब जनवरी से इसे बढ़ाया जाएगा। यह फैसला वैश्विक स्तर पर इकॉनमिक आउटलुक में अनिश्चितता के चलते कीमतों में उतार-चढ़ाव के चलते लिया गया है। रुस और मिडिल ईस्ट के तेल उत्पादक देशों की योजना दिसंबर से हर दिन 1.80 लाख बैरल तेल और निकालने की थी। हालांकि अब ओपेक की वेबसाइट पर रविवार को दी गई जानकारी के मुताबिक इसकी सप्लाई में फिलहाल कोई बदलाव नहीं किया जाएगा।
एक बार पहले भी खिसक चुकी है टाइमलाइन
ओपेक+ ने एक बार पहले भी अक्टूबर में तेल उत्पादन बढ़ाने का फैसला टाल दिया था। इसकी वजह यह थी कि चीन में मांग कमजोर हो गई थी और अमेरिका से आपूर्ति बढ़ने लगी, जिससे कीमतों पर दबाव पड़ा। पिछले चार महीने में ब्रेंट फ्यूचर्स के दाम 17 फीसदी गिर चुके हैं और यह 73 डॉलर के करीब आ गया है। यह इतना कम है कि सऊदी अरब और ओपेक+ के अन्य कई देशों के सरकारी खर्चों के लिए पर्याप्त नहीं है।
सऊदी अरब की बात करें तो इंटरनेशनल मॉनीटरी फंड के मुताबिक क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की महत्वाकांक्षी आर्थिक योजनाओं के लिए जितना फंड चाहिए, उसके हिसाब से कच्चे तेल का भाव 100 डॉलर प्रति बैरल के करीब होना चाहिए। वहीं रुस की बात करें तो यूक्रेन से लड़ाई के लिए भी इसे फंड चाहिए।
मार्केट को कितना मिलेगा सपोर्ट?
कच्चे तेल के उत्पादन में बढ़ोतरी का फैसला आगे खिसक चुका है लेकिन इससे मार्केट को अधिक मजबूती नहीं मिलेगी क्योंकि यह फैसला चौंकाने वाला नहीं था और अधिकतर ट्रेडर्स को ऐसा ही अनुमान था। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी का अनुमान है कि अगर ओपेक+ उत्पादन नहीं बढ़ाते हैं तो भी अगले साल तेल की अधिकता रहने वाली है। सिटी ग्रुप और जेपीमॉर्गन का तो अनुमान है कि इसकी कीमतें अगले साल 2025 में 60 डॉलर तक गिर सकती हैं।