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गेहूं के दाम घटाने के सरकारी उपायों से जानिए क्यों बढ़ी किसानों की मुश्किल

गेहूं के दाम गिराने की जगह सरकार खुले बाजार से गेहूं की खरीद करे ताकि किसानों को अधिकतम कीमत मिले। MSP का मतलब मिनिमम सपोर्ट प्राइस है, लेकिन सरकार इसे मैक्सिमम सेलिंग प्राइस बनाना चाहती है और किसी भी तरह कीमत को MSP के नीचे रखने का प्रयास किया जा रहा है, जो किसानों के लिए नुकसानदेह है

Bhuwan Bhaskarअपडेटेड Mar 06, 2023 पर 8:28 AM
गेहूं के दाम घटाने के सरकारी उपायों से जानिए क्यों बढ़ी किसानों की मुश्किल
आम तौर पर यह बहुत अच्छी स्थिति होनी चाहिए कि सरकार को किसानों से कुछ न खरीदना पड़े

गेहूं देश की प्रमुख रबी पैदावार है और न सिर्फ उपभोक्ता, बल्कि किसान और सरकार- हर किसी के लिए गेहूं का उत्पादन, उसकी कीमत और उससे जुड़ी मौसम की खबरें बेहद महत्वपूर्ण होती हैं। 2021-22 के दौरान घरेलू उत्पादन में कमी, यूक्रेन-रूस की लड़ाई और कुछ अन्य बुनियादी कारणों ने गेहूं की कीमतों को 3000 रुपये प्रति क्विंटल के ऊपर पहुंचा दिया और यह स्थिति महीनों तक बनी रही।

अमूमन 2000 रुपये प्रति क्विंटल के नीचे बिकने वाले गेहूं की कीमतों के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के कई साइड इफेक्ट हुए, जिनमें दो सबसे प्रमुख हैं – किसानों को शानदार लाभ हुआ और 2022-23 में बुवाई का रकबा रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया, और दूसरा सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर किसानों से खरीद के लिए पर्याप्त गेहूं नहीं मिला।

आम तौर पर यह बहुत अच्छी स्थिति होनी चाहिए कि सरकार को किसानों से कुछ न खरीदना पड़े। MSP का मतलब ही यह है कि भाव उसके ऊपर हों, किसान फसल बाजार में बेचे और यदि किसी कारणवश भाव MSP से नीचे आ जाए, तो सरकार को मदद के तौर पर किसानों से फसल खरीदना पड़े। लेकिन, गेहूं के मामले में कहानी कुछ अलग है।

लेकिन पिछले साल गेहूं के भाव को नियंत्रित करने के लिए किए गए सरकारी प्रयासों को देखें, तो समझ आता है कि मुफ्त अनाज बांटने की सरकारी स्कीमों और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के नाम पर हमारे देश की सरकारें किसानों का गला कैसे घोंटती हैं। पिछले साल पहली बार गेहूं की फसल के फंडामेंटल कारणों से जब भाव ऊपर जाना शुरू हुआ, तो पहले तो सरकार ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी और जब फिर भी कीमतें बढ़ना रुकी नहीं, तो भारतीय खाद्य निगम (FCI) के स्टॉक बेचना शुरू किया। पहली बार गेहूं के किसानों को अच्छी कीमत मिल रही थी, लेकिन सरकारी प्रयासों से गेहूं आखिरकार लगभग 1000 रुपये प्रति क्विंटल नीचे आ चुका है।

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