वित्तीय संकटों से घिरे हेलीकॉप्टर ऑपरेटर पवन हंस (Pawan Hans) के लिए सरकार को तीन वित्तीय बोलियां मिली हैं और इस सरकारी कंपनी की विनिवेश प्रक्रिया अगले दो महीने में पूरी हो सकती है। इस मामले से सीधे वाकिफ सूत्रों ने मनीकंट्रोल को यह जानकारी दी है।
वित्तीय संकटों से घिरे हेलीकॉप्टर ऑपरेटर पवन हंस (Pawan Hans) के लिए सरकार को तीन वित्तीय बोलियां मिली हैं और इस सरकारी कंपनी की विनिवेश प्रक्रिया अगले दो महीने में पूरी हो सकती है। इस मामले से सीधे वाकिफ सूत्रों ने मनीकंट्रोल को यह जानकारी दी है।
उन्होंने बताया कि पवन हंस के निजीकरण से सरकार को 300 से 350 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है। पवन हंस के पास 40 से अधिक हेलीकॉप्टर का बेड़ा है और करीब 900 कर्मचारी हैं। इसमें से 450 कर्मचारी स्थायी पदों पर हैं। पवन हंस के निजीकरण का यह सरकार की तरफ से पांचवां प्रयास है।
सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, "हम ट्रांजैक्शन एडवाइजर के साथ काम कर रहे हैं और पवन हंस के विनिवेश प्रक्रिया को पूरा करने के अंतिम चरण में है। अगले दो महीने में इसके पूरा हो जाने की उम्मीद है।" हालांकि अधिकारी ने यह नहीं बताया कि पवन हंस के लिए किन ऑर्गनाइजेशन ने बोली लगाई है।
कई रिपोर्टों में पवन हंस के कर्मचारी यूनियन, ग्लोबल वेक्ट्रा हेलिकॉर्प और हेलिगो चार्टर्स की तरफ से बोली लगाए जाने की उम्मीद की गई है। हालांकि इन संभावित खरीदारों में से किसी ने भी मनीकंट्रोल से पुष्टि नहीं किया कि उन्होंने वित्तीय बोलियां जमा की हैं।
सरकार बेचेगी पूरी 51 फीसदी हिस्सेदारी
सरकार पवन हंस में अपनी 51 फीसदी की पूरी हिस्सेदारी बेच रही है। बाकी 49 फीसदी हिस्सेदारी पब्लिक सेक्टर की कंपनी ऑयल एंड नैचुरल गैस कॉरपोरेशन (ONGC) के पास है और वह भी अपनी पूरी हिस्सेदारी बेचना चाहती है।
1985 में हुई थी स्थापना
पवन हंस की स्थापना 1985 में की गई थी और इसके पास 40 से अधिक हेलीकॉप्टर का बेड़ा है। यह कंपनी ओएनजीसी को तेल और गैस के खोज से जुड़ी गतिविधियों के लिए हेलीकॉप्टर सेवाएं देती है। साथ ही पूर्वोत्तर राज्यों में सरकार के विभिन्न कार्यों के लिए भी हेलीकॉप्टर सेवाएं मुहैया कराती है।
2019-20 में हुआ था 28 करोड़ का घाटा
कंपनी को वित्त वर्ष 2019-20 में कुल 28 करोड़ रूपये का घाटा हुआ था और उसके एक साल पहले यह आंकड़ा 69 करोड़ रुपये था। सरकार ने पवन हंस में अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए 2018 में बोलियां मंगाई थीं। हालांकि जब ONGC ने अपनी हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया तो सरकार ने अपने कदम वापस खींच लिए। 2019 में कंपनी को बेचने का एक और प्रयास हुआ था लेकिन तब निवेशकों ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई।
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