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डिफेंस में आत्मनिर्भर भारत अभियान मिलिट्री नौकरशाही की दया पर नहीं होनी चाहिए

निर्णय लेने और उसको लागू करने में डिफेंस ब्यूरोक्रेसी का रिकॉर्ड बहुत ही खराब रहा है

अपडेटेड Aug 31, 2021 पर 3:13 PM
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तमिलनाडु के वेलिंगटन में डिफेंस सर्विस स्टाफ कॉलेज (Defence Services Staff College - DSSC) मे संबोधन के दौरान राजनाथ सिंह ने कहा कि उनका मंत्रालय दुश्मनों के खिलाफ लड़ने के ले एकीकृत युद्ध समूहों (integrated battle groups) के गठन पर जोर दिया।

जहां एक तरफ राजनाथ सिंह सुधारों और सैन्य सेनाओं के पक्ष में नजर आ रहे हैं। वहीं उनके बयानों से इस बात के भी संकेत मिलते हैं कि किस तरह से भारतीय सुरक्षा सेनाएं नौकरशाही और लालफीताशाही के जाल में जकड़ी हुई हैं। मिनिट्री ब्यूरोक्रेसी किसी भी तरीके से सिविल ब्यूरोक्रेसी से कम कुख्यात नहीं है। निर्णय लेने और उसको लागू करने में डिफेंस ब्यूरोक्रेसी का रिकॉर्ड बहुत ही खराब रहा है।

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कई मामलों में तो ये देखने को मिला है कि मिलिटी टेक्नोलॉजी कहीं ज्यादा तेजी से बदलती है। जबकि मिलिट्री और सिविल ब्यूरोक्रेसी तकनीकी के पिछली पीढ़ी पर ही अटकी रहती है। भारतीय संविधान की तरह से ही डिफेंस भी defence acquisition manual भी 600 पेजों का एक भारी भरकम पोथा है। जिसमें औपनिवेशिक काल के तमाम नियम कानून अभी भी भरे पड़े हैं। संभवत: ये दुनिया भर की मिलिट्री में सबसे लंबा लिखित दस्तावेज है। जिनमें समय के हिसाब से बदलाव की जरूरत है। 

बता दें कि self-contained integrated battle group की कन्सेप्ट नहीं है। भारतीय पार्लियामेंट पर जैसे मोहम्द द्वारा 13 दिसंबर 2001 को किए गए हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन पराक्रम शुरू किया था। उस दौरान ही बड़ी मात्रा में भारतीय सेनाओं का पाकिस्तान की तरफ मोबलाइजेशन हुआ था। और उसी समय यानी आज से दो दशक पहले ही self-contained integrated battle group का कन्सेप्ट सामने आया था। लेकिन तब से अब तक इसमें कोई व्यहारिक अमल होता नजर नहीं आ रहा है। इसी तरह थिएटर कमांड के गठन पर भी तमाम अड़चने आती दिख रही हैं।

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हालांकि अब अच्छी बात यह है कि पीएममोदी और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मिलिट्री सिविलयन डिसीजन मेकिंग और देश के सामने खड़े खतरों के बीच के गैप को लेकर जागरूक हैं। 

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