आज के दौर में बच्चों की जिंदगी स्मार्ट डिवाइसेज के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गई है। पहले जहां खाली समय में बच्चे दोस्तों संग खेलते, कहानियां सुनते या किताबों में डूबे रहते थे, वहीं अब वही समय मोबाइल, टीवी और टैबलेट की स्क्रीन के हवाले हो गया है। स्कूल और कोचिंग की व्यस्तता के बाद जो थोड़ी सी फुर्सत मिलती है, उसमें भी बच्चे डिजिटल दुनिया में ही खोए रहते हैं। लेकिन इस आदत का सबसे बड़ा खामियाजा उनकी आंखों को भुगतना पड़ रहा है। मासूम उम्र में ही अब चश्मा आम बात बन चुकी है।
जहां पहले किशोर अवस्था में नजर कमजोर होती थी, अब 8-9 साल के बच्चों की आंखों पर भी चश्मा चढ़ गया है। डॉक्टर्स भी इस ट्रेंड को लेकर चिंतित हैं और इसे डिजिटल ओवरएक्सपोजर का सीधा नतीजा मानते हैं। वक्त है सजग होने का, वरना भविष्य धुंधला होता चला जाएगा।
देश के बड़े शहरों में डॉक्टर्स और रिसर्चर ये साफ तौर पर देख रहे हैं कि मायोपिया यानी दूर की नजर का दोष तेजी से बढ़ रहा है। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि कोरोना के बाद एक स्टडी में सामने आया कि बेंगलुरु जैसे शहर में हर चौथा बच्चा मायोपिया की चपेट में है। इसके पीछे सबसे बड़ा दोष मोबाइल और लैपटॉप जैसी डिजिटल चीजों का अत्यधिक इस्तेमाल है।
थोड़ी समझदारी से बच सकती हैं आंखें
हालांकि घबराने की जरूरत नहीं है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि माता-पिता थोड़ी सी सजगता दिखाएं, तो बच्चों की आंखों को इस समस्या से काफी हद तक बचाया जा सकता है। ये कोई बहुत बड़े उपाय नहीं, बल्कि रोज की आदतों में छोटे बदलाव हैं, जो बहुत काम आ सकते हैं।
अपनाएं 20-20-20 वाला जादुई फॉर्मूला
जब भी बच्चा स्क्रीन पर लगातार देख रहा हो, तो उसे हर 20 मिनट बाद 20 सेकंड के लिए कम से कम 20 फीट दूर देखना सिखाएं। ये छोटा सा ब्रेक आंखों को थकान से बचाता है और उनकी हेल्थ को बनाए रखता है। आप चाहें तो इसे एक गेम की तरह बच्चे के साथ अपनाएं ताकि उन्हें मजा भी आए और फायदा भी।
बाहर खेलने का नियम बनाएं, सिर्फ सलाह न दें
स्क्रीन से दूर ले जाने का सबसे आसान तरीका है – खुला आसमान और जमीन। दिन में कम से कम एक घंटा बच्चों को बाहर खेलने के लिए भेजें। हर दिन की ये एक घंटे की सूरज की रोशनी और हरियाली आंखों को उतनी ही जरूरत है, जितनी दूध और फल शरीर को। इससे मायोपिया का खतरा धीरे-धीरे कम होने लगता है।
स्क्रीन की दूरी का रखें ख्याल
अक्सर बच्चे मोबाइल या लैपटॉप को मुंह के बिल्कुल पास ले आते हैं। पैरेंट्स को चाहिए कि वे बच्चे को सही दूरी से स्क्रीन देखने की आदत डालें। स्क्रीन को कम से कम एक हाथ की दूरी पर रखें और कमरे की लाइटिंग भी संतुलित होनी चाहिए ताकि आंखों पर जोर न पड़े। हल्की पीली या वॉर्म लाइट आंखों के लिए ज्यादा अनुकूल होती है।
डिस्क्लेमर: यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी के लिए है। किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।