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शरीर के ये छोटे-छोटे बदलाव हो सकते हैं बड़े संकेत, जानिए PCOD और PCOS की असली पहचान

PCOD and PCOS: महिलाओं में हार्मोनल बदलाव अब आम होते जा रहे हैं, खासकर PCOD और PCOS जैसी स्थितियों की वजह से। ये समस्याएं शरीर को अंदर से प्रभावित करती हैं। अगर समय रहते ध्यान न दिया जाए तो इसका असर लाइफस्टाइल और सेहत दोनों पर पड़ सकता है

अपडेटेड Jul 22, 2025 पर 8:30 AM
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PCOD and PCOS: इन समस्याओं का कोई स्थायी इलाज नहीं है

आजकल की तेज लाइफस्टाइल, अनियमित खानपान और तनाव का सीधा असर महिलाओं की सेहत पर दिखने लगा है। खासतौर से युवतियों और कामकाजी महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन की समस्या बढ़ रही है। इसी वजह से PCOD और PCOS जैसी स्थितियां तेजी से आम हो रही हैं। ये नाम सुनते ही कई महिलाओं को चिंता होने लगती है, क्योंकि यह सिर्फ एक शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी प्रभावित करने वाली स्थिति होती है। अक्सर अनियमित पीरियड्स, अचानक वजन बढ़ना, मुंहासे और थकान जैसी समस्याएं इसकी पहचान बन जाती हैं।

हालांकि शुरुआत में इस पर ध्यान दिया जाए, तो इसे कंट्रोल करना मुश्किल नहीं होता। जरूरी है समय रहते लक्षणों को पहचाना जाए और अपनी दिनचर्या में कुछ छोटे लेकिन असरदार बदलाव किए जाएं।

किशोरावस्था से शुरू हो सकता है P.C.O.S


पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम यानी P.C.O.S एक गंभीर हार्मोनल गड़बड़ी है, जो किशोरावस्था में ही शुरू हो सकती है। इसमें महिलाओं के शरीर में एंड्रोजन नामक पुरुष हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है, जिससे ओवरी में छोटे-छोटे सिस्ट बनने लगते हैं। इससे अंडाणु परिपक्व नहीं हो पाते और ओवुलेशन प्रभावित होता है, जिसके चलते पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं। इसके साथ ही चेहरे और शरीर पर अनचाहे बाल, वजन बढ़ना और भावनात्मक बदलाव जैसे अवसाद, थकान और चिड़चिड़ापन भी हो सकते हैं।

P.C.O.S से जुड़ी स्वास्थ्य जटिलताएं

P.C.O.S न केवल मासिक धर्म से जुड़ी समस्या है, बल्कि यह महिलाओं की सम्पूर्ण सेहत पर असर डालती है। लंबे समय तक अनियंत्रित रहने पर इससे टाइप 2 डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, हृदय रोग और यहां तक कि गर्भाशय के अंदरूनी हिस्से का कैंसर होने का खतरा भी बढ़ जाता है। इससे प्रजनन क्षमता प्रभावित हो सकती है और कई महिलाओं को गर्भधारण में कठिनाई होती है।

क्या है P.C.O.D और कैसे अलग है यह?

पॉलीसिस्टिक ओवरी डिजीज यानी P.C.O.D भी ओवरी से जुड़ी एक आम समस्या है, लेकिन ये P.C.O.S से कम गंभीर मानी जाती है। इसमें अंडाशय अपरिपक्व अंडाणु रिलीज करता है, जो समय के साथ सिस्ट में बदल जाते हैं। ये समस्या भी हॉर्मोनल असंतुलन का परिणाम है, लेकिन इसके लक्षण अपेक्षाकृत हल्के होते हैं। महिलाओं को तैलीय त्वचा, मुंहासे, हल्की पीरियड्स अनियमितता और थकान जैसी दिक्कतें हो सकती हैं।

P.C.O.D और P.C.O.S में अंतर

हालांकि नाम मिलते-जुलते हैं, लेकिन दोनों स्थितियों की गंभीरता और प्रभाव अलग-अलग होते हैं। जहां P.C.O.D जीवनशैली में बदलाव से काफी हद तक कंट्रोल में आ सकता है, वहीं P.C.O.S में दवाइयों के साथ-साथ मेडिकल सुपरविजन की जरूरत होती है। P.C.O.D में महिलाएं सामान्य रूप से गर्भधारण कर सकती हैं, लेकिन P.C.O.S में ये प्रक्रिया कठिन हो सकती है। इसके अलावा, P.C.O.S का मेटाबोलिक सिस्टम पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है।

कैसे पाएं इनसे राहत?

इन समस्याओं का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन कुछ आदतों में बदलाव लाकर लक्षणों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। हेल्दी डाइट, नियमित व्यायाम और तनाव मुक्त जीवनशैली बेहद जरूरी है। ज्यादा मीठा और प्रोसेस्ड फूड से दूरी बनाना चाहिए। साथ ही, नींद पूरी लेना और नियमित रूप से डॉक्टर से चेकअप कराना भी आवश्यक है, ताकि किसी भी संभावित जोखिम को समय रहते पहचाना जा सके।

क्यों जरूरी है समय पर ध्यान देना?

कई बार महिलाएं अपने शरीर से मिलने वाले संकेतों को हल्के में लेती हैं और इलाज में देर कर देती हैं। खासकर प्रजनन उम्र की महिलाओं के लिए ये गंभीर हो सकता है। यदि समय रहते इलाज और जागरूकता अपनाई जाए, तो P.C.O.S और P.C.O.D जैसी स्थितियों को काबू में लाकर एक स्वस्थ जीवन जिया जा सकता है। इसलिए जरूरी है कि महिलाएं अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें और नियमित जांच कराएं।

डिस्क्लेमर: यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी के लिए है। किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।

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