राजस्थान में एक उच्च-स्तरीय समिति कोटा में स्टूडेंट्स की आत्महत्या (Kota Student's Suicide) के मामलों को रोकने के उपाय बताएगी। कोटा में पिछले कुछ समय से ऐसे मामलों की संख्या काफी बढ़ी है। माना जा रहा है कि समिति कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में दाखिले के लिए स्टूडेंट की न्यूनतम उम्र तय करने का सुझाव दे सकती है। वह बीच में कोचिंग में पढ़ाई छोड़ने वाले स्टूडेंट्स को फीस लौटाने की भी सिफारिश कर सकती है। साथ ही टीचर्स और हॉस्टल के मालिकों के लिए ट्रेनिंग मॉड्यूल शुरू करने भी सलाह दे सकती है। कोचिंग इंस्टीट्यूट में सातवीं क्लास से कम के बच्चों के दाखिले पर रोक लगाने के भी उपाय समिति पेश कर सकती है। एक अखबार ने इस बारे में खबर दी है।
तनाव और दबाव आत्महत्या की मुख्य वजहें
कोटा में स्टूडेंट्स की आत्महत्या करने की मुख्य वजह तनाव और दबाव माना गया है। स्टूडेंट्स प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। इस दौरान उन्हें काफी दबाव और तनाव का सामना करना पड़ता है। 15 सदस्यीय इस समिति की अगुवाई हायर एजुकेशन सेक्रेटरी भवानी देथा कर रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में आत्महत्या के मामले बढ़ने पर राजस्थान सरकार ने यह समिति बनाई थी। इस समिति में कोटा के जिला कलेक्टर और एएसपी भी शामिल हैं। यह समिति कोचिंग इंस्टीट्यूट के मालिक, हॉस्टल अथॉरिटीज, मनोवैज्ञानिक और पुलिस अधिकारियों सहित कई लोगों की राय ले रही है।
अगले हफ्ते समिति सौंपेगी रिपोर्ट
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, इस समिति को 18 सितंबर को अपनी रिपोर्ट सौंपनी है। इस समिति की सिफारिशों के आधार पर सरकार नई पॉलिसी तैयार करेगी। इसे राजस्थान विधानसभा के अगले सत्र में सदन में पेश किया जाएगा। कोटा में हर साल 2.5 लाख से ज्यादा नए स्टूडेंट्स कोचिंग के लिए आते हैं। वे इंजीनियरिंग के लिए JEE और मेडिकल की पढ़ाई के लिए NEET की कोचिंग करते हैं। इतनी बड़ी संख्या में हर साल स्टूडेंट्स के आने से कोटा एग्जाम की तैयारी का बड़ा सेंटर बन गया है।
इस साल आत्महत्या के मामलों में उछाल
इस साल कोटा में आत्महत्या के मामलों में उछाल आया है। अब तक ऐसे 24 मामले सामने आ चुके हैं। पिछले साल यह संख्या 15 थी। माना जा रहा है कि प्रतियोगी परीक्षाओं से जुड़े दबाव से निपटने में कई स्टूडेंट्स असफल रहते हैं। ऐसे में उनकी मानसिक सेहत को बेहतर बनाने के लिए जल्द गंभीर कदम उठाने की जरूरत है। कोटा की कोचिंग इंडस्ट्री करीब 10,000 करोड़ रुपये की हो गई है। अगर स्टूडेंट्स की आत्महत्या के मामलों पर रोक नहीं लगती है तो इस इंडस्ट्री को बड़ा नुकसान पहुंच सकता है।