बैंकों के एंप्लॉयीज देशभर में 24-25 मार्च को हड़ताल पर रहेंगे। इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (आईबीए) के साथ बातचीत में कोई समाधान नहीं निकलने के बाद बैंक यूनियंस ने हड़ताल पर जाने का फैसला लिया है। यूनियन फॉरम ऑफ बैंक यूनियन काफी समय से अपनी मांगें पूरी होने का इंतजार कर रही है। इनमें बैंकों में हफ्ते में 5 दिन कामकाज और खाली पड़े पदों पर नियुक्ति जैसी मांगें शामिल हैं। सरकारी बैंकों में वैकेंसी सरकार और एंप्लॉयीज यूनियंस के बीच सबसे बड़ा मसला है। इस बारे में दोनों की अलग-अलग दलीलें हैं।
सरकार और एंप्लॉयीज यूनियंस की अलग-अलग दलील
केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने कहा है कि बैंकों में स्वीकृत किए गए कलर्क्स और सबओर्डिनेट्स के 95 फीसदी पोजीशन भरे जा चुके हैं। लेकिन, एंप्लॉयीज यूनियंस यह मानने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि बैंकों में स्टाफ की भारी कमी है। इससे बैंक एंप्लॉयीज पर काम का बोझ काफी बढ़ गया है। स्थिति से निपटने के लिए बैंक अस्थायी आधार पर हायरिंग कर रहे हैं। सवाल है कि दोनों में से कौन सही है?
सरकारी बैंकों में 7.58 लाख एंप्लॉयीज
चौधरी ने संसद में बताया था कि 2011 में सरकारी बैंकों में एंप्लॉयीज की संख्या 6.18 लाख थी, जो जनवरी 2025 में बढ़कर 7.58 लाख हो गई है। ऑफिसर्स की संख्या में सबसे ज्यादा इजाफा हुआ है। कलर्क्स और सबओर्डिनेट एंप्लॉयीज की संख्या स्थिर है या इसमें गिरावट आई है। सरकार का कहना है कि रिटायरमेंट या प्लान के बगैर एंप्लॉयीज का एग्जिट रहा है। सरकार का यह भी मानना है कि बैंकों में पर्याप्त एंप्लॉयीज हैं।
सरकारी बैंकों के एंप्लॉयीज पर कामकाज का ज्यादा दबाव
लेकिन, रिजर्व बैंक की रिपोर्ट्स पर आधारित यूनियंस के आंकड़ें अलग कहानी कहते हैं। 2013 और 2024 के बीच कलर्क्स लेवल के स्टाफ की संख्या 1.5 लाख से ज्यादा घटी है, जबकि सब-स्टाफ की संख्या 50,000 तक कम हुई है। उनका दावा है कि हायरिंग पर रोक लगी हुई है। हालांकि, यह रोक सरकार के कथित अनौपचारिक निर्देश की वजह से है। इससे बैंकों को कामकाज के बढ़ते बोझ से निपटने में दिक्कत आ रही है।
अस्थायी एंप्लॉयीज पर बढ़ रही बैंकों की निर्भरता
एंप्लॉयीज यूनियंस का कहना है कि प्राइवेट बैंकों में एंप्लॉयीज की संख्या बढ़ी है। यह 2011 में 1.7 लाख थी, जो 2024 में बढ़कर 8.46 लाख हो गई। इससे पता चलता है कि बैंकिंग सेक्टर का आकार कितना बढ़ा है। दोनों पक्षों की अलग-अलग दलीलों से कुछ सवाल खड़े होते हैं। सरकार के मुताबिक, अगर बैंकों में 95 फीसदी पद भरे हुए हैं तो फिर बैंकों की निर्भरता अस्थायी वर्कर्स पर क्यों बढ़ रही है? एंप्लॉयीज कामकाज के ज्यादा बोझ, बार-बार ओवरटाइम और ऑफिशियल समय में जरूरी काम नहीं निपटा पाने की शिकायत क्यों कर रहे हैं?
कॉस्ट बढ़ने से रोकने के नहीं हो रहा रिक्रूटमेंट
अगर सरकार का डेटा सही है तो एंप्लॉयीज की वर्तमान संख्या कामकाज संभालने के लिहाज से पर्याप्त होनी चाहिए। लेकिन, अगर यूनियंस का डेटा जमीनी हकीकत के करीब है तो इसका मतलब है कि सरकार के दावे का मकसद स्टाफ की कमी की समस्या को तवज्जो नहीं देना है। सच्चाई दोनों के बीच में दिखती है। वैकेंसी उतनी ज्यादा नहीं हो सकती, जितनी यूनियंस मांग कर रही हैं। लेकिन, ग्राहकों की बढ़ती संख्या और सरकार की नई स्कीमों को देखते हुए कामकाज के लिए एंप्लॉयीज की संख्या बढ़ाना जरूरी है।
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स्टाफ की कमी का असर सर्विस की क्वालिटी पर
अगर सरकारी बैंक स्थायी रिक्रूटमेंट से बचने के लिए कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स पर निर्भर कर रहे हैं तो यह डेटा की गड़बड़ी नहीं है बल्कि सरकार जानबूझकर कॉस्ट घटाने के लिए ऐसा कर रही है। सवाल यह है कि क्या कॉस्ट घटाने की यह कवायद जारी रह सकती है या इसका असर सर्विस की क्वालिटी और लंबी अवधि में एंप्लॉयीज के आत्मविश्वास पर पड़ेगा?