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डिजिटल निगरानीः सरकार करे तो हां और प्राइवेट संस्थाएं करें तो ना, आखिर ऐसा क्यों?

SPIR-2023 रिपोर्ट में सर्वे के आधार पर जो निष्कर्ष निकाला गया है वो चौंकाने वाले हैं क्योंकि नागरिकों की बड़ी तादाद सरकारी एजेंसियों के हाथों होने वाली डिजिटल निगरानी के पक्ष में है

Chandan Shrivastawaअपडेटेड Apr 05, 2023 पर 5:17 PM
डिजिटल निगरानीः सरकार करे तो हां और प्राइवेट संस्थाएं करें तो ना, आखिर ऐसा क्यों?
स्थिति यह किः आपकी निजी जानकारियों पर अब आपका वश नहीं है

`` वे जानते हैं मेरी रसोई में क्या बना है आज / मैनें किस बैंक में खोला है खाता /... वे सुन लेते हैं मेरी, प्रेमी से हुई बातचीत में, आयी बेचारे देश की हल्की झलक / फोन रखते ही वे भेजते हैं मुझे बहुत से नए पुरुषों की छवि किः आप इनसे मित्रता कर सकते हैं। ``

ऊपर की ये पंक्तियां `डिजिटल युग` नाम से लिखी और फेसबुक पर शेयर की गई कविता की हैं। इन पंक्तियों को रचा है महानगरी कोलकाता के जीवन-परिवेश में रची-बसी कवयित्री ज्योति शोभा ने। कविता में जो चिन्ता दर्ज की गई है क्या कभी वैसी चिन्ता ने आपको भी सताया है ?

ऑनलाइन जानकारी के दुरूपयोग की चिंता

क्या आपको भी लगता है कि आपके निजी जीवन पर किसी की नजर है? कोई है जो कपड़ों से लेकर कविताओं तक और राजनेताओं से लेकर प्रेमियों तक की आपकी पसंद-नापसंद को ना सिर्फ जानता है बल्कि उसे प्रभावित करने की भी कोशिश कर रहा है ? थोड़े में यह कि क्या आपको अपनी निजी जिन्दगी की हो रही डिजिटल निगरानी की जानकारी है और क्या इस निगरानी को लेकर आप अक्सर असहज महसूस करते हैं?

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