हाल में आए हाई फ्रीक्वेंसी आंकड़ों ने देश की इकोनॉमी की मजबूत रिकवरी को लेकर उम्मीदें बढ़ा दी हैं लेकिन अर्थशास्त्रियों का मानना है कि एशिया की तीसरी बड़ी इकोनॉमी के सामने ग्लोबल मंदी और केंद्रीय बैंक के मौद्रिक नीतियों में कड़ाई जैसी कई चुनौतियां है।
जुलाई महीने में भारत की उत्पादन गतिविधियां मजबूत रही हैं। कल आए जुलाई महीने के एसएंडपी ग्लोबल PMI आंकड़े 56.4 के 8 महीने के हाई पर रहे हैं। ये इस बात का संकेत है कि इकोनॉमी पर कीमतों का दबाव कम होना शुरु हो गया है। इसके अलावा जुलाई महीने में आए दूसरे आंकड़े भी अच्छे संकेत दे रहे हैं। जुलाई में पैसेंजर कार बिक्री में 16 फीसदी की बढ़त देखने को मिली है जबकि GST कलेक्शन 1.49 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है जो अब तक का दूसरा सबसे बड़ा मासिक कलेक्शन है। इसके अलावा 8 कोर इंडस्ट्रीज की ग्रोथ रेट जून महीने में औसतन 12.7 फीसदी रही है।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अब घरेलू मांग में सुधार ग्रोथ में मजबूती को तय करेगा। अर्थशास्त्रियों का यह भी कहना है कि इन अच्छे संकेतों के बावजूद इंडियन इकोनॉमी के लिए कई चुनौतियां भी नजर आ रही है।
Barclays के राहुल बाजोरिया (Rahul Bajoria) का कहना है कि आरबीआई भारत की इकोनॉमी को लाइन पर रखने के लिए आरबीआई अपनी पूरी कोशिश करेगा। इसके बावजूद इस बात की पूरी संभावना है कि ग्लोबल और घरेलू इकोनॉमी में कई चुनौतियों के कारण ग्रोथ के मोर्चे पर हमें कुछ परेशानी देखने को मिल सकती हैं।
उन्होंने आगे कहा कि कमजोर ग्लोबल आउटलुक , घरेलू राजकोषीय नीतियों में सख्ती, एनर्जी की बढ़ती लागत, आने वाले महीनों में देश की इकोनॉमिक रिकवरी पर अपना असर दिखा सकती हैं। ग्लोबल इकोनॉमी में कमजोरी का असर इंडिया के नए एक्सपोर्ट्स ऑर्डर पर दिखना शुरु हो गया है जिसके चलते 2022 के दूसरी छमाही में देश की उत्पादन गतिविधियों में सुस्ती देखने को मिल सकती है।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यूएस फेड तमाम विरोधाभाषी आर्थिक संकेतों के बावजूद अपनी मौद्रिक नीतियों में कड़ाई जारी रख सकता है। इसके अलावा चीन से भी मंदी के नए संकेत मिल रहे हैं जो ओवर ऑल ग्रोथ पर अपना असर डाल सकते हैं। IMF ने 2022 के अपने ग्लोबल ग्रोथ अनुमान में 0.40 फीसदी की कटौती करके इसको 3.2 फीसदी कर दिया है। जबकि इसने साल 2023 के अपने ग्लोबल ग्रोथ अनुमान में 0.70 फीसदी की कटौती करके इसको 2.9 फीसदी कर दिया है। IMF का कहना है कि जल्द ही दुनिया हमें मंदी के दहलीज पर नजर आ सकती है। हालांकि भारत सरकार ने कहा कि देश में मंदी के जीरो चांस है लेकिन आरबीआई की कठोर मौद्रिक नीतियों से इकोनॉमिक गतिविधियों पर निगेटिव असर पड़ सकता है।
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