6 सितबंर को जारी एक एक सरकारी अधिसूचना के मुताबिक सल्फर डाईऑक्साइड (SO2)उत्सर्जन से संबंधित नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिए कंपनियों के 2 साल का विस्तार मिल गया है। पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के 10 किमी के दायरे में या 10 से अधिक आबादी वाले शहरों में काम करने वाली यूटिलिटीज के लिए इस समय सीमा को "31 दिसंबर, 2024" तक बढ़ा दिया गया है। वहीं, "गंभीर रूप से प्रदूषित" के रूप में चिह्नित क्षेत्रों के 10 किमी के दायरे में संचालित होने वाली बिजली इकाइयों को 31 दिसंबर, 2025 तक SO2 उत्सर्जन मानदंडों का पालन करना होगा।
इस अधिसूचना में आगे कहा गया है कि ऊपर बताई गई किसी भी श्रेणी में नहीं आने वाली उत्पादन इकाइयों को 31 दिसंबर, 2026 तक उत्सर्जन मानदंडों का पालन करना होगा।
भारतीय शहरों में से कुछ शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक हैं। बता दें देश की 75 फीसदी बिजली का उत्पादन करने वाली ताप बिजली उत्पादन इकाइयां सल्फर- और नाइट्रस-ऑक्साइड के लगभग 80 प्रतिशत औद्योगिक उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। सल्फर- और नाइट्रस-ऑक्साइड फेफड़ों की बीमारियों, एसिड रेन और स्मॉग का सबसे बड़ा कारण हैं।
बता दें कि मई 2022 में बिजली मंत्रालय ने पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखकर उत्सर्जन में कटौती करने वाले उपकरण स्थापित करने के लिए बिजली बनाने वाली कंपनियों के दो साल का समय और देने की मांग की थी। इस पत्र में पावर मिनिस्ट्री ने कहा था कि इन उपकरणों की उच्च लागत, धन की कमी, COVID-19 से संबंधित देरी और पड़ोसी चीन के साथ भू-राजनीतिक तनाव को देखते हुए इस समय सीमा में विस्तार की जरूरत है। इस पत्र को रॉयटर्स ने देखा था।
भारत ने शुरू में एफजीडी इकाइयों (उत्सर्जन में कटौती करने वाले उपकरण) को स्थापित करने के लिए ताप विद्युत संयंत्रों के लिए 2017 की समय सीमा निर्धारित की थी। बाद में इसे 2022 में समाप्त होने वाले विभिन्न क्षेत्रों के लिए अलग-अलग समय सीमा में बदल दिया गया था।