Electoral Bonds Scheme in Supreme Court: देश की सबसे बड़ी अदालत सु्प्रीम कोर्ट ने आज 15 फरवरी को चुनावी बॉन्ड्स पर रोक लगा दिया। इसे पहली बार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) ने वित्त विधेयक के जरिए करीब सात साल पहले वर्ष 2017 में पेश किया था। चुनावी बॉन्ड स्कीम की अधिसूचना को केंद्र सरकार ने 2 जनवरी 2018 को जारी किया था। इसे कैश में चुनावी चंदे के विकल्प के रूप में पेश किया गया था ताकि राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाई जा सके। इस बॉन्ड की योजना 2017 में आई थी और 2017 से ही इस मामले में कोर्ट में केस चल रहा है। यहां सात साल में कोर्ट में क्या-क्या हुआ, इसकी डिटेल्स दी जा रही है।
Electoral Bonds Scheme के कोर्ट में पड़ाव
2017: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस मामले को 2017 में उठाया था। इसमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और कांग्रेस नेता जया ठाकुर की याचिकाएं भी शामिल थीं। इन याचिकाओं में 2017 के वित्त अधिनियम और 2016 के वित्त अधिनियम में संशोधन की वैधता पर सवाल उठाया गया था।
2019: सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश पारित किया। इस आदेश में कोर्ट ने चुनाव आयोग से राजनीतिक फंडिंग डेटा पर सभी डिटेल्स पेश करने को कहा।
2022: केस स्थगित हो गया और सुनवाई की तारीख मार्च 2023 तक खिसका दी गई।
2023: मार्च में शुरुआती बहस हुई। याचिकाकर्ताओं ने मामले की सुनवाई के लिए संविधान पीठ के गठन की मांग की। इसके बाद मामला अक्टूबर में एक संविधान पीठ को भेजा गया था। इस मामले की सुनवाई पिछले साल 31 अक्टूबर से 2 नवंबर तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने की थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2 नवंबर को तीन दिनों तक मामले की सुनवाई के बाद चुनावी बांड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को फैसले के लिए सुरक्षित रख लिया।
2024: चुनावी बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया और इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया। कोर्ट ने कहा है कि SBI चुनावी बॉन्ड्स से जुड़ी सारी जानकारी 6 मार्च 2024 तक इलेक्शन कमीशन को दे और इलेक्शन कमीशन 13 मार्च तक अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर इसे पब्लिश करे। चुनाव आयोग यानी इलेक्शन कमीशन दो हफ्ते के भीतर यह जानकारी हासिल करे कि 30 सितंबर 2023 तक इस स्कीम से राजनीतिक दलों को कितना-कितना चंदा मिला।