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Electoral Bonds Scheme: चुनावी बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर लगाई रोक

CJI ने कहा कि राजनीतिक दल राजनीतिक प्रक्रिया में प्रासंगिक राजनीतिक इकाई हैं। मतदान का सही विकल्प अपनाने के लिए राजनीतिक फंडिंग के बारे में जानकारी आवश्यक है। आर्थिक असमानता राजनीतिक व्यस्तताओं के विभिन्न स्तरों को जन्म देती है।

अपडेटेड Feb 15, 2024 पर 12:51 PM
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Electoral bonds scheme: चुनावी बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की 5 जजों की पीठ ने चुनावी बॉन्ड स्कीम (Electoral Bonds Scheme) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुना दिया है। इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राजनीतिक फंडिंग के लिए चुनावी बांड स्कीम को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है।  चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि दो अलग-अलग लेकिन सर्वसम्मत फैसले हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को अनुच्छेद 19(1)(A) का उल्लंघन और असंवैधानिक माना है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को रद्द करते हुए कहा कि यह चंदा रिश्वत का जरिया बन सकता है। CJI ने कहा कि राजनीतिक दल राजनीतिक प्रक्रिया में प्रासंगिक राजनीतिक इकाई हैं। मतदान का सही विकल्प अपनाने के लिए राजनीतिक फंडिंग के बारे में जानकारी आवश्यक है। आर्थिक असमानता राजनीतिक व्यस्तताओं के विभिन्न स्तरों को जन्म देती है।

RTI का बताया उल्लंघन


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनाम चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि गुमनाम चुनावी बांड योजना अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि काले धन पर अंकुश लगाने के लिए सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि राजनीतिक दल चुनावी प्रक्रिया में प्रासंगिक इकाइयां हैं और चुनावी विकल्पों के लिए राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानकारी आवश्यक है।

चुनावी बॉन्ड क्या है? (What is electoral bond?)

चुनावी बॉन्ड एक वित्तीय साधन हैं, जो किसी इंडिविजुअल या फिर संसथान को अपनी पहचान उजागर किये बिना किसी राजनितिक पार्टी को चंदा यानी डोनेशन देने की अनुमति देता है। ये बांड 1,000 रुपये से लेकर 1 करोड़ रुपये तक का हो सकता है। ये अनुदान ब्याज मुक्त होता है।

बांड योजना को सरकार ने 2 जनवरी, 2018 को अधिसूचित किया था। इसे राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था। योजना के प्रावधानों के अनुसार, चुनावी बांड भारत के किसी भी नागरिक या देश में निगमित या स्थापित इकाई द्वारा खरीदा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बांड खरीद सकता है।

संविधान पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल हैं। पीठ ने पिछले साल 31 अक्टूबर को कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और NGO एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) द्वारा दायर याचिकाओं सहित चार याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी।

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