Unemployment Data: भारतीय युवाओं में बेरोजगारी की समस्या कितनी भयावह है, इसका अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि इस समय भारत में जितने बेरोजगार हैं, उनमें 83 फीसदी युवा हैं। इसके आंकड़े आज सामने आए हैं। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) और इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट (IHD) की इस इंडिया एंप्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024 को चीफ इकनॉमिक एडवाइजर वी अनंता नागेश्वरन ने 26 मार्च को जारी किया है। चिंता करने वाली बात ये है कि जिन युवाओं के कम से कम सेकंडरी एजुकेशन है, उनमें बेरोजगारी तेजी से बढ़ी है। 2000 में इनमें 35.2 फीसदी ही बेरोजगार थे लेकिन अब 2022 में यह आंकड़ा 65.7 फीसदी पर पहुंच गया। सेकंडरी एजुकेशन के बाद स्कूल छोड़ने की दर ऊंची बनी हुई है।
यह रुझान गरीब राज्यों और हाशिए पर रहने वाले लोगों में अधिक है। एक और अहम बात ये सामने आई है कि उच्च शिक्षा में बढ़ते नामांकन के बावजूद गुणवत्ता से जुडी चिंताएं बनी हुई हैं। सबसे खराब स्थिति यूपी, बिहार, ओडिशा, एमपी, झारखंड और छत्तीसगढ़ में स्थिति काफी खराब है। इन राज्यों में क्षेत्रीय नीतियों के चलते वर्षों से रोजगार की स्थिति काफी खराब है।
रेगुलर रोजगार में गिरावट का रुझान
स्टडी के मुताबिक लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (LFPR), वर्कर पॉपुलेशन रेश्यो (WPR) और बेरोजगारी दर (UR) 2000 से 2018 के बीच नीचे आई और 2019 के बाद ही इनमें सुधार के संकेत दिखे। हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस सुधार को एकदम शब्दश: नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि इसमें भी काफी किंतु-परंतु है। जैसे कि वेतन काफी हद तक स्थिर रहा है या उसमें गिरावट आई है। रेगुलर वर्कर्स और अपना कारोबार कर रहे लोगों के वेतन में 2019 के बाद गिरावट आई है। अनस्किल वर्कर्स का तो और बुरा हाल है और उनके एक बड़े हिस्से को 2022 में अनिवार्य न्यूनतम वेतन नहीं मिला।
रिपोर्ट के मुताबिक इनफॉर्मल एंप्लॉयमेंट की लेबर मार्केट में करीब 90 फीसदी हिस्सेदारी है। इसके अलावा रेगुलर एंप्लॉयमेंट की बात करें तो 2000 के बाद इसमें लगातार बढ़ोतरी दिखी लेकिन 2018 से गिरावट का रुझान रहा। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि आजीविका को लेकर असुरक्षा बढ़ी है। इसमें शहरीकरण और माइग्रेशन रेट में उछाल का अनुमान लगाया गया है। सबसे अधिक माइग्रेशन देश के पूर्वी और केंद्रीय हिस्से से दक्षिणी, पश्चिमी और उत्तरी हिस्से की तरफ हो सकता है।
पढ़े-लिखे लोगों पर अधिक पड़ी बेरोजगारी की मार
स्टडी के मुताबिक पढ़े-लिखे युवाओं पर बेरोजगारी की मार अधिक पड़ी है। 2021 की जनसंख्या में युवाओं की हिस्सेदारी महज 27 फीसदी थी जो 2036 तक घटकर 23 फीसदी पर आने का अनुमान है। कोविड के चलते यूथ लेबर मार्केट में चुनौतियां बढ़ी हैं। लॉकडाउन के बाद रिकवरी तो हुई है लेकिन पूअर क्वालिटी वाले कम, खासतौर से सेल्फ-एंप्लॉयमेंट और अनपेड फैमिली वर्क में इजाफा हुआ है। 2019 के बाद रोजगार में जो इजाफा हुआ है, वह मुख्य रूप से सेल्फ-एंप्लॉयड वर्कर्स के ही चलते आया।
युवाओं में स्किल्स की भारी कमी
स्टडी के मुताबिक युवाओं के बीच स्किल्स की कमी चिंता का विषय है। युवाओं का एक बड़ा हिस्सा डिजिटल साक्षर नहीं है और उनके पास बेसिक जानकारी भी नहीं है। इसकी वजह से उन पर बेरोजगारी की मार अधिक पड़ रही है। स्टडी के मुताबिक 90 फीसदी युवा स्प्रेडशीट पर मैथमिटकल फॉर्मूला नहीं डाल सकते हैं, 60 फीसदी फाइल को कॉपी-पेस्ट नहीं कर सकते हैं और कम से कम 75 फीसदी युवा को फाइल अटैच कर ईमेल नहीं भेज सकते हैं।
जेंडर गैप और सामाजिक असमानता भी दिखी
लेबर मार्केट में जेंडर गैप भी काफी है और महिलाओं की भागीदारी काफी कम है। वहीं पढ़ी-लिखी महिलाओं के लिए जिनके पास हायर एजुकेशन है, उन्हें रोजगार के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सामाजिक तौर पर फैली असमानता का असर रोजगार पर भी पड़ा है। एससी और एसटी को रोजगार के बेहतर मौके के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।