करवा चौथ का शुभ त्योहार 1 नवंबर को है। नॉर्थ इंडिया में इसे करक चतुर्थी या करवा चौथ के नाम से जाना जाता है। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए इस त्योहार के दौरान चंद्रमा निकलने तक निर्जला व्रत रखती है। महिलाएं मिट्टी के बर्तन जिसे करवा कहते हैं, उससे चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही खाना खाती हैं या पानी पीती हैं। जबकि परंपरागत रूप से यह व्रत विवाहित और जल्द ही विवाहित होने वाली महिलाएं रखती है। यहां आपको करवौथ का इतिहास, महत्व, मुहूर्त, व्रत कथा और उत्सव के बारे में बता रहे हैं।
करवा चौथ 2023 तारीख: करवा चौथ शुभ मुहूर्त
करवा चौथ हिंदू कैलेंडर के कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह 1 नवंबर बुधवार को है। द्रिक पंचांग के अनुसार करवा चौथ पूजा का मुहूर्त शाम 5:36 बजे से शाम 6:54 बजे तक है। व्रत के समय सुबह 6:33 बजे से शाम 6:15 बजे तक है और चंद्रोदय का समय रात 8:15 बजे है। इस बीच चतुर्थी तिथि 31 अक्टूबर को रात 9:30 बजे शुरू होगी और 1 नवंबर को रात 9:19 बजे समाप्त होगी।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार वीरावती नाम की एक रानी करवा चौथ के दौरान अपने भाइयों से मिलने जाती थी। जैसे-जैसे समय बीता वीरावती को थोड़ी बेहोशी महसूस होने लगी और वह चंद्रमा को देखकर अपना व्रत तोड़ने का बेसब्री से इंतजार करने लगी। उसकी हालत देखकर वीरावती के भाइयों ने उसे छलनी से दिये की रोशनी दिखाकर व्रत तोड़ने के लिए कहा। दुर्भाग्य से जैसे ही उसने ऐसा किया, उसके पति की मृत्यु की खबर आ गई। युक्ति जानने के बाद वीरावती ने हर महीने पूरी श्रद्धा के साथ व्रत रखने का संकल्प लिया और देवताओं से प्रार्थना की। अंत में उसका पति वापस आ गया।
त्योहार की उत्पत्ति का पता करवा देवी से लगाया जा सकता है, जिनके पति पर मगरमच्छ ने हमला किया था। सावित्री, जिन्होंने मृत्यु के देवता, भगवान यम से अपने पति की आत्मा वापस करने के लिए कहा था। एक अन्य कहानी में अर्जुन ध्यान करने के लिए नीलगिरी गए, तो द्रौपदी चिंतित हो गईं और उन्होंने उनकी सुरक्षा के लिए भगवान कृष्ण से मदद मांगी। कृष्ण ने उन्हें अर्जुन के लिए उपवास करने की सलाह दी, जैसे देवी पार्वती ने अपने पति भगवान शिव के लिए की थी।
करवा चौथ पूरे देश में मनाया जाता है, खासकर पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान सहित भारत के उत्तरी हिस्सों में। जहां करवा का अर्थ है मिट्टी का बर्तन, वहीं चौथ का अर्थ है चौथा दिन। इस त्योहार के दौरान विवाहित महिलाएं आकर्षक डिजाइनों वाले नए मिट्टी के बर्तन खरीदती हैं और उनमें मिठाइयां और चूड़ियां रखती हैं। वे नवविवाहित दुल्हन की तरह तैयार होने के लिए सोलह श्रृंगार (जैसे सिन्दूर, चूड़ियाँ, बिंदी आदि) भी करती हैं, लाल रंग के नए पारंपरिक कपड़े पहनती हैं और हाथों पर मेहंदी लगाती हैं।
इस दिन महिलाएं जल्द उठती हैं, स्नान करती हैं, सूर्योदय से पहले सरगी खाती हैं और पूरे दिन व्रत रखती हैं। वे चंद्रमा को देखकर और मिट्टी के बर्तन का उपयोग करके उसे 'अर्घ्य' देकर और अपने जीवनसाथी के हाथों से भोजन और पानी पीकर अपना व्रत तोड़ती है।