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अपने आंतरिक संकट से ध्यान हटाने के लिए पाकिस्तान कर रहा है कश्मीर मुद्दे का इस्तेमाल

पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान कंगाली की राह पर है। वो कई आंतरिक समस्याओं से जूझ रहा है। अब तो पाकिस्तान के अस्तित्व पर ही संकट के बादल मंडराने लगे हैं। ऐसे में पाकिस्तानियों का ध्यान भटकाने के लिए कश्मीर की ढपली बजाना शुरू कर देता है। इसके लिए सेना और जो उसके इशारे पर चलते हैं। उनका इस्तेमाल करना शुरू कर देता है

Arun Anandअपडेटेड Jan 05, 2024 पर 3:45 PM
अपने आंतरिक संकट से ध्यान हटाने के लिए पाकिस्तान कर रहा है कश्मीर मुद्दे का इस्तेमाल
स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे को लेकर पाक कब्जे वाले क्षेत्र बहुत ज्यादा पिछड़े हुए हैं।

पाकिस्तान अपनी समस्याओं से अपने ही अवाम और दुनिया भर का ध्यान भटकाने में सिद्धहस्त देश है। ध्यान भटकाने वाले इस परिदृश्य का निर्माण इसके सैन्य-प्रभुत्व वाले प्रतिष्ठान द्वारा सावधानीपूर्वक किया गया है। उनका पिछले सात दशक से एक ही एजेंडा है-आम जनता की रोजमर्रा की चिंताओं तथा पाकिस्तान के अस्तित्व को चुनौती देने वाले घरेलू मुद्दों से ध्यान हटाना।

सावधानी से तैयार की गई इस रणनीति का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पाकिस्तान अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में अपने हुक्मरानों से जवाबदेही की मांग न करें। न ही दुनिया भर का ध्यान इस ओर जाए कि कैसे पाकिस्तान में कट्टर मुल्लाओं व पंजाबी मुसलमानों को छोड़कर बाकी सब प्रांतों और जातीय समूहों का जबरदस्त दमन किया जा रहा है। बलूचिस्तान और कबायली इलाकों में लंबे समय से पूरी तरह अराजकता का माहौल है और वहां की जनता पाकिस्तान के चंगुल से आजाद होने के लिए व्यापक विद्रोह पर उतर आई है। यह पाकिस्तान के अस्तित्व को संकट में डालने वाली चुनौतियां हैं।

इन मुद्दों को पृष्ठभूमि में डाल कर उनसे ध्यान भटकाने के लिए पाक सेना और उसके इशारों पर चलने वाले राजनीतिज्ञ कश्मीर के मुद्दे को उठाने लगते हैं। इसका ताजा उदाहरण हाल के वर्षों में 5 जनवरी को कश्मीर के आत्मनिर्णय के अधिकार दिवस के रूप में नामित करना है।

इस प्रकार, 5 जनवरी ध्यान भटकाने वाली उन तारीखों की सूची में शामिल हो गया है, जिसमें 5 फरवरी (कश्मीर एकजुटता दिवस) और 27 अक्टूबर (कश्मीर काला दिवस) शामिल हैं, जो जम्मू और कश्मीर में बदलती वास्तविकताओं के कारण महत्व खो चुके हैं।

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