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हार्दिक पटेल हो या हिमंता बिस्वा सरमा, आखिर क्यों राहुल गांधी के करीबी उन्हें इस तरह छोड़ जाते हैं?

हार्दिक पटेल ने जाते-जाते पार्टी और उसके नेताओं के बारे में कुछ ज्यादा अच्छा नहीं कहा है। हार्दिक का स्वर भी कुछ-कुछ हिमंता बिस्वा सरमा से मिलता जुलता ही दिखा

अपडेटेड May 18, 2022 पर 5:51 PM
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हार्दिक पटेल (Hardik Patel) भी आखिरकार कांग्रेस से बाहर हो गए (FILE PHOTO)

2018 में राहुल गांधी (Rahul Gandhi), अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेवाणी और हार्दिक पटेल, ये चार नाम कभी एक साथ हुआ करते थे। दो चेहरे इस ग्रुप से बाहर हो गए हैं। हार्दिक पटेल (Hardik Patel) भी आखिरकार बाहर हो गए। हालांकि, उन्होंने जाते-जाते पार्टी और उसके नेताओं के बारे में कुछ ज्यादा अच्छा नहीं कहा है। हार्दिक का स्वर भी कुछ-कुछ हिमंता बिस्वा सरमा (Himanta Biswa Sarma) से मिलता जुलता ही दिखा।

हिमंता ने राहुल गांधी पर अपने पालतू कुत्ते पिडी को ज्यादा महत्व देने और उसे बिस्कुट खिलाने का आरोप लगाया था, जबकि सरमा उनसे मिलने का इंतजार करते रहे। जबकि हार्दिक ने कहा कि दिल्ली नेता उनकी बातें सुनने से ज्यादा चिकन सैंडविच को ज्यादा अहमियत देते थे।

कांग्रेस छोड़ने वाले इन नेताओं क्या समानता है? इनमें से ज्यादातर भारतीय जनता पार्टी (BJP) में शामिल हो गए हैं। मगर एक बात और भी समान है। उनमें से लगभग सभी नेता राहुल गांधी के करीबी सहयोगी रहे हैं या उन्हें राहुल ही पार्टी में लेकर आए थे।


शुरुआत में इन नेताओं के शामिल होने पर काफी उत्साह दिखाई दिया। राहुल गांधी को अक्सर लंच और डिनर के लिए भी उनके साथ घूमते देखा गया है। मगर समय के साथ चीजें गलत होने लगती हैं।

'असल मुद्दा राहुल गांधी नहीं'

News18.com ने उन सभी लोगों से बात की जो पार्टी छोड़कर आगे बढ़ गए हैं। लगभग सभी ने एक ही बात कही कि असल मुद्दा राहुल गांधी नहीं थे, बल्कि यह उनकी मंडली थी और आखिरकार गांधी उनकी ही बात सुनने लगते हैं।

ऐसे ही एक नेता कभी गांधी के करीबी कहते हैं, "उनके करीबी लोगों का समूह असुरक्षित है। उन्हें यह बात पसंद नहीं थी कि हमारी उनसे सीधी पहुंच थी। हम उन्हें बायपास करके उनसे मिलें। आखिरकार वह उन पर ही विश्वास करने लगे। इसके लिए मैं राहुल को ही दोष मानूंगा।"

इस कुछ उदाहरण से समझते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया गांधी के बहुत करीब थे। तब राहुल ने कहा था कि अगर वह पार्टी में रहते हैं, तो उनके लिए बड़ी योजनाएं हैं, लेकिन जब कांग्रेस ने मध्य प्रदेश जीता, तो यह साफ हो गया कि वहां सत्ता की कमान कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के हाथों में ही होगी।

सिंधिया के लिए सिंह के मन में कोई लगाव नहीं था। सिंधिया राज्य मंत्रिमंडल में अपने समर्थकों के लिए जगह चाहते थे। मगर इंतजार लंबा होता गया और किसी ने उनकी बात नहीं सुनी।

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सूत्रों ने कहा कि वह यह भी चाहते हैं कि कांग्रेस उनके घर को दिल्ली के बीच में रखने में उनकी मदद करे, लेकिन बात नहीं बनी और इसके साथ ही रिश्ता खत्म हो गया।

यही कहानी आरपीएन सिंह और जितिन प्रसाद की है, जिन्हें एक समय राहुल गांधी तक पहुंचने में कोई समस्या नहीं थी, लेकिन धीरे-धीरे चीजें कड़वी होने लगीं।

तो दो समस्याएं हैं - पहली गांधी का करीबी समूह। ये लोग बिल्कुल नहीं चाहते कि उन्हें दरकिनार कर कोई भी राहुल के करीब पहुंचे। साथ ही, जो भी बदलाव लाना चाहता है, उस पर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को विश्वास नहीं होता है।

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