सन 1977 के जिस लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी की पराजय हो गई थी, उसके बारे में पहले यह आशंका जाहिर की जा रही थी कि पता नहीं कैसे नतीजे आएंगे। चूंकि इमरजेंसी की ज्यादतियों की पृष्ठभूमि में चुनाव होने को थे, इसलिए उसकी निष्पक्षता को लेकर जयप्रकाश नारायण से लेकर जार्ज फर्नांडिस तक भी आशंकित थे। आज जब कुछ लोग सन 2024 के लोक सभा चुनाव को लेकर स्पष्ट भविष्यवाणियां कर रहे हैं तो उस पर अचरज होता है। क्या इतना आसान है सटीक चुनावी भविष्यवाणी करना ?
जनवरी, 1977 में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने चुनाव की घोषणा कर दी। उन्होंने कहा कि मार्च में चुनाव होंगे। चूंकि उन्होंने इमरजेंसी को पूरी तरह समाप्त किए बिना ऐसा किया था, इसलिए प्रतिपक्षी दल थोड़ी देर के लिए हतप्रभ हो गये थे। जयप्रकाश नारायण से लेकर जार्ज फर्नांडिस तक ने आशंकाएं जाहिर की थी। चुनाव की घोषणा के बाद जयप्रकाश नारायण ने प्रतिपक्षी दलों से अपील की कि वे आपस में विलय कर लें। एक दल बना लें। जब इस काम में देरी होने लगी तो जेपी ने धमकी दी कि यदि आपलोग विलय नहीं करेंगे तो हम नई पार्टी बना लेंगे। फिर तो वे लाइन पर आ गए।
चार गैर कांग्रेसी दलों यथा जनसंघ, संगठन कांग्रेस, सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय लोक दल के नेताओं ने मिलकर जनता पार्टी बना ली। बड़ौदा डायनामाइट षड्यंत्र मुकदमे के सिलसिले में देश द्रोह के आरोप में जेल में बंद जार्ज फर्नांडिस ने तो चुनाव के बहिष्कार के पक्ष में ही एक बार अपनी राय दे दी थी। हालांकि जनता पार्टी कौन कहे सोशलिस्ट घटक के भी अन्य नेता जार्ज से असहमत थे।
बाद में जनता पार्टी ने जार्ज को बिहार के मुजफ्फरपुर लोक सभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया और वे भी भारी मतों से जीते। चुनाव की घोषणा के बाद प्रेस सेंसरशीप में ढिलाई जरूर दे दी गयी थी। राजनीतिक बंदियों की रिहाई शुरू हो गयी थी।पर रिहाई की रफ्तार काफी धीमी थी। याद रहे कि 25 जून 1975 की रात में जब आपातकाल की घोषणा हुई तो उसके साथ देश भर के करीब सवा लाख राजनीतिक कार्यकर्ताओं-नेताओं तथा कुछ अन्य लोगों को किसी सुनवाई के बिना जेलों में ठूंस दिया गया था।कुछ पत्रकार भी बंदी बना लिए गए थे।
लोगों के मौलिक अधिकार कौन कहे, जीने का अधिकार भी छीन लिया गया था। यानी प्रतिपक्षी दलों के पास चुनावी तैयारी के लिए समय बहुत कम था। पर जब चुनाव प्रचार शुरू हुआ तो जनता पार्टी के पक्ष में भारी जन समर्थन की खबरें सुदूर जगहों से भी आने लगीं। उससे पहले चुनाव की घोषणा के तत्काल बाद जयप्रकाश नारायण ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि "सरकार सोचती है कि उसे चुनाव में बहुमत मिलेगा। क्योंकि विरोधी दलों को चुनाव की तैयारी करने के लिए कोई समय नहीं दिया गया है। सत्तारूढ़ दल ने आपात स्थिति को पूर्ण रूप से समाप्त न करने और हजारों बंदियों को न छोड़ने से अपना इरादा स्पष्ट कर दिया है। इसलिए यदि कांग्रेस जीत जाती है तो आगे क्या होगा, यह बात भी लोगों के सामने स्पष्ट हो जानी चाहिए।"
मीडिया से बातचीत में तब के आंदोलन के शीर्ष नेता जेपी ने हालांकि यह भी कहा कि "लोगों को इतनी आसानी से धोखा नहीं दिया जा सकता है। उन्होंने कठिन रास्ते से यह सीख लिया है कि केवल प्रजातांत्रिक तरीके से ही गरीबों के अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं। अधिकारों के दुरुपयोग से लोगों के मन में विरोध की भावना पैदा हो गयी है।इसी कारण उनकी सहानुभूति विरोधी दलों के साथ है।"
जेपी का यह अनुमान बाद में सही निकला था। यानि, 1977 के चुनाव नतीजे ने इसे सही साबित कर दिया था।हालांकि उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत में जनता पार्टी को बहुत कम सीटें मिलीं। उधर चुनाव की घोषणा कर देने के तुरंत बाद इंदिरा गांधी ने रिक्त स्थानों को देखते हुए कांग्रेस संसदीय बोर्ड को पुनर्गठित किया।राज्यों को निदेश दिया कि वे उम्मीदवारों के नामों की सिफारिश भेजें।
प्रधानमंत्री की पहली चुनावी सभा कानपुर में हुई। बहुत बड़ी भीड़ थी। इंदिरा गांधी ने वहां लोगों से अपील की थी कि "मुझे उम्मीद है कि आप लोकतांत्रिक प्रक्रिया और संगठनों को नष्ट करने वाली शक्तियों को प्रोत्साहित नहीं करेंगे। क्योंकि ये शक्तियां आपकी कठिनाइयां बढ़ाएंगी। प्रगति बाधित करेंगी।" उनका इशारा जेपी और नव गठित जनता पार्टी की ओर था। जेपी और जेपी के शब्दों के चयन पर ध्यान दीजिए।
नवगठित जनता पार्टी के अध्यक्ष मोरारजी देसाई और उपाध्यक्ष चरण सिंह चुने गए। युवा तुर्क चंद्रशेखर का गुट भी जनता पार्टी में शमिल हो गया था।25 जून 1975 को अपनी गिरफ्तारी तक चंद्रशेखर कांग्रेस में थे। मोरारजी देसाई ने घोषणा की कि जनता पार्टी अच्छे उम्मीदवार खड़ा करेगी। उसका भरसक पालन हुआ। जेपी ने लोगों से अपील की थी कि वे जनता पार्टी को उदारतापूर्वक दान दें ताकि चुनाव का खर्च उठाया जा सके।
इमरजेंसी से ऊबे अधिकतर मतदाताओं में जनता पार्टी के पक्ष में इतना अधिक उत्साह था कि जनता पार्टी का अधिकतर चुनावी खर्च आम जनता ने ही उठा लिया था। उस चुनाव में मुख्य रूप से कांग्रेस के साथ CPI थी तो जनता पार्टी के साथ CPM और अकाली दल। जगजीवन राम के नेतृत्व वाली कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी ने जनता पार्टी के साथ चुनावी तालमेल किया। जगजीवन राम ने चुनाव की घोषणा के बाद कांग्रेस छोड़ी थी।
याद रहे कि 1977 के लोक सभा चुनाव में जनता पार्टी को 295 और कांग्रेस को 154 सीटें मिलीं। मोरारजी देसाई प्रधान मंत्री बने। सरकार ठीक-ठाक चल रही थी। पर जनता पार्टी के कुछ बड़े नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण मोरारजी सरकार अपना कार्य काल पूरा नहीं कर सकी। सन 1980 में आम चुनाव हुआ और इंदिरा गांधी एक बार फिर सत्ता में आ गईं।