जब मानेक शॉ ने कहा था, मैं पाकिस्तान का सेना प्रमुख होता तो उसकी जीत होती
मानेक शाॅ बांग्ला देश युद्ध में विजय का श्रेय भी प्रधान मंत्री या रक्षा मंत्री को देने के बदले खुद ही लेना चाहते थे। शॉ ने बांग्ला देश संकट के शुरुआती दौर में आयोजित उच्चस्तरीय बैठक में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी से साफ-साफ कह दिया था कि हमारी सेना अभी युद्ध के लिए तैयार नहीं है। प्रधान मंत्री को यह बुरा लगा था।
मानेक शाॅ के बारे में बात होने पर जगजीवन राम तीखे हो जाते थे। उन्होंने कहा था कि वे तीनों सेना प्रमुखों में से खुद को सर्वोच्च दिखाने की कोशिश करते थे।
आत्मविश्वास से भरे मानेक शॉ ने कहा था कि "यदि मैं पाकिस्तान का सेना प्रमुख होता तो उसी देश की जीत होती।" उस पर रक्षा मंत्री रहे जगजीवन राम ने कहा कि "मानेक शॉ" नकली फिल्ड मास्टर हैं। युद्ध की सारी व्यूह रचना मैंने की थी। यह बात और है कि जनता ने श्रेय प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को दिया। उनके दल के एक सांसद ने उन्हें दुर्गा की उपाधि दे दी। बांग्ला देश को लेकर भारत-पाक युद्ध में भारत की विजय का श्रेय लेने के सवाल पर तब महारथियों के बीच अच्छी-खासी खींचतान चली थी।
एक कांग्रेसी सासंद ने लोक सभा में उन्हें दुर्गा कहा था और अधिकतर लोग तो पूरा श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ही दे रहे थे। पर रक्षा मंत्री जगजीवन राम और सेना प्रमुख मानेक शॉ इसे मानने को तैयार नहीं थे। युद्ध में विजय के बाद जब इंदिरा गांधी को "भारत रत्न" से अलंकृत किया गया तो सेना में प्रतिक्रिया हुई। उस प्रतिक्रिया को शांत करने के लिए सेना प्रमुख सैम मानेक शॉ को ‘फील्ड मार्शल’ का ओहदा दिया गया।
युद्ध के बाद एक खेमे की ओर से यह सवाल भी उठाया गया कि सन 1962 में चीन से पराजय के लिए इस देश के रक्षा मंत्री बी.के.कृष्ण मेनन जिम्मेदार थे तो पाकिस्तान पर जीत के लिए प्रधान मंत्री को श्रेय क्यों दिया जाना चाहिए? उधर रक्षा मंत्री जगजीवन राम मानेक शॉ से नाराज रहा करते थे। क्योंकि मानेक शॉ तीनों सेनाध्यक्षों में खुद को सर्वोच्च होने का प्रयास करते रहे। पर, सर्वोच्च हो नहीं सके, ऐसा जग जीवन राम का कहना था।
इस संबंध में तत्कालीन रक्षा मंत्री जगजीवन राम ने सन 1977 में कहा था कि "1971 के युद्ध में भारत की विजय का बड़ा कारण यह था कि सेना के तीनों अंगों का सही और परस्पर पूरक सह कार्य और रक्षा सामग्री के उत्पादन से लेकर हर मोर्चे पर मेरा स्वयं जाकर सेना का हौसला बढ़ाना।इसके अलावा निदेशन में सामंजस्य होना भी एक महत्व की बात थी।"
इसके विपरीत बांग्ला देश युद्ध के समय भारतीय सेनाध्यक्ष मानेक शॉ ने सन 1974 में लंदन में साफ- साफ कह दिया था कि "अगर मैं उस युद्ध में पाकिस्तान का सेनाध्यक्ष होता तो विजय पाकिस्तान की ही होती।" मानेक शॉ की इस गर्व पर जगजीवन राम की टिप्पणी महत्वपूर्ण थी। उन्होंने कहा कि "मैं मानेक शॉ को नकली फील्ड मार्शल मानता हूं। वह इस योग्य नहीं थे।"
जगजीवन राम को युद्ध के लिए अपनी तैयारी पर पूरा विश्वास था। उन्होंने कहा कि "उस युद्ध को तो जीता ही जाना था भले ही जनरल कोई और होता । क्योंकि हमने तैयारी ही इतनी अधिक कर ली थी।" उनकी यह भी राय थी कि यदि किन्हीं प्रकार के दबाव में आकर किसी को फील्ड मार्शल बना दिया जाए, तो भी वह नकली फील्ड मार्शल ही होगा। मानेक शॉ पैरवी और खुशामद से फील्ड मार्शल बने थे।
जगजीवन बाबू की स्पष्ट राय थी कि उस समय जो भी सेनाध्यक्ष होता, वही युद्ध जीतता भले ही वह इस योग्य नहीं होता। उन्होंने यह भी कहा कि प्रजातांत्रिक प्रणाली में जिस ढंग से निर्णय किये जाते हैं,उसके अंतर्गत विजय का श्रेय किसी व्यक्ति विशेष को नहीं दिया जा सकता। लगता है कि जगजीवन बाबू इस बात से सहमत नहीं थे कि बांग्ला देश युद्ध में विजय का सारा श्रेय इंदिरा गांधी को दिया जाए।
मानेक शाॅ के बारे में बात होने पर जगजीवन राम तीखे हो जाते थे। उन्होंने कहा था कि वे तीनों सेना प्रमुखों में से खुद को सर्वोच्च दिखाने की कोशिश करते थे। लेकिन हो नहीं सके। नीति निर्धारण समिति की बैठकों में कई बार मानेक शाॅ अन्य दोनों सेनाध्यक्षों की बातों का विरोध करते थे । उनके बीच खुद को सर्वोच्च दिखाने की कोशिश करते थे। पर, हम इस मान्यता के नहीं रहे कि तीनों सेनाओं का एक अध्यक्ष हो।
यह पूछे जाने पर कि क्या कभी आपसे उनका नीतिगत मतभेद रहा, उन्होंने कहा कि ऐसा साहस वह नहीं कर सकते थे। वैसे उनकी ख्वाहिश मनमानी करने की भी रहती थी, पर वे कर नहीं सकते थे।
मानेक शाॅ की राय भी कुछ नेताओं के बारे में बहुत खराब थी।मानेक शाॅ ने एक बार कहा था कि "मुझे शक है कि उस नेता को मोर्टार और मोटर के बीच के फर्क का पता तक नहीं होगा जिसे देश का रक्षा मंत्री बना दिया जाता है।"
मानेक शाॅ बांग्ला देश युद्ध में विजय का श्रेय भी प्रधान मंत्री या रक्षा मंत्री को देने के बदले खुद ही लेना चाहते थे। मानेक शाॅ ने बाद में कहा कि भारतीय फौज की जीत का खांका मैंने खींचा था। मानेक शाॅ पांच युद्धों में हिस्सा ले चुके थे। मानेक शाॅ ने बांग्ला देश संकट के शुरुआती दौर में आयोजित उच्चस्तरीय बैठक में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी से साफ-साफ कह दिया था कि हमारी सेना अभी युद्ध के लिए तैयार नहीं है। प्रधान मंत्री को यह बुरा लगा था।
पर, जब तैयारी हो गयी तो शॅा से पूछा गया कि इस युद्ध को जीतने में कितना समय लगेगा। शाॅ ने कहा कि डेढ़ से दो माह तक लगेंगे। बांग्ला देश फ्रांस के बराबर है। पर, जब 14 दिनों में ही पाक फौज ने सरेंडर कर दिया तो मंत्रियों ने पूछा कि आपने 14 दिन क्यों नहीं कहा ? इस पर शाॅ ने कहा कि यदि पंद्रह दिन हो जाते तो आप लोग ही मेरी टांग खींचने लगते।