लोकसभा चुनाव 2024 में 25 साल की उम्र के चार उम्मीदवार आम चुनावों में अपनी जीत के बाद सबसे युवा सांसद बनने के लिए तैयार हैं। 4 जून को घोषित हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों में पुष्पेंद्र सरोज और प्रिया सरोज समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। जबकि शांभवी चौधरी और संजना जाटव को क्रमशः लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) और कांग्रेस ने मैदान में उतारा था। 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने कुछ चौंकाने वाले नतीजे दिए।
विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. ब्लॉक ने एग्जिट पोल के पूर्वानुमानों को झुठलाते हुए उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया और बीजेपी को 300 का आंकड़ा पार करने से रोक दिया, जिसके बारे में भविष्यवाणी की गई थी कि वह पूर्ण बहुमत हासिल करेगी। इस चुनाव में चार ऐसे उम्मीदवार संसद के लिए चुने गए, जो सभी अभी 25 साल के हैं।
मिलिए 4 सबसे युवा सांसदों से...
शांभवी चौधरी बिहार में नीतीश कुमार कैबिनेट में मंत्री अशोक चौधरी की बेटी हैं। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के सनी हजारी को भारी अंतर से हराकर समस्तीपुर निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की। सनी हजारी JDU के मंत्री महेश्वर हजारी के बेटे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इससे पहले एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए शांभवी की सबसे युवा NDA उम्मीदवार के रूप में प्रशंसा की थी।
संजना जाटव ने राजस्थान के भरतपुर निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की है। 25 वर्षीय संजना ने बीजेपी के रामस्वरूप कोली को 51,983 मतों के अंतर से हराया। उन्होंने 2023 विधानसभा चुनाव भी लड़ा था, लेकिन बीजेपी के रमेश खेड़ी से मात्र 409 मतों से हार गईं। संजना की शादी राजस्थान पुलिस के कांस्टेबल कप्तान सिंह से हुई है।
पुष्पेंद्र और प्रिया सरोज
पुष्पेंद्र सरोज ने कौशांबी संसदीय सीट से सपा उम्मीदवार के रूप में राजनीतिक रणभूमि में प्रवेश किया, जो पहले बीजेपी के पास थी। उन्होंने बीजेपी के मौजूदा सांसद विनोद कुमार सोनकर को 103,944 मतों के अंतर से हराकर जीत हासिल की। पुष्पेंद्र पांच बार के विधायक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज के बेटे हैं। वहीं, प्रिया सरोज ने मछलीशहर सीट से 35,850 मतों के अंतर से जीत हासिल की। उनका मुकाबला मौजूदा बीजेपी सांसद भोलानाथ से था। प्रिया तीन बार सांसद रह चुके तूफानी सरोज की बेटी हैं।
लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी (सपा) ने अखिलेश यादव की कमान में चमत्कारिक वापसी कर राजनीतिक पंडितों को हैरान कर दिया। प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा राम मंदिर निर्माण का श्रेय लेने के बावजूद सपा का शानदार चुनावी प्रदर्शन जमीनी स्तर पर अखिलेश की लोकप्रियता और उनकी राजनीतिक सूझबूझ को दर्शाता है।