प्रसिद्ध गीतकार शकील बदायूंनी का शहर बदायूं। उनका यह गीत गुनगुनाते हुए शहर में प्रवेश करता हूं.....
प्रसिद्ध गीतकार शकील बदायूंनी का शहर बदायूं। उनका यह गीत गुनगुनाते हुए शहर में प्रवेश करता हूं.....
"अफ़साना लिख रही हूँ दिल-ए-बेकरार का
आँखों में रंग भर के तेरे इंतजार का
जब तू नहीं तो कुछ भी नहीं है बहार में
जी चाहता है मुँह भी ना देखूँ बहार का
हासिल हैं यूँ तो मुझको ज़माने की दौलतें
लेकिन नसीब लाई हूँ एक सोग़वार का
आजा के अब तो आँख में आँसू भी आ गये
साग़र छलक उठा मेरे सब्र-ओ-करार का"
...लेकिन इस समय बदायूं में बहार ही बहार है। बदायूं लोकसभा इस समय चुनावी रंग में डूबा हुआ है। इस लोकसभा क्षेत्र में भाजपा सपा और बसपा अपनी चुनावी गोटियां बैठाने में लगे हैं। सैफई का यादव परिवार किसी भी कीमत पर इस बार निशाना नहीं चूकना चाहता। पिछले लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) में उसका निशाना चूक गया था। समाजवादी पार्टी अपने खोए हुए किले को BJP से वापस छीन लेना चाहती है। बदायूं लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी वे सारे हथियार इस्तेमाल कर रही है, जिससे 2019 में जो किला उनसे छिन गया था, वो वापस आ जाए।
इसी रणनीति के तहत अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव को टिकट दिया और बाद में शिवपाल सिंह की इच्छा के अनुसार उनके बेटे आदित्य यादव को मैदान में उतार दिया। इसी रणनीति के तहत समाजवादी पार्टी ने सलीम शेरवानी को मना लिया है और एक और मुस्लिम नेता आबिद रजा की भी नाराजगी दूर कर दी है। इसका असर पड़ रहा है और मुस्लिम मतदाताओं में एकजुटता देखी जा रही है।
बीजेपी के लिए लड़ाई मुश्किल!
इस सीट पर लड़ाई बहुत ही रोचक है। बीजेपी की कोशिश है कि किसी तरह वो इस सीट को अपने हाथ से न जाने दे, लेकिन भाजपा के लिए यह करिश्मा कर पाना आसान नहीं है। इसका मुख्य कारण यही है की इस क्षेत्र का सामाजिक समीकरण भाजपा के बहुत पक्ष में नहीं है और इसी जगह बीजेपी मात खा जाती है। वैसे भारतीय जनता पार्टी ने अपने कार्यकर्ता दुर्विजय शाक्य को मैदान में उतारा है।
दुर्विजय शाक्य ब्रज प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष हैं और पिछड़े वर्ग के नेता होने के कारण उन्हें अतिपिछड़ा वर्ग का वोट भी मिल रहा है। लेकिन वो लड़ाई जीत लेंगे ऐसा कहना फिलहाल कठिन है।
बहुजन समाज पार्टी की यहां पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे जाने की रणनीति भी काम नहीं आ पा रही है। बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी उतारने से भाजपा को भी कोई मदद नहीं मिल रही है। भारतीय जनता पार्टी ने इस बार इस क्षेत्र से पार्टी की वर्तमान सांसद संघमित्रा मौर्य को टिकट नहीं दिया।
कारण यह बताया जा रहा है कि उनके पिता स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा के खिलाफ बयान दे रहे थे और 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा से बगावत कर सपा का दामन थाम लिया था। यह अलग बात है कि वो भी विधानसभा चुनाव हार गए थे और अब सपा भी छोड़ चुके हैं।
क्या होगा इस बार बदायूं में?
क्या होगा इस बार बदायूं लोकसभा चुनाव में? इसको लेकर अटकलो का बाजार गर्म है और अपने-अपने दावे हैं, लेकिन समाजवादी पार्टी के नेता उत्साहित हैं कि वो 2019 में जिस सीट को हार गए थे, उसे वापस पा सकते हैं।
भारतीय जनता पार्टी वे सारे प्रयास कर रही है कि किसी तरह इस सीट पर अपने सामाजिक समीकरण को दुरस्त करें। यही नहीं बहुजन समाज पार्टी ने यहां पर एक पूर्व विधायक को टिकट दिया है।
बसपा प्रत्याशी मुस्लिम खान पूर्व विधायक हैं और मुस्लिम, दलित वोटों पर दावेदारी जताकर अपने जीत की दावे कर रहे हैं। लेकिन उनके लिए राह बहुत कठिन है। उन्हें मुसलमानो का ज्यादा समर्थन नहीं मिल रहा है और ज्यादातर मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन सपा के साथ जा रहा है। उन्हें जो भी वोट मिलेगा, वो दलित मतदाता का ही होगा। केवल दलित मतदाता के दम पर बहुजन समाज पार्टी चुनावी जंग नहीं जीत सकती। बसपा के सामने यह समस्या कई लोकसभा क्षेत्रों में है।
गुन्नौर और सहसवान विधानसभा हैं निर्णायक
वास्तव में बदायूं लोकसभा क्षेत्र में जब भी सपा के पक्ष में निर्णय हुआ, तो गुन्नौर और सहसवान विधानसभा क्षेत्र से हुआ। सहसवान मुस्लिम बहुल है और गुन्नौर यादव बहुल। गुन्नौर वो विधान सभा क्षेत्र है, जहां पर प्रदेश में सबसे ज्यादा यादव हैं और उनमें ज्यादातर सपा समर्थक हैं। लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में वहां पर सपा सिर्फ 9000 वोटों से आगे होकर निकली, जबकि हमेशा सपा इस क्षेत्र से भारी बहुमत से आगे बढ़ती थी। नतीजा यह हुआ कि समाजवादी पार्टी चुनाव हार गई।
इस बार सपा की कोशिश की वो भारी बहुमत के साथ गन्नौर से आगे बढ़े, लेकिन अति पिछड़ा वोट कितना असर दिखाएगा यह तय नहीं है, जो भाजपा के साथ है। यह कहना अभी मुश्किल है। वैसे जगदीश यादव कहते हैं कि इस बार समाजवादी पार्टी बदायूं में जीत जाएगी। जबकि सचिन पाठक कहते हैं कि बीजेपी के जीतने के ज्यादा चांस हैं। बीजेपी इसी वोटों के बल पर समाजवादी पार्टी की व्यूह रचना को ध्वस्त कर देना चाहती है।
त्रिकोणीय मुकाबला बनाने की कोशिश में BSP
बहुजन समाज पार्टी इस लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर रही है, लेकिन उसकी अभी तक की सारी कोशिश बेकार हो चुकी हैं। जिस तरह से चुनाव आगे बढ़ रहा है उससे साफ हो गया है की मतदाता दो भागों में बटता जा रहा है। बसपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने मूल मतदाता दलित मतदाताओं को एकजुट कर अपने पाले में रखने की है। अब इसमें वो कितना सफल हो पाएंगे, यह समय बताएगा।
सहसवान के एक दलित मतदाता कृष्ण पाल कहते हैं अभी यह तय नहीं है कि वह किसके पाले में जाएंगे। चुनाव नजदीक आ जाए तब यह तय करेंगे कि किसको वोट दें। क्या बहन जी के साथ नहीं जाएंगे? इस पर वो कहते हैं की बहन जी का प्रत्याशी मुस्लिम खान चुनाव अच्छा नहीं लड़ पा रहा है। वैसे वो बहिन जी के साथ ही हैं।
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