Ram Mandir Ayodhya: कारसेवा, बाबरी विध्वंस और अदालत... अपनी तरह का सबसे लंबा चलने वाला था राम मंदिर संघर्ष

Ram Mandir Ayodhya: केंद्र में वीपी सिंह की सरकार के पतन के बाद कांग्रेस के सहयोग से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बन गए थे। वह इस मुद्दे को हल करने का प्रयास कर रहे थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने दिसंबर 1990 में दोनों पक्षों को बातचीत के लिए आमंत्रित किया और यह मामला पटरी पर बना रहे, इसके लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री भैरव सिंह शेखावत और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शरद पवार को भी सुलह सफाई में शामिल किया गया

अपडेटेड Jan 19, 2024 पर 4:47 PM
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Ram Mandir Ayodhya: कारसेवा, बाबरी विध्वंस और अदालत... अपनी तरह का सबसे लंबा चलने वाला था राम मंदिर संघर्ष

Ayodhya Ram Mandir: मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर जा चुके थे और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता कल्याण सिंह (Kalyan Singh) राज्य के नए मुख्यमंत्री बने। शपथ लेने के बाद कल्याण सिंह सबसे पहले अयोध्या (Ayodhya) के लिए रवाना हुए। उनके साथ उनका पूरा मंत्रिमंडल था। 'जय श्री राम' के नारे के उदघोष के साथ कल्याण अपनी कार में सवार हुए। कल्याण और उनका मंत्री मंडल अयोध्या की ओर इस संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा था कि राम मंदिर (Ram Mandir) निर्माण में जो बाधाएं हैं, उन्हें हटाया जाएगा। जून 1991 में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने और इसके 2 महीने बाद ही सरकार पर इस बात का दबाव आने लगा कि राम मंदिर के रास्ते में आने वालीं रुकावटें हटाई जाएं। जबकि भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व चाहता था कि मुख्यमंत्री को थोड़ा समय दिया जाए और जब जनहित के वादे पूरे कर लिए जाएं, तब मंदिर के लिए कोशिश हो, लेकिन विश्व हिंदू परिषद (VHP) के कार्यकर्ता कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे।

उधर केंद्र में वीपी सिंह की सरकार के पतन के बाद कांग्रेस के सहयोग से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बन गए थे। वह इस मुद्दे को हल करने का प्रयास कर रहे थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने दिसंबर 1990 में दोनों पक्षों को बातचीत के लिए आमंत्रित किया और यह मामला पटरी पर बना रहे, इसके लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री भैरव सिंह शेखावत और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शरद पवार को भी सुलह सफाई में शामिल किया गया।

दोनों पक्षों को बातचीत के लिए तैयार किया गया। दोनों पक्षों ने अपने-अपने कागज सौंप दिए। इस मामले पर बातचीत चल ही रही थी कि अकस्मात मुस्लिम पक्ष ने बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया और सुलह सफाई की कोशिश भी बेकार हो गई।


मुख्यमंत्री बनने के तीन महीने बाद ही कल्याण सिंह सरकार ने अयोध्या के विवादित ढांचे के आसपास 2.77 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया। इस अधिग्रहीत जमीन में मंदिर भी थे और कुछ घर भी। अब इसके खिलाफ भी लड़ाई शुरू हुई और मामला हाई कोर्ट पहुंचा। अदालत ने अधिग्रहित जमीन पर सरकार को कब्जा तो लेने दिया, लेकिन निर्माण पर रोक लगा दी।

राम दीवार बनाने का काम हुआ शुरू

कल्याण सिंह सरकार ने विवादित अधिग्रहित भूमि पर चारों तरफ से राम दीवार बनाने का काम शुरू किया। यही नहीं अधिग्रहण की गई 40.9 एकड़ जमीन को राम जन्मभूमि न्यास को इसलिए सौंप दिया गया, जिससे वह राम कथा पार्क का निर्माण कर सके। मार्च 1992 में अधिग्रहीत मठ और मंदिरों को हटा दिया गया। इससे माहौल फिर गरमाया।

मुस्लिम पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक और याचिका दायर की और वहां पर निर्माण पर रोक लगाने की मांग की, लेकिन हाई कोर्ट ने मना कर दिया। जुलाई 1992 में एक बार फिर कार सेवा की शुरुआत हुई। इस मामले पर हाई कोर्ट ने तत्काल निर्माण रोकने को कहा। यही नहीं सर्वोच्च न्यायालय ने कल्याण सिंह के खिलाफ एक और अवमानना का मुकद्दमा भी किया। जब निर्माण नहीं रुका तो सुप्रीम कोर्ट ने कड़े निर्देश दिए।

तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने इस मामलों में संतों से बात की और कार सेवा रुकवाने के लिए अपील की। इससे कार सेवा तो रोक दी गई, लेकिन विश्व हिंदू परिषद जल्द ही कारसेवा के लिए अड़ा रहा और नई तारीख का ऐलान करने की घोषणा की। 30 और 31 अक्टूबर 1992 को धर्म संसद ने 6 दिसंबर 1992 को कारसेवा शुरू करने का ऐलान किया। एक बार फिर माहौल में गर्मी आई और VHP से अपील की गई कि कारसेवा न करें, लेकिन VHP ने इसे स्वीकार नहीं किया।

बाद मे सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर दखल दिया। उत्तर प्रदेश सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में एक शपथ पत्र दायर किया, जिसमें यह वादा किया गया कि अयोध्या में कोई निर्माण नहीं किया जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय ने वहां पर कड़ी नजर रखने के लिए एक पर्यवेक्षक भी नियुक्त किया। पर्यवेक्षक को यह जिम्मेदारी दी गई कोई स्थाई निर्माण न होने पाए और वहां की हर गतिविधि को रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपे।

नरसिम्हा राव सरकार के ऊपर इस बात का दबाव था कि वह इस मामले पर कठोर रुख अपनाते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को बर्खास्त करें। विवादित स्थल पर अर्ध सैनिक बल तैनात किए जाएं। केंद्र सरकार ने अयोध्या में लगभग 30,000 अर्द्ध सैनिक बलों को तैनात किया।

5 दिसंबर की शाम तक भी नहीं थी कोई खबर

VHP ने भी यह वादा किया की वहां पर प्रतीकात्मक कार सेवा होगी और कार सेवक सरयू के जल व बालू से कारसेवा करके अपने-अपने घरों को चले जाएंगे। 5 दिसंबर 1992 की शाम तक यह एहसास किसी को नहीं था कि कारसेवक मस्जिद पर चढ़ जाएंगे और उसे गिरा देंगे।

तब मैं ऐसे तमाम कारसेवकों से मिला था और उनसे बात भी की थी, जो उत्तेजित तो थे, लेकिन यह बताने को तैयार नहीं थे कि 6 दिसंबर को क्या करना चाहते हैं। अयोध्या में दो लाख से अधिक कारसेवक उपस्थित थे। राष्ट्रीय स्वयं संघ के शीर्ष नेता भी अयोध्या में ही थे।

6 दिसंबर को सुबह कार सेवा की शुरुआत हुई। बाबरी मस्जिद के पास एक मंच बना एक सभा का आयोजन भी हुआ था, जिसे लाल कृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, अशोक सिंघल समेत बड़ी संख्या में हिंदूवादी नेता संबोधित कर रहे थे।

सुबह करीब 10 बजे अचानक कुछ कारसेवक, जो लाइन से आगे बढ़ रहे थे, बाबरी मस्जिद के सामने इकट्ठा होना शुरू हो गए और फिर उन्होंने प्रतिबंधों को हटाना और तोड़ना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे भीड़ बढ़ती गई। कार सेवक बाबरी ढांचे के ऊपर चढ़ गए और तोड़फोड़ शुरू कर दी।

उधर लाल कृष्ण आडवाणी समेत सभी बड़े नेता यह अपील कर रहे थे कि वह बाबरी ढांचे से नीचे उतर आएं और तोड़फोड़ न करें। क्योंकि वो मंदिर ही है। लेकिन कारसेवक कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे।

उधर कमिश्नर फैजाबाद सुरेंद्र पाल गौर ने इसकी पहली सूचना तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को भेजी और कहा कि बाबरी ढांचे को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। कारसेवक ढांचे के ऊपर चढ़ गए हैं। वे किसी की सुन नहीं रहे हैं।

कारसेवकों को हटाया जाए, पर गोली न चले

कल्याण सिंह ने कमिश्नर से कहा कि उनको किसी भी तरह बाबरी ढांचे से हटाया जाए, लेकिन गोली न चलाई जाए। जब ढांचे को तोड़े जाने की सूचना दिल्ली पहुंची, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने कल्याण सिंह को फोन किया और उनसे कहा कि कारसेवक ढांचे के ऊपर चढ़ गए हैं। उनके पास इस तरह की सूचना आ गई है।

कल्याण सिंह ने कहा कि मेरे पास इससे आगे की सूचना है कि कारसेवक ढांचे को तोड़ भी रहे हैं। कारसेवक नहीं माने और लगभग दोपहर 1 बजे पहला गुंबद धराशाई हो गया। शाम 5 बजे तीनों गुंबद और दीवारे जमीन पर गिर चुके थे और पूरी बाबरी मस्जिद को समतल कर दिया गया था।

उधर बाबरी ढांचा गिरा और कल्याण सिंह अपने सरकारी आवास से बाहर निकले। वह राजभवन की ओर बढ़े। वहां पर उन्होंने राज्यपाल को अपने पद से इस्तीफा सौंप दिया। बाद में केंद्र सरकार ने दावा किया की कल्याण सिंह को बर्खास्त किया गया है न कि उन्होंने इस्तीफा दिया है।

कारसेवक यहीं नहीं रुके। उन्होंने बाबरी ढांचे को तो ढहा ही दिया और उसकी जगह पर एक अस्थाई मंदिर का निर्माण भी करने लगे। रात भर अस्थाई मंदिर का निर्माण कर दूसरे दिन सुबह मूर्तियों को फिर से लाकर प्रतिष्ठित कर दिया गया।

उधर केंद्र सरकार ये कोशिश कर रही थी कि किसी तरह कारसेवकों को उस इलाके से हटाया जाए। यह इसलिए भी जरूरी था कि उस समय उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार नहीं थी, बल्कि केंद्र का शासन था। अस्थाई मंदिर के निर्माण के बाद ही कार सेवक वहां से हटे और सरकार को उन्हें हटाने के लिए भी बसे और ट्रेनों की व्यवस्था करनी पड़ी।

फिर बाबरी मस्जिद बनाने का हुआ ऐलान

बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को भारी आलोचना झेलनी पड़ी। उसी रात उन्होंने राष्ट्र को संबोधित करते हुए यह वादा किया की बाबरी मस्जिद का फिर से उसी जगह निर्माण किया जाएगा। इसके बाद बीजेपी की तीन सरकारो- मध्य प्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश को बर्खास्त कर दिया गया। इसके साथ ही आडवाणी, जोशी, उमा भारती और अशोक सिंघल समेत सभी नेताओं को गिरफ्तार किया गया।

उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का मुकदमा चला और उन्हें एक दिन की सजा सुनाई गई। इसके बावजूद यह मामला शांत नहीं हुआ।

आखिरकार हाई कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को ये निर्देश दिया कि वह खुदाई कर इस बात का पता लगाए की क्या इस ढांचे के नीचे भी कोई दूसरा ढांचा था।

हाई कोर्ट के आदेश से ASI ने 12 मार्च 2003 से 7 अगस्त 2003 तक बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि परिसर की खुदाई की और इसमें जो पाया गया, उससे बाबरी मस्जिद के समर्थकों के मन में चिंता होना स्वाभाविक था। क्योंकि वह दावा कर रहे थे की बाबरी मस्जिद बिल्कुल खाली समतल जमीन पर बनी है। इसके पहले वहां पर न कोई ढांचा था, न ही ढांचे को गिरा कर मस्जिद बनाई गई।

इसके बाद बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने एक बयान जारी कर कहा कि खुदाई करना बेमकसद् प्रयास है। इससे गलत बातें सामने आएगी। विवाद के नए पिटारे खुलेंगे। इस खुदाई में ढांचे के नीचे एक और ढांचा पाया गया है। खुदाई में जो कुछ पाया जाता था और खुदाई की पूरी गतिविधि की वीडियो ग्राफी की जाती थी।

इस खुदाई में ऐसे संकेत मिले, जिससे साफ होता था कि उसके नीचे कोई मंदिर था। विवादित ढांचे के ठीक नीचे एक विशालकाय मंदिर के शिखर का अवशेष मिला। इसे दसवीं शताब्दी का बताया गया। टूटी-फूटी मूर्तियां मिलीं, कमल मिला। जल प्रवाह का रास्ता मिला, जो मंदिरों में बनाया जाता है।

खुदाई में गरबा मंडप, अर्ध मंडप मंदिरों को भग्नावशेष मिले। यह खुदाई बाबरी मस्जिद के समर्थको के लिए एक गहरे धक्के की तरह थी। 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस सुधीर अग्रवाल जस्टिस एसयू खान और जस्टिस डीवी शर्मा की बेंच ने अपना फैसला सुनाया।

इस फैसले में हाई कोर्ट ने 2.77 एकड़ विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्से में बांट दिया। इसमें वो जगह, जहां पर रामलला की मूर्ति स्थापित थी, हिंदुओं को सौंप दी गई। इसके साथ ही राम चबूतरा और सीता रसोई वाला हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को और तीसरा बचा हुआ हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को सौंप दिया गया। इस फैसले को हिंदुओं के पक्ष में देखा गया।

इसके बाद बाबरी मस्जिद कमेटी ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन इस सबके बीच 2005 में एक बड़ी घटना भी हुई। मुस्लिम उग्रवादियों ने विवादित स्थल पर हमला किया और राम जन्म भूमि में घुसने का प्रयास किया। इस दौरान पांचों उग्रवादी मारे गए।

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई लगातार चलती रही और पहले चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और फिर उनके रिटायर होने के बाद मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में इस मामले में सुनवाई हुई। इस मामले की जटिलता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से विवाद को आपस में हल करने को कहा, लेकिन इससे भी कोई नतीजा नहीं निकला। फिर सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय लिया कि इस मामले पर हर दिन सुनवाई की जाएगी और 41 दिनों तक लगातार सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर 2019 को अपना फैसला सुनाया।

इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने विवादित इमारत को राम जन्मभूमि माना और वह स्थल रामलला विराजमान को दे दिया। इस तरह जन्म स्थान विवाद का अंत हो गया। न्यायालय ने निर्देश दिया की विवादित परिसर में सरकार का कब्जा होगा और मस्जिद के लिए अयोध्या में किसी दूसरी जगह पर 5 एकड़ जमीन दी जाएगी।

इस फैसले के बाद अयोध्या में राम मंदिर बन रहा है और इसके साथ ही सरकार ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए जमीन भी दे दी। मस्जिद निर्माण की तैयारी हो रही है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार, मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार ने मंदिर निर्माण तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन किया।

इस ट्रस्ट में 15 सदस्य बनाए गए थे। यह अपनी तरह का सबसे लंबा चलने वाला विवाद है और उससे ही महत्वपूर्ण बात यह है की लगभग 500 साल बाद इस स्थान पर मंदिर निर्माण हो रहा है, जहां पर मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने की बात कही गई है।

Brijesh Shukla

Brijesh Shukla

First Published: Jan 19, 2024 4:47 PM

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