Ram Mandir: राम रथ लेकर जाने वाले लाल कृष्ण आडवाणी बिहार में हुए थे गिरफ्तार, जानिए क्या है पूरा मामला
Ram Mandir: राम भव्य मंदिर के भव्य उद्घाटन का समय आ गया है। एक दौर था जब बीजेपी के लाल कृष्ण आडवाणी रथ यात्रा लेकर निकले थे। उन्हें उस समय बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया था। उसके तुरंत बाद भाजपा ने वी. पी. सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था। इसके बाद वी.पी.सिंह सरकार गिर गई और कांग्रेस के सहयोग से चंद्रशेखर प्रधान मंत्री बन गए
Ram Mandir: 23 अक्तूबर, 1990 को भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया था।
Ram Mandir: 23 अक्टूबर 1990 को भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। उसके तुरंत बाद भाजपा ने वी. पी. सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया गया था। भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने समर्थन वापसी का जो पत्र राष्ट्रपति आर.वेकटरमण को लिखा था। वह इस प्रकार है,‘आदरणीय राष्ट्रपति जी, विभिन्न मोर्चों पर सरकार की विफलता जिनकी परिणति राम जन्म भूमि मंदिर के निर्माण को जबरन रोकने में हुई और हमारे अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के मददेनजर भाजपा इस माह की 17 तारीख को पारित अपने प्रस्ताव के अनुसार विश्वनाथ प्रताप सिंह से समर्थन वापस लेती है।-आपका विश्वासी, अटल बिहारी वाजपेयी।’
इसके बाद वी.पी.सिंह सरकार गिर गई और कांग्रेस के सहयोग से चंद्रशेखर प्रधान मंत्री बन गये। बोफोर्स तथा अन्य कई घोटालों को लेकर हुए देशव्यापी असंदोलन की पृष्ठभूमि साल 1989 में वी.पी.सिंह की सरकार बनी थी। पर मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने के वी.पी.सरकार के फैसले के बाद भाजपा ने मंदिर आंदोलन शुरू कर दिया।
आडवाणी से रथ यात्रा रोकने की सिफारिश
भाजपा को लगा था कि इसी मंदिर आंदोलन के जरिए वह हिंदू मतों को अगड़ा -पिछड़ा के आधार पर पूरी तरह बंट जाने से रोक पाएगी। बाद में आडवाणी ने कहा भी था कि यदि मंडल आरक्षण नहीं लागू हुआ होता तो हमारा मंदिर आंदोलन भी नहीं होता। एक अन्य अवसर पर एल.के आडवाणी ने कहा कि यदि उन्हें पता होता कि बाबरी मस्जिद ध्वस्त कर दी जाएगी तो वे सन 1992 में अयोध्या जाते ही नहीं। इससे पहले मंदिर आंदोलन को गरमाने के लिए आडवाणी ने 25 सितंबर, 1990 को सोमनाथ से राम रथ यात्रा शुरू की। राम रथ यात्रा का पहला चरण 14 अक्टूबर को पूरा हुआ। आडवाणी दिल्ली पहुंचे। प्रधान मंत्री वी. पी. सिंह ने 18 अक्टूबर को ज्योति बसु को दिल्ली बुलाया।
बसु ने आडवाणी से बातचीत की और रथ यात्रा स्थगित कर देने का उनसे आग्रह किया। पर आडवाणी ने बसु की सलाह ठुकरा दी। वे 19 अक्टूबर को धनबाद के लिए रवाना हो गये जहां से उन्होंने दूसरा चरण प्रारंभ कर दिया।वे अयोध्या पहुंच कर मंदिर निर्माण का काम 30 अक्टूबर को शुरू करना चाहते थे। रथ यात्रा के दौरान मुख्य मंत्री लालू प्रसाद उसके खिलाफ अभियान में लग गये थे। आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद तो लालू प्रसाद अल्पसंख्यकों के चहेते बन कर उभरे,पर उससे पहले लालू प्रसाद ने एक और दांव खेला था। लालू प्रसाद ने 21 अक्तूबर को पटना के गांधी मैदान में सांप्रदायिकता विरोधी रैली में कहा कि कृष्ण के इतिहास को दबाने के लिए ही आडवाणी राम को सामने ला रहे हैं।
लालू ने अपने खास अंदाज में यह भी कहा कि कुछ यादव लोग आडवाणी जी से मिले थे। उनलोगों ने उनसे इस आशय का सवाल भी किया था। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि यादव लोग इस बात पर भी सोचें। इस तरह आडवाणी राम रथ यात्रा के बहाने लालू प्रसाद अल्पसंख्यक के साथ -साथ अपने यादव वोट बैंक को भी मजबूत बना रहे थे। खैर जो हो,आडवाणी 22 अक्टूबर की शाम पटना पहुंचे। विशेष रूप से तैयार भव्य रथ पर सवार आडवाणी पटना के बाद समस्तीपुर चले गये। पर उनके साथ चल रहा मीडियाकर्मियों का दल पटना के होटल में ही विश्राम करता रहा। उधर 23 अक्टूबर की सुबह ही समस्तीपुर में आडवाणी गिरफ्तार हो गए थे। समस्तीपुर में गिरफ्तारी के लिए अफसरों के जिस दल को पटना से भेजा गया था। उसका नेतृत्व आई.ए.एस.अधिकारी आर.के सिंह कर रहे थे। वे इन दिनों केंद्रीय मंत्री हैं।
एल.के.आडवाणी को राज्य सरकार के हेलीकाॅप्टर से प्रमोद महाजन के साथ मसान जोर स्थित मयूराक्षी सिंचाई परियोजना के निरीक्षण भवन में भेज दिया गया।अन्य गिरफ्तार भाजपा नेताओं को मुजफ्फरपुर जेल भेजा गया। निरीक्षण भवन के कमरा नंबर तीन में आडवाणी और कमरा नंबर चार में महाजन को रखा गया। इस निरीक्षण भवन के आसपास के 15 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को सील कर दिया गया था किसी को इन बंदियों से मिलने की इजाजत नहीं थी। पर एक स्थानीय संवाददाता ने आडवाणी से बात करने में सफलता प्राप्त कर ली।
आडवाणी ने उससे कहा कि शांतिपूर्ण रथयात्रा को रोक कर सरकार ने अच्छा काम नहीं किया है। सरकार लगातार अपने वायदे से हट रही है और तुष्टिकरण की नीति अपना रही है। दुमका के उपायुक्त सुधीर कुमार ने कहा कि राज्य सरकार के निदेशानुसार कड़ी सुरक्षा में आडवाणी को ससम्मान यहां रखा गया है। उनसे किसी को मिलने की इजाजत नहीं है।
दूसरी ओर मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने 23 अक्टूबर को बताया कि सांप्रदायिक सद्भाव बनाये रखने के लिए उनकी रथ यात्रा पर रोक लगाने के अलावा हमारे पास कोई चारा ही नहीं था। इतना ही नहीं,बिहार में हमने राम जन्म भूमि बाबरी मस्जिद विवाद से संबंधित किसी भी तरह के जुलूस पर रोक लगाने का भी आदेश दे दिया है। पूरे राज्य में आज शाम तक तीन सौ लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
स्वाभाविक ही था,आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद वी.पी.सरकार गिर गई। पर बाद में वाजपेयी ने 26 अक्टूबर को एक रहस्योदघाटन किया। उन्होंने दिल्ली में संवाददाताओं से कहा कि उनकी पार्टी और वी.पी.सरकार के बीच यह गुप्त सहमति बनी थी कि आडवाणी अपनी रथ यात्रा पूरी करने के साथ -साथ अयोध्या में कार सेवा भी करेंगे। यह सहमति 20 अक्तूबर को बनी थी और उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री मुलायम सिंह यादव को भी इस बात की जानकारी थी। अटल जी ने कहा कि ‘मुझे पता नहीं कि इस सहमति से वापस जाने की वजह कोई दबाव था या जनता दल के आंतरिक संघर्ष और कलह इसके लिए जिम्मेदार थे।
एक सवाल के जवाब में वाजपेयी ने कहा कि हो सकता है कि प्रधान मंत्री वी.पी.सिंह और मुलायम सिंह यादव के बीच मतभेद के कारण आडवाणी गिरफ्तार किये गये हों। उन्होंने कहा कि चूंकि वी.पी.सरकार पर आये इस संकट के लिए सिर्फ भाजपा को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है इसीलिए इस गुप्त सहमति के बारे में देर से ही सही,पर अब खुलासा किया जा रहा है।
आडवाणी जिस रथ पर सवार होकर बिहार पहुंचे थे। उसके सारथी का नाम था सलीम मक्कानी।आडवाणी को तो गिरफ्तार करके आरामदायक जगह में भेज दिया गया। पर उनके सारथी यानी चालक सलीम को दफा 144 के उलंघन के आरोप में गिरफ्तार करके समस्तीपुर में रखा गया था। मुम्बई के मूल निवासी 26 वर्षीय सलीम ने अपनी गिरफ्तारी के बाद कहा कि रिहा होने के बाद मैं सीधे अयोध्या जाऊंगा। याद रहे कि प्रशासन ने आडवाणी के रथ को भी जब्त कर लिया था।
इससे पहले तत्कालीन प्रधान मंत्री वी.पी.सिंह ने 22 अक्तूबर को राष्ट्र के नाम संदेश में कहा था कि हम सब विश्वासों का आदर करते हैं। पर दो धर्मों के विश्वासों में कहीं टकराव आ जाये तो रास्ता क्या है? रास्ते दो ही हैं। या तो उसका समन्वय किया जाए और आपस में किसी तरह के समझौते का रास्ता निकाला जाए और अगर वह नहीं निकलता है तो फिर कानून का रास्ता है। जोर जबरदस्ती का रास्ता कोई हल का रास्ता नहीं है। बल्कि उसको और उलझाने का रास्ता है।
इसलिए सरकार ने इस मसले पर बहुत स्पष्ट रूप से बहुत पहले ही कहा था कि हम इसको आपसी समझौते से सुलझाने का प्रयास करेंगे। नहीं तो जो संविधान कहता है। जिसकी शपथ लेकर हम सब इन पदों पर हैं। उनका पालन करेंगे। यही हमारा कर्तव्य है और सरकार ने ऐसा ही प्रयास किया। बहुत सारी चीजें अखबारों में नहीं दी जातीं। पर कई संगठनों व धर्म गुरूओं ने प्रयास किया कि रास्ता निकले। पर वे प्रयास कार्य रूप में नहीं आ पायें। कुल मिलाकर आडवाणी की रथ यात्रा को इसी रूप में याद किया जा सकता है कि मंडल आंदोलन की काट के रूप में इसे शुरू किया गया था।
बाद में बाबरी मस्जिद के ध्वस्त हो जाने के कारण देश की सांप्रदायिक हालात बिगड़े।इस रथ यात्रा से कुछ जातीय व सांप्रदायिक अतिवादीं नेताओं व दलों की देश में बन आई।उन दलों व नेताओं ने अपने- अपने वोट बैंक बना कर जनता की मौलिक आार्थिक समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया। क्योंकि वैसे जातीय व सांप्रदायिक घोड़ों पर सवार होकर सत्ता का रथ चलाने वाले समझने लगे थे कि हम कुछ भी अनर्थ करें। खास संप्रदाय व जाति के मतदाता हमें झेलते ही रहेंगे।