Atal Bihari Vajpayee: जब एक ही कॉलेज, एक ही क्लास में अटल बिहारी और उनके पिता ने साथ की पढ़ाई, बड़ा ही दिलचस्प किस्सा

Atal Bihari Vajpayee Birthday Special: 1945 में, जब 21 साल के अटल बिहारी वाजपेयी ने कानून की पढ़ाई के लिए कानपुर के एक कॉलेज में दाखिला लिया, तो उनके एक सहपाठी थे, जो शिक्षक के रूप में अपनी 30 साल की सेवा दे चुके थे और बहुत पहले ही रिटायर भी हो चुके थे। वह कोई और नहीं बल्कि अटल के पिता थे। पंडित कृष्णबिहारीलाल वाजपेई, जब DAV कॉलेज, कानपुर में वाजपेई के सहपाठी बने, तब उनकी उम्र 50 साल से ज्यादा थी

अपडेटेड Dec 20, 2023 पर 8:26 PM
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Atal Bihari Vajpayee: जब एक ही कॉलेज, एक ही क्लास में अटल बिहारी और उनके पिता ने साथ की पढ़ाई (FILE PHOTO)

Atal Bihari Vajpayee Birthday Special: 25 दिसंबर 2023 को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) की 99वीं जन्म जयंती है। इस दिन को भारत में बड़ा दिन भी कहा जाता है और इसी दिन दुनियाभर में क्रिसमस (Christmas) का त्योहार भी मनाया जाता है। अपनी एक खास सीरीज में Moneycontrol Hindi आपके लिए ले कर आया है, अटल बिहारी के जीवन से जुड़े कुछ अनछुए और अनसुने किस्सों को लेकर। इस सीरीज में हम आपको उनके वाजपेयी की जन्म जयंती के दिन तक हर रोज नई कहानी लेकर आएंगे। इससे पहले लेख में हमने आपको बताया कि कैसे युवा अटल भारत छोड़ो आंदोलन के जरिए राजनीति में कदम रखते हैं और 23 दिन के लिए जेल जाते हैं।

इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए आज हम आपको बताएंगे, जब पिता और पुत्र एक साथ एक ही कॉलेज में पढ़े। जी हां, ये कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन की एक सच्ची घटना है।

1945 में, जब 21 साल के अटल बिहारी वाजपेयी ने कानून की पढ़ाई के लिए कानपुर के एक कॉलेज में दाखिला लिया, तो उनके एक सहपाठी थे, जो शिक्षक के रूप में अपनी 30 साल की सेवा दे चुके थे और बहुत पहले ही रिटायर भी हो चुके थे।


वह कोई और नहीं बल्कि अटल के पिता थे। पंडित कृष्णबिहारीलाल वाजपेई, जब DAV कॉलेज, कानपुर में वाजपेई के सहपाठी बने, तब उनकी उम्र 50 साल से ज्यादा थी।

वाजपेयी ने खुद लिखा पूरा किस्सा

वाजपेयी के प्रधान मंत्री बनने के बाद, उनके अल्मा मेटर ने 2002-03 में कॉलेज पत्रिका में उनका एक लेख छापा। इस लेख में पिता और पुत्र के बारे में काई सारी बातें सामने आईं।

वाजपेयी ने लेख में लिखा, ''क्या आपने कभी ऐसा कॉलेज देखा या सुना है, जहां पिता और पुत्र दोनों एक साथ पढ़ते हों और वो भी एक ही कक्षा में।''

उन्होंने लिखा, “अगर नहीं, तो कानपुर के DAV कॉलेज से जुड़ी आपकी जानकारी अधूरी ही मानी जाएगी। यह एक ऐसा कॉलेज था, जिसने न केवल पिता और पुत्र को एक साथ पढ़ते देखा, बल्कि इसके लिए एक नाटकीय मंच भी तैयार किया।”

कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल अमित कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री और उनके पिता एक ही सेक्शन से कानून की पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन आखिरकार उन्होंने अपना सेक्शन बदल लिया था।

वाजपेयी ने लिखा, “जब भी मेरे पिता को कक्षा के लिए देर हो जाती थी, प्रोफेसर मजाक में पूछते थे, 'बताओ तुम्हारे पिता कहां गायब हो गए हैं?' और जब मुझे देर हो जाती थी, तो उनसे पूछा जाता था कि 'आपका बेटा क्यों गायब है?"

कैसे अटल और उनके पिता बने सहपाठी?

लेख में, वाजपेयी ने ये भी खुलासा किया कि कैसे वे और उनके पिता सहपाठी बने। वे बताते हैं, "ये स्थिति हम दोनों के लिए एक समस्या खड़ी कर रही थी, और ये निर्णय लिया गया कि मेरे पिता एक सेक्शन में रहेंगे, जबकि मैं दूसरे सेक्शन में चला जाऊंगा।"

वाजपेयी याद करते हैं, "यह 1945-46 था। मैंने विक्टोरिया कॉलेज, ग्वालियर से B.A. किया था और भविष्य को लेकर चिंतित था...मेरे पिता सरकारी सेवा से रिटायर हो चुके थे। मेरी दो बहनों की शादी की उम्र हो रही थी। दहेज ने एक अभिशाप का रूप धारण कर लिया था। अब ऐसे में, मैं पोस्ट-ग्रेजुएशन के लिए संसाधनों कहां से करता?"

इसमें आगे बताया गया कि... लेकिन जब सभी दरवाजे बंद लग रहे थे, तो ग्वालियर महाराजा श्रीमंत जीवाजी राव सिंधिया ने उन्हें 75 रुपए की मासिक छात्रवृत्ति की पेशकश की। क्योंकि जीवाजी राव सिंधिया वाजपेयी को एक छात्र के रूप में अच्छी तरह से जानते थे।

वे याद करते हैं “पिता के चेहरे पर तनाव की झुर्रियां धीरे-धीरे गायब होने लगीं। परिवार ने राहत की सांस ली और मैंने भी भविष्य के सुखद सपनों में डुबकी लगा ली।”

ग्वालियर रियासत से स्कॉलरशिप मिलने के बाद, ज्यादातर छात्र कानपुर के DAV कॉलेज का रुख करते हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें भी कानपुर जाने के लिए कहा गया था। अटल बताते हैं, "मेरे बड़े भाई प्रेम बिहारी वाजपेयी पहले से ही वहां से कानून की पढ़ाई कर रहे थे।"

उन्होंने लिखा, "इसी समय एक असामान्य घटना घटी। अचानक, मेरे पिता ने फैसला किया कि वह भी उच्च शिक्षा हासिल करेंगे। उनके इस फैसले ने हम सभी को आश्चर्य में डाल दिया था। 30 सालों तक शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान देने के बाद वे रिटायर हो गये थे। जब उन्होंने देखा कि मैं MA के लिए और कानून की पढ़ाई करने के लिए कानपुर जा रहा हूं, तो उन्होंने फैसला किया कि वह मेरे साथ कानपुर जाएंगे और कानून की पढ़ाई करेंगे।"

वाजपेयी याद करते हैं, "उनकी उम्र 50 से ऊपर थी। सफेद बाल और एक छड़ी के साथ, जब मेरे पिता प्रिंसिपल (कालका प्रसाद भटनागर) के कार्यालय पहुंचे, तो श्री भटनागर ने सोचा कि बुजुर्ग सज्जन प्रोफेसर के पद की तलाश में या किसी को दाखिला दिलाने के लिए आए होंगे।"

“लेकिन जब श्री भटनागर को पता चला कि बुजुर्ग सज्जन खुद का एडमिशन कराने आए हैं, तो वह अपनी कुर्सी से उछल पड़े और कहने लगे कि आपने तो कमाल कर दिया।”

पूर्व प्रधान मंत्री ने लिखा, “जल्द ही, यह खबर पूरे कॉलेज में फैल गई। हॉस्टल में, जहां पिता और पुत्र एक साथ रहते थे, छात्रों की भीड़ हमें देखने के लिए उमड़ पड़ती थी। उन्होंने कॉलेज में दो साल बिताए।"

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"मुझे आज भी वो रामायण मंडली याद है, जिसका आयोजन पुरूषोत्तम प्रसाद मिश्र ने किया था। मंडली हर हफ्ते रामायण का पाठ करती थी और हॉस्टल पहुंचते ही मेरे पिता को भी उसमें शामिल कर लिया जाता था।"

वाजपेयी ने लिखा, "मुझे आज भी स्वतंत्रता दिवस का जश्न याद है। ये पीड़ा और परमानंद का एक अजीब संयोग था। हम हर्षित थे क्योंकि 1,000 सालों का विदेशी शासन खत्म हो गया था, और मातृभूमि के बंटवारे के कारण व्यथित थे। उस दिन आगरा यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति दीवानचंद आए थे। उन्होंने मेरी वक्तृत्व कला के लिए अपनी जेब से एक छोटा सा इनाम दिया।" उन्होंने कहा कि राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष शांति नारायण वर्मा थे।

उन्होंने लिखा, “सभी छात्र उनका बहुत सम्मान करते थे, लेकिन उनसे दूरी भी बनाए रखते थे। उनके विपरीत प्रोफेसर प्रधान और प्रोफेसर पांडे थे, जो छात्रों के प्रति बहुत स्नेही थे और छात्रों को अपनी समस्याएं लेकर उनके पास आने में कोई झिझक नहीं होती थी।"

उन्होंने ये भी बताया कि उन दिनों लाइब्रेरी में किताबों की कमी थी, लेकिन शिक्षक हमेशा छात्रों की मदद के लिए उत्सुक रहते थे।

वाजपेयी लिखते हैं, “मुझे दुख है कि मुझे कानून की पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी, क्योंकि मुझे कॉलेज छोड़ना पड़ा। आजादी मिलने और देश के विभाजन ने नई परिस्थितियां पैदा कर दी थीं। कई युवाओं ने अपना घर-बार छोड़ दिया, और राष्ट्र-निर्माण की राह पर चल पड़े। पढ़ाई छूट गई, दोस्त बिछड़ गए और नए सवाल खड़े हो गए। फिर भी, DAV कॉलेज में बिताए गए दो साल को भुलाया नहीं जा सकता।"

Shubham Sharma

Shubham Sharma

First Published: Dec 20, 2023 8:26 PM

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