कभी जमाना था जब पड़ोसी भी घर के सदस्य की तरह रहते थे। अब ऐसा जमाना आ गया है कि घर के सदस्य भी पड़ोसी की तरह रहने लगे हैं। जिस भारतीय संस्कृति में बच्चों को बुढ़ापे की लाठी कहा जाता था। वही लाठी बुढ़ापे का सहारा नहीं माता-पिता को तकलीफ पहुंचाने का काम करने लगे हैं। एक ऐसी ही घटना बिहार के समस्तीपुर में सामने आई है। 88 साल के बूढ़े रामानंद शर्मा के तीन बेटे हैं। लेकिन सभी पिता से मुंह मोड़ चुके हैं। ऐसे में अब इस उम्र में 88 साल के बूढ़े पिता को अपनी जिंदगी गुजारने के लिए सड़क पर चाय बेचकर काटनी पड़ रही है।
रामानंद सड़क किनारे एक रैन बसेरे में बैठकर लोगों को चाय पिलाते हैं। वह अस्पताल के मरीजों को भी गरमा-गरम चाय पिलाते हैं। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी बेटों के लिए गुजार दी। आज इस हालात में बेटे ही पिता से दूर हो चुके हैं।
बुढ़ापे में बेटों ने पिता का छोड़ा साथ
लोकल 18 से बातचीत करते हुए रामानंद शर्मा ने कहा कि उन्होंने अपने बच्चों को पाल पोसकर बड़ा किया है। इसके बाद पोता-पोती को भी पाला पोसा। लेकिन जब बुढ़ापा आया तो बच्चों ने दूरी बना ली। उन्होंने बताया कि उनके बेटे उनकी देखभाल नहीं करते हैं। वहीं सरकार की ओर से वृद्धावस्था पेंशन भी नहीं मिल रही है। लिहाजा आर्थिक हालत बेहद खस्ता है। ऐसे में जीवन गुजारने के लिए सड़क पर चाय बेचनी पड़ रही है। रामानंद ने बताया कि मेरे तीन बेटे हैं। लेकिन वे मेरे काम के नहीं हैं। वो लोग मेरी देखभाल नहीं करते हैं। मुझे पैसे भी नहीं देते हैं। मैं सड़क के किनारे आज चाय बेचने के लिए मजबूर हो गया हूं।
रामानंद 3 साल से बेच रहे हैं चाय
रामानंद ने बताया कि उनका बेटा फर्नीचर का काम करता है, जो कि बाहर है। वहीं दो बेटे गांव में रहकर मजदूरी करते हैं। उन्होंने अपने पोता-पोतियों का पालन पोषण किया है। रोजाना 100-150 रुपये की आमदनी होती है। उसी खाने पीने दवाओं का काम चल रहा है। 12 साल से वृद्धावस्था पेंशन भी नहीं मिली है।