Kolkata Doctor Rape-Murder Case: केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एंड अस्पताल में महिला डॉक्टर के बलात्कार एवं हत्या के आरोपी संजय रॉय का पॉलीग्राफ टेस्ट कराने की अनुमति मिल गई है। इस घटनाक्रम के कारण कलकत्ता हाई कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 29 अगस्त तक टाल दी है। माना जा रहा है कि आरोपी के पॉलीग्राफ टेस्ट से इस मामले में कई अहम राज खुलेंगे। पॉलीग्राफी टेस्ट कराने का निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार और कोलकाता पुलिस को जमकर फटकार लगाई है।
एक अधिकारी ने पीटीआई से कहा, 'अदालत ने हमें संजय रॉय का पॉलीग्राफ टेस्ट (polygraph test) कराने की अनुमति दे दी है। हमने टेस्ट के लिए अभी कोई तारीख तय नहीं की है। लेकिन अभी भी इससे जुड़ी कुछ प्रक्रियाएं बाकी हैं।" कोलकाता पुलिस के सिविक वालंटियर रॉय को इस सरकारी अस्पताल के सेमिनार हॉल में पोस्टग्रेजुएट ट्रेनी डॉक्टर का शव मिलने के बाद 9 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था।
अदालत ने रॉय को 14 दिनों की पुलिस हिरासत में भेज दिया था। हालांकि, कलकत्ता हाई कोर्ट ने 14 अगस्त को सीबीआई को कोलकाता पुलिस से इस मामले की जांच अपने हाथ में लेने का आदेश दिया था। 33 साल के रॉय पर आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में 31 वर्षीय दूसरे वर्ष के ट्रेनी डॉक्टर के खिलाफ अपराध करने का आरोप है।
पॉलीग्राफ टेस्ट को लाई डिटेक्टर टेस्ट (lie detector test) भी कहा जाता है। यह टेस्ट एक मशीन का उपयोग करके किया जाता है जो किसी व्यक्ति के शारीरिक प्रतिक्रियाओं को मापता है। पॉलीग्राफ मशीन को झूठ पकड़ने वाली मशीन भी कह सकते हैं। इसमें अलग-अलग उपकरण लगे होते हैं। इन उपकरणों को आरोपी के हाथ और सीने से कनेक्ट किया जाता है। जब आरोपी से सवाल पूछे जाते हैं तो ये उपकरण उसकी धड़कन, ब्लड प्रेशर और सांस लेने की गति को मापते हैं। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के अनुसार, टेस्ट का उद्देश्य आमतौर पर यह साबित करना होता है कि किसी व्यक्ति ने अपराध किया है या नहीं। रिपोर्टों के अनुसार, इस तरह का पहला टेस्ट 19वीं शताब्दी में इतालवी अपराध विज्ञानी सेसारे लोम्ब्रोसो द्वारा किया गया था।
यह मशीन विभिन्न शारीरिक प्रतिक्रियाओं की निगरानी करती है। इस टेस्ट के दौरान कार्डियो-कफ या संवेदनशील इलेक्ट्रोड जैसे उपकरण व्यक्ति से जुड़े होते हैं। इस टेस्ट के जरिए यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि व्यक्ति सच बोल रहा है या धोखा दे रहा है। पॉलीग्राफ टेस्ट जांच में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसका उपयोग रॉय के अलग-अलग बयानों को सत्यापित करने के लिए किया जा सकता है।
यदि रॉय के जवाबों से पता चलता है कि वह झूठ बोल रहा है, तो कोलकाता पुलिस मामले के अन्य पहलुओं पर ध्यान केंद्रित कर सकती है या पूछताछ की अतिरिक्त लाइनें अपना सकती है। हालांकि, पॉलीग्राफ टेस्ट के रिजल्ट हमेशा अदालत में स्वीकार्य नहीं होते हैं। फिर भी वे जांचकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान कर सकते हैं। या एजेंसी को उन्हें एक दिशा दे सकते हैं।