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Indian Railways: ट्रेन के पटरी से उतरने पर ड्राइवर फोड़ते हैं पटाखे, आखिर रेलवे ने ऐसा नियम क्यों बनाया?

Indian Railways: हाल ही में झारखंड में एक बड़ा रेल हादसा हो गया था। इसमें मालगाड़ी के वैगन पटरी से उतर गए। इसके बाद सामने आ रही है पैसेंजर गाड़ी वैगनों से टकरा गई। फिर पैसेंजर गाड़ी भी पटरी से उतर गई। ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर इस तरह के मामलों में सबसे पहले लोको पायलट क्या करते हैं

अपडेटेड Jul 31, 2024 पर 3:16 PM
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Indian Railways: अगर हादसा रात में होता है तो लोकोपायलट को सबसे अपने ट्रेन की फ्लैशर लाइट ऑन करना होता है।

देश में रोजाना करोड़ों यात्री ट्रेनों में सफर करते हैं। यात्रियों को सफर करते समय सुरक्षा के लिए रेलवे की ओर से पूरी तरह ध्यान दिय जाता है। किसी बी तरह की अनहोनी से बचने की पूरी कोशिश की जाती है। इस बीच हाल ही में झारखंड में एक रेल हादसा हो गया था। पटरी से ट्रेन उतरने के कारण यह हादसा हुआ। ऐसे में सवाल ये उठता है कि अगर हादसे में लोको पायलट यानी ट्रेन के ड्राइवर सुरक्षित रहते हैं तो सबसे पहले कौन सा काम करते हैं? आमतौर पर बहुत से लोग इस सवाल का जवाब नहीं जानते होंगे।

दरअसल, रेलवे के नियमों के मुताबिक, जब कोई सवारी गाड़ी ट्रैक से उतरती है तो उसके डिब्बे आसपास के ट्रैक पर बिखर जाते हैं। ऐसी स्थिति में अगर उस ट्रेन के लोकोपायलट और गार्ड और गार्ड सुरक्षित है तो उनके लिए कुछ नियम बनाए गए हैं। अगर हादसा रात में हुआ तो लोको पायलट को सबसे पहले ट्रेन की हेडलाइट ऑफ करनी होती है। इसके बाद फ्लैशर लाइट ऑन करना होता है।

लोकोपायलट को फोड़ना होता है पटाखे


फ्लैशर लाइट हल्के पीले रंग की होती है। इस लाइट का मतलब होता है कि सामने वाली ट्रेन को इमरजेंसी लगाकर अपनी ट्रेन को रोकना है। वहीं इसके बाद लोको पायलट और असिस्‍टेंट लोको पायलट में कोई एक दूसरे ट्रैक पर 800 या 1000 मीटर दूर (करीब 12-14 पिलर) आगे भागकर ट्रैक पर पटाखे ( डेटोनेटर) लगाते हैं। यह एक तरह का साउंड सिग्‍लन होता है। पटाखे की आवाज का मतलब कोई ट्रेन रुकवाना चाह रहा है। ऐसे में लोकोपायलट को फौरन इमजरेंसी ब्रेक लगाना होता है। इसके साथ ही ला सिग्नल भी दिखाना होता है। वहीं लोको पायलट के पास वॉकीटॉकी भी होता है। जिसके जरिए वो अपना संदेश आगे भेज सकता है।

कैसे पटरी से उतर जाती है ट्रेन?

अब आप सोच रहे होंगे कि लोगो पायलट को ट्रेन से जुड़े निर्देश कौन देता है? इस प्रश्न का जवाब ये है कि लोको पायलट को ट्रैक बदलने के निर्देश रेलवे स्टेशन के कंट्रोल रूम से दिए जाते हैं।

जानिए ट्रैक बदलने का पूरा नियम

दो पटरियों के बीच एक स्विच होता है। स स्विच की मदद से पटरियां आपस में जुड़ी होती हैं। अगर ट्रेन का ट्रैक बदलना होता है तो लोको पायलट को कंट्रोल रूम से निर्देश दिया जाता है। इसके बाद दो पटरियों के बीच लगे स्विच ट्रेन की मूवमेंट को राइट या फिर लेफ्ट की तरफ मोड़ते हैं। जिसके बाद ट्रेन का ट्रैक बदल जाता है। फिर इसके बाद पटरियां बदल जाती हैं। हर रेलवे कंट्रोल रूम में एक डिस्प्ले लगा होता है। जिस पर दिखाई देता है कि कौन सा ट्रैक खाली है किस ट्रैक पर ट्रेन चल रही है।

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