पिछले कुछ दशकों में नवजात मृत्यु दर में कमी आने के बावजूद भारत में अभी भी हर 36 में से एक बच्चा अपना पहला जन्मदिन नहीं मना पाता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रत्येक 36 में से एक शिशु की उसके जन्म के एक साल के अंदर ही मौत हो जाती है। नवजात मृत्यु दर (Infant Mortality Rate- IMR) को किसी देश या क्षेत्र के संपूर्ण स्वास्थ्य परिदृश्य के एक अहम संकेत के तौर पर व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है।
IMR को किसी क्षेत्र में एक निर्धारित अवधि में प्रति एक हजार जन्म पर नवजात मृत्यु (एक साल से कम आयु में) के रूप में परिभाषित किया जाता है। रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक, आईएमआर का मौजूदा स्तर (वर्ष 2020 के लिए, प्रति 1000 हजार जीवित शिशु पर 28 नवजात की मौत) 1971 (प्रति एक हजार जीवित शिशु पर 129 नवजात मौत) की तुलना में एक-चौथाई कम है।
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, पिछले 10 वर्षों में IMR में करीब 36 फीसदी की कमी देखी गई है। अखिल भारतीय स्तर पर IMR का स्तर पिछले दशक में 44 से गिरकर 28 हो गया। आंकड़ों के मुताबिक, ‘ग्रामीण इलाकों में यह 48 से घटकर 31 हो गया और शहरी इलाकों में यह 29 से घटकर 19 हो गया। इस तरह क्रमश: करीब 35 फीसदी और 34 फीसदी दशकीय गिरावट प्रदर्शित होती है।’
हालांकि, बुलेटिन में कहा गया है कि पिछले दशकों में IMR में गिरावट के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक 36 में एक नवजात की मौत उसके जीवन के पहले साल में ही हो गई। साल 2020 में अधिकतम IMR मध्यप्रदेश (43) में और न्यूनतम मिजोरम (3) में दर्ज की गई।
बुलेटिन में कहा गया है कि पिछले 5 दशकों में अखिल भारतीय स्तर पर जन्म दर में काफी कमी आई है जो 1971 के 36.9 से घटकर 2020 में 19.5 हो गई। ग्रामीण-शहरी क्षेत्रों में इसका अंतर भी इन वर्षों में कम हुआ है। हालांकि, जन्म दर पिछले 5 दशकों में शहरी क्षेत्रों की तुलना में गामीण इलाकों में अधिक बना हुआ है।
पिछले दशक में जन्मदर करीब 11% घटी है। यह 2011 के 21.8 से घटकर 2020 में 19.5 हो गई। ग्रामीण इलाकों में इसमें करीब 9 फीसदी की कमी आई है जो 23.3 से घटकर 21.1 हो गई। वहीं, शहरों इलाकों में यह 17.6 से घटकर 16.1 हो गई, जो करीब 9 फीसदी की गिरावट है।