Maha Kumbh Mela 2025: शाही स्नान से पहले नागा साधु क्यों करते हैं 17 श्रृंगार? जानें महत्व और इतिहास समेत सबकुछ
Maha Kumbh Mela 2025 Naga Sadhu: उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी प्रयागराज में आज यानी 13 जनवरी से पौष पूर्णिमा के साथ 45 दिवसीय महाकुंभ 2025 की शुरुआत हो रही है। 6 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि पर इसका समापन होगा। DIG वैभव कृष्ण ने बताया कि अनुमानित आंकड़ा 50 लाख के करीब है। अब तक इतने लोग स्नान कर चुके होंगे। व्यवस्था ठीक चल रही है। भीड़ नियंत्रण और ट्रैफिक की व्यवस्था ठीक तरीके से हो रही है
Kumbh Mela 2025 Naga Sadhu: महाकुंभ में पहला शाही स्नान मंगलवार 14 जनवरी है
Maha Kumbh Mela 2025 Naga Sadhu: पृथ्वी पर मानवता का सबसे बड़ा समागम महाकुंभ मेला 2025 उत्तर प्रदेश के पवित्र शहर प्रयागराज में पूरे धूमधाम और भव्यता के साथ शुरू हो चुका है। प्रयागराज में पौष पूर्णिमा से एक दिन पहले रविवार (13 जनवरी) को करीब 50 लाख श्रद्धालुओं ने महाकुंभ में गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम में डुबकी लगाई। पुरुष, महिलाएं, बुजुर्ग, बच्चे और बड़ी संख्या में साधु-संत अनुष्ठान करने और डुबकी लगाने के लिए संगम पर एकत्र हुए हैं। सूचना निदेशक शिशिर ने बताया कि शनिवार को भी संगम में स्नान करने के लिए 33 लाख श्रद्धालु आए थे।
उन्होंने बताया कि पिछले दो दिनों (शनिवार और रविवार) में 85 लाख से अधिक लोगों ने संगम में स्नान किया। अधिकारी ने बताया कि इस वर्ष महाकुंभ में 45 करोड़ से अधिक लोगों के पहुंचने की उम्मीद है, जो इसे इतिहास का सबसे बड़ा समागम बना देगा। महाकुंभ में पहला अमृत स्नान (शाही स्नान) मकर संक्रांति के अवसर पर 14 जनवरी को निर्धारित है। इस दौरान सभी अखाड़े निर्धारित क्रम में अपने अनुष्ठानिक स्नान करेंगे।
शाही स्नान से पहले नागा साधु करते हैं 17 श्रृंगार
महाकुंभ में नागा साधु आकर्षण का केंद्र रहते हैं। उनकी जीवन शैली, पहनावा और भक्ति आज भी एक रहस्य है। नागा साधुओं का जीवन, परंपराएं और उनकी साधना आम भक्तों के लिए रहस्यमयी और अद्वितीय होती हैं। नागा तपस्वी होते हैं। वे सांसरिक मोहमाया से बहुत ज्यादा दूर होते हैं। नागा साधु बिल्कुल दुनिया से अलग एक तपस्वी जीवन जीते हैं। ये संसार की सभी चीजों का त्याग कर साधना में लीन रहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि शाही स्नान से पहले नागा साधु 17 श्रृंगार करते हैं। ये 17 श्रृंगार नागा साधुओं के पास अवश्य होते हैं। महाकुंभ के दौरान नागा साधु 14 जनवरी को सबसे पहले शाही स्नान करेंगे। महाकुंभ में नागा अखाड़ों को सबसे पहले उनके धर्म के प्रति निष्ठा और समर्पण के लिए जगह दी जाती है।
क्या है 17 श्रृंगार?
- वे अखंड चिता भस्म भस्म का लेप लगाते हैं जो उन्हें सांसारिक मोह-माया से मुक्त रखता है।
- जटाएं (बालों का जूड़ा) भगवा शिव से जुड़ने का एक मानक है।
- माथे पर भस्म से बनाई जाने वाली तीन रेखाएं त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का प्रतीक होती हैं।
- रुद्राक्ष की मालाएं पहनते हैं। इस वे भगवान शिव का गहना मानकर धारण करते हैं।
- कौपीन (लंगोटी): यह साधुओं की त्यागमय जीवनशैली का प्रमुख प्रतीक है।
- नागा साधु चांदी या लोहे के बने पैरों के कड़े पहनते हैं, जो सासरिक मोह से दूर रहने का प्रतीक है।
- रोली का लेप भी नागा साधु लगाते हैं, जो शाही स्नान के प्रति खुशी का मानक है।
- नागा साधु अंगूठी पहनते हैं, जो नीम के पत्तों या आम के पत्तों की बनी होती है।
- वे फूलों की माला भी ये धारण करते हैं।
- हाथों में चिमटा लेकर नागा साधु स्नान करते हैं। यह सांसरिक मोह के त्याग का मानक है।
- डमरू भगवान शिव का प्रमुख अस्त्र है।
- इसके अलावा वे अपने पास कमंडल रखते हैं, जो भगवान शिव का ही एक अस्त्र है।
- वे काजल भी लगाते हैं।
- त्रिशूल अपने पास रखते हैं।
- कुछ साधु सर्प भी लपेटते हैं।
- वे अपने पास चंवर रखते हैं, जो हाथ का पंखा होता है।