बिहार में पहली बार किसी विदेशी महिला नागरिक को नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत भारतीय नागरिकता मिली है। बिहार के आरा के चित्रटोली रोड में सुमित्रा रानी साहा को 40 साल बाद यह नागरिकता मिली है। उन्हें भारतीय नागरिकता प्रमाणपत्र सौंप दिया गया है। महिला पिछले 40 साल से वीजा लेकर रह रहीं थीं। महिला पिछले 4 दशक से नागरिकता के लिए कभी थाने तो कभी वीजा के लिए एंबेसी के चक्कर लगा रही थी। लेकिन अब उन्हें सफलता मिल गई है। इस दौरान महिला को कई बार धमकियां भी मिली। लेकिन महिला ने हिम्मत नहीं हारी। महिला को पुलिस की सख्ती का सामना भी करना पड़ा
सुमित्रा साहा को नागरिकता नियम, 2009 के 11 K के उपनियम (1) और नियम 13 K के तहत राज्य स्तरीय सशक्त समिति की नागरिक निबंधन के तहत नागरिकता मिली है। भारत की नागरिकता मिलने की खुशी में यह परिवार इतना खुश है कि दो दिन से खाना नहीं खाया है।
सुमित्रा ने पीएम मोदी को दिया धन्यवाद
भारतीय विदेश मंत्रालय, सीबीआई, भारतीय डाक विभाग, पासपोर्ट विभाग, बिहार सरकार और सीआईडी की जांच के बाद अब सुमित्रा रानी साहा को भारतीय नागरिक घोषित कर दिया गया है। साहा साल 1985 में बांग्लादेश से भारत आईं थी। सुमित्रा को भारतीय नागरिक बनने में 39 साल तक कठिन प्रयास करना पड़ा। उनकी शादी साल 1985 में हुई थी। इसके बाद में वह भोजपुर जिला आई थी। अभी इनकी उम्र 60 साल है। यहां उनका अपना परिवार है। इन्हें भारतीय नागरिकता हासिल करने के लिए कई बार अपनी बेटी के साथ कार्यालयों का चक्कर काटती रहीं। उनका पासपोर्ट बांग्लादेश का था। भारतीय नागरिकता मिलने पर सुमित्रा ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवद दिया।
1985 में भारत आईं सुमित्रा
साहा ने बताया कि जब वो पांच साल की थी तब अपनी बुआ के घर बांग्लादेश गई थी। उस समय बांग्लादेश का विभाजन नहीं हुआ था। उसी दौरान सुमित्रा अपनी बुआ के घर गई। जहां उन्होंने बुआ के घर रहकर पढ़ाई पूरी की। फिर 1985 में भारत आ गईं। सुमित्रा 1985 के बाद कभी बांग्लादेश लौट कर नहीं र्गइं। लेकिन उनको भारत में ही वीजा लेकर रहना होता था, क्योंकि तब तक बांग्लादेश का विभाजन हो चुका था।
साल 1970 में बांग्लादेश गईं थी सुमित्रा
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सुमित्रा के पिता मदन गोपाल चौधरी को दो बेटी सुमित्रा रानी साहा, कृष्णा रानी साहा और दो बेटे विजय प्रसाद, नरेश प्रसाद थे। छह लोगों का खर्च मदन गोपाल नहीं उठा पा रहे थे। इसी बीच मदन गोपाल चौधरी की तबियत भी खराब हो गई। इस वजह से सुमित्रा अपनी बुआ के घर 1970 में चली गई। उस समय वो महज पांच साल की थी। जिसके बाद 16 दिसंबर 1971 में बांग्लादेश का विभाजन हो गया। फिर सुमित्रा 15 साल बाद जनवरी 1985 को भारत लौट आईं। उसके बाद कभी बांग्लादेश नहीं गईं।
सुमित्रा के पति की कैंसर से मौत
सुमित्रा रानी साहा ने बताया कि जब वह भारत लौटी तो उनकी उम्र 20 साल थी। भारत लौटने के बाद वो कटिहार में अपने पिता के पास गई। फिर 10 मार्च 1985 को आरा शहर के चित्र टोली रोड में उनकी शादी परमेश्वर प्रसाद से हुई। उसके बाद से ही सुमित्रा आरा में अपने परिवार के साथ रहने लगी। आरा में ही पति होम अप्लायंस की दुकान चलाते थे। सुमित्रा की तीन बेटियां प्रियंका प्रसाद, प्रियदर्शनी और ऐश्वर्या हैं। साल 2010 में बैक बोन कैंसर की वजह से पति परमेश्वर प्रसाद की मौत हो गई।