सिंघु बॉर्डर पर चल रहे किसानों के आंदोलन से शुक्रवार सुबह एक बेहद ही दिल दहला देने वाली घटना सामने आई, जहां धरना स्थल पर एक शव उलटे खड़े पुलिस बैरिकेड से बंधा हुआ मिला। साथ ही उसका उल्टा हाथ भी कटा हुआ था, जिसे शव के साथ ही लटकाया हुआ था और उसका टखना और पैर टूटा हुआ था। दिन बढ़ते-बढ़ते ये खबर आग की तरह फैल गई। अब जाकर सामने आया है कि इस हत्या का आरोप निहंग सिखों के एक समूह पर है। "गुरु की फौज" कहे जाने वाले निहंग सिख, जिनके कभी बहादुरी की किस्से सुनाए जाते थे, वह इन दिनों विवादों के कारण चर्चा में हैं।
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो और फुटेज में निहंग सिखों का एक समूह इस हत्या की जिम्मेदारी भी ले रहा है। खुद संयुक्त किसान मोर्चा ने भी ये बात मानी है कि निहंग सिखों के एक समूह ने इसकी जिम्मेदारी ली है। अब सवाल ये उठता है कि सिख समुदाय की इतनी बहादुर फौज, अब इतने विवादों और गलत कामों की वजह से चर्चा में क्यों है? इसके लिए एक बार अतीत पर भी नजर डालनी होगी।
कौन है निहंग?
निहंग सिख पुराने सिख योद्धाओं से निकला एक समूह है। जो ज्यादातर नीले कपड़े पहनते हैं, साथ में हमेशा तलवार और भाले जैसे प्राचीन हथियार लेकर चलते हैं। इनकी पगड़ी में अर्धचंद्राकार, दोधारी तलवार वाले बैज होते हैं। ये आम सिखों से एकदम अलग दिखते हैं और अलग ही तरह का जीवन जीते हैं।
सिख इतिहासकार डॉ. बलवंत सिंह ढिल्लों के अनुसार, "फारसी में निहंग शब्द का अर्थ मगरमच्छ, तलवार और कलम है, लेकिन निहंगों की विशेषताएं संस्कृत शब्द निहशंक से ज्यादा उपजी लगती हैं, जिसका अर्थ है निर्भय, निष्कलंक, शुद्ध, लापरवाह और सांसारिक लाभ और आराम को त्यागने वाला।"
ढिल्लों का कहना है कि इस समूह का पता 1699 में गुरु गोबिंद सिंह द्वारा खालसा के निर्माण से लगाया जा सकता है। वह कहते हैं कि निहंग शब्द, गुरु ग्रंथ साहिब के एक भजन में भी आता है, जहां इसे एक निडर व्यक्ति बताया गया है।
ढिल्लों के मुताबिक, "हालांकि कुछ स्रोत ऐसे हैं, जो गुरु गोबिंद सिंह के छोटे बेटे, फतेह सिंह (1699-1705) की उत्पत्ति से निहंगों का संबंध बताते हैं, फतेह सिंह एक बार नीले रंग का चोला और एक डुमाला के साथ नीली पगड़ी (एक पंख बनाने वाले कपड़े का टुकड़ा) पहने हुए गुरु की उपस्थिति में प्रकट हुए थे… अपने बेटे को इतना प्रतापी देखकर गुरु ने कहा कि यह खालसा के बेपरवाह सैनिकों निहंगों की पोशाक होगी।"
निहंग दूसरे सिखों से कैसे अलग थे?
ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्नल जेम्स स्किनर (1778-1841) के अनुसार, खालसा सिखों को दो समूहों में बांटा गया था। एक वो जो लोग नीले रंग की पोशाक पहनते हैं, जिसे गुरु गोबिंद सिंह युद्ध के समय पहनते थे। दूसरे वो, जो अपनी पोशाक के रंग पर किसी भी प्रतिबंध का पालन नहीं करते हैं, हालांकि वे दोनों ही सैनिक हैं।
ढिल्लों कहते हैं, "निहंग खालसा की नियमों का सख्ती से पालन करते हैं। वे किसी सांसारिक स्वामी के प्रति निष्ठा नहीं रखते। केसरी के बजाय वे अपने मंदिरों के ऊपर एक नीला निशान साहिब (झंडा) फहराते हैं।"
निहंग शारदाई या शरबती देघ नाम एक लोकप्रिय शरबत के शौकीन हैं, जिसमें पिसे हुए बादाम, इलायची के बीज, खसखस, काली मिर्च, गुलाब की पंखुड़ियां और खरबूजे के बीज होते हैं। जब इसमें थोड़ी सी भांग मिला दी जाती है, तो उसे सुखनिधान (आराम का खजाना) कहा जाता है। इसमें भांग की ज्यादा मात्रा को शहीदी देग, शहादत के संस्कार के रूप में जाना जाता था।
सिख इतिहास में निहंग की भूमिका
पहले सिख शासन (1710-15) के पतन के बाद जब मुगल गवर्नर सिखों को मार रहे थे और अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह दुर्रानी (1748-65) के हमले के दौरान सिख पंथ की रक्षा करने में निहंगों की अहम भूमिका थी। 1734 में जब खालसा सेना को पांच बटालियनों में बांटा गया था, तब एक निहंग या अकाली बटालियन का नेतृत्व बाबा दीप सिंह शाहिद ने किया था।
निहंगों ने अमृतसर में अकाल बुंगा (जिसे अब अकाल तख्त के नाम से जाना जाता है) में सिखों के धार्मिक मामलों पर नियंत्रण कर लिया। वे खुद को किसी सिख मुखिया के अधीन नहीं मानते थे और इस तरह वे खुद को स्वतंत्र बनाए रखते थे।
अकाल तख्त में, उन्होंने सिखों की भव्य परिषद (सरबत खालसा) का आयोजन किया और प्रस्ताव (गुरमाता) को पारित किया। 1849 में सिख साम्राज्य के पतन के बाद उनका प्रभाव खत्म हो गया, जब पंजाब के ब्रिटिश अधिकारियों ने 1859 में स्वर्ण मंदिर के प्रशासन के लिए एक प्रबंधक (सरबरा) नियुक्त किया।
डॉ. ढिल्लों के अनुसार, "हाल के दिनों में, निहंग प्रमुख, बाबा सांता सिंह, भारत सरकार के कहने पर मुख्यधारा के सिखों से अलग हो गए थे, क्योंकि उन्होंने जून 1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार के दौरान क्षतिग्रस्त हुए अकाल तख्त का पुनर्निर्माण किया था। कुछ निहंगों, अजीत सिंह पूहला ने सिख आतंकवादियों को खत्म करने के लिए पंजाब पुलिस के साथ सहयोग भी किया था।"
निहंग सिखों से जुड़ी कुछ घटनाएं
पिछले साल अप्रैल में, निहंग सिखों के एक समूह ने पटियाला में पुलिसकर्मियों पर हमला किया और पंजाब पुलिस के एक ASI का हाथ काट दिया था। वो भी सिर्फ इतनी सी बात पर कि उसने उन्हें रोक दिया और Covid-19 महामारी लॉकडाउन के दौरान कर्फ्यू पास दिखाने के लिए कहा गया। निहंगों ने अपनी गाड़ी को एक पुलिस बैरिकेड में टक्कर मार दी और धारदार हथियार लेकर वाहन से बाहर आ गए। बाद में, पुलिस ने बलबेरा गांव के एक डेरा परिसर से एक महिला सहित 11 निहंगों को गिरफ्तार किया।
इसी साल जुलाई में, दो निहंग सिखों ने लुधियाना में पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी की एक मूर्ति को आग लगा दी और इस कृत्य की जिम्मेदारी लेते हुए सोशल मीडिया पर एक वीडियो अपलोड किया। बाद में दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया।
निहंगों की वर्तमान स्थिति क्या?
निहंग आज एक छोटे से समुदाय की तरह रहते हैं। लगभग एक दर्जन बैंड, जिनमें से हर एक का नेतृत्व एक जत्थेदार (नेता) कर रहे हैं, अभी भी पारंपरिक व्यवस्था के साथ चल रहे हैं। इनमें प्रमुख हैं बुद्ध दल, तरुना दल और उनके गुट।
पूरे वर्ष के लिए वे अपने-अपने डेरों में रहते हैं, लेकिन आनंदपुर साहिब, दमदमा साहिब तलवंडी साबो और अमृतसर की अपनी वार्षिक तीर्थयात्रा पर निकलते हैं, धार्मिक आयोजनों में भाग लेते हैं और अपने मार्शल कौशल और घुड़सवारी का प्रदर्शन करते हैं। चल रहे किसान आंदोलन में भी, निहंगों के समूह प्रदर्शनकारी किसानों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए सिंघू बॉर्डर गए थे।