Who is Justice Sanjiv Khanna: जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने 10 मई को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लोकसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए एक्साइज पॉलिसी से जुड़े मामले में अंतरिम जमानत दे दी। जस्टिस खन्ना की बात करें तो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के रिटायर होने के बाद अगले चीफ जस्टिस बनने की कतार में वह सबसे आगे हैं। मौजूदा चीफ जस्टिस का कार्यकाल नवंबर 2024 में खत्म हो रहा है। इसके बाद जस्टिस खन्ना 10 नवंबर 2024 से 13 मई 2025 तक सीजेआई के रूप में काम करेंगे। अभी वह सीजेआई के बाद सुप्रीम कोर्ट में सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं।
जस्टिस खन्ना करीब पांच साल पहले जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बने थे। उनकी नियुक्ति पर काफी विवाद हुआ था क्योंकि उम्र और अनुभव में 33 जज उनसे सीनियर थे, फिर भी जस्टिस खन्ना को सुप्रीम कोर्ट में जज बनाया गया। नियुक्त के कुछ ही महीने बाद विवाद ठंडा पड़ गया।
जस्टिस संजीव खन्ना जस्टिस हंसराज खन्ना के संबंधी हैं जिन्होंने आपातकाल के समय सुप्रीम कोर्ट के जज के पद से इस्तीफा दिया था। जस्टिस संजीव खन्ना का जन्म 14 मई 1960 को हुआ था और उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की। 1983 में उन्होंने दिल्ली की जिला अदालत में अपनी प्रैक्टिस शुरू की। बाद में उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट और ट्रिब्यूनल्स में वकालत की। उन्होंने संवैधानिक कानून, डायरेक्ट टैक्स, मध्यस्थता और कॉमर्शियल मामलों, कंपनी कानून, भूमि कानून, पर्यावरण और प्रदूषण कानून और मेडिकल से जुड़ी लापरवाही से जुड़े केस में वकालत की है। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर मौजूद उनकी डिटेल्स के मुताबिक उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में एडीशनल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर और कोर्ट की तरफ से न्याय मित्र के रूप में नियुक्ति पर भी कई आपराधिक मामलों में बहस की थी। उनकी टैक्सेशन में काफी महारत हासिल है और उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के लिए सीनियर स्टैंडिंग काउंसिल के रूप में सात साल तक काम किया।
अप्रैल 2024 में जस्टिस खन्ना ने वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPT) और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) में डाले गए वोटों के क्रॉस-वेरिफिकेशन से जुड़ी याचिका को खारिज कर दिया। उन्होंने अपने फैसले में ईवीएम की पवित्रता और देश के चुनाव आयोग पर भरोसे को लेकर विस्तार से लिखा है। मार्च में उनकी पीठ ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से संबंधित कानून पर रोक लगाने से जुड़ी याचिका को खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा कि इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए रोक लगाना सही नहीं है। हालांकि अदालत ने जल्दबाजी में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए भी सरकार की आलोचना की।
जस्टिस खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने मार्च 2023 में शराब नीति मामले में बीआरएस नेता और तेलंगाना एमएलसी के कविता को जमानत देने से इनकार कर दिया था। उन्होंने कविता से ट्रायल कोर्ट में जमानत के लिए आवेदन करने और सीधे सुप्रीम कोर्ट नहीं आने को कहा था।
जस्टिस खन्ना उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने चुनावी बांड योजना की संवैधानिक वैधता को रद्द कर दिया था। इसके अलावा वह उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को बरकरार रखा था। इन दोनों ही फैसलों में जस्टिस खन्ना ने बहुमत के फैसले पर सहमति व्यक्त की थी। अक्टूबर 2023 में जस्टिस खन्ना की अगुवाई वाली बेंच ने दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को जमानत देने से इनकार कर दिया था।