बिहार और आंध्र प्रदेश को मिलेगा विशेष राज्य का दर्जा? नीतीश और चंद्रबाबू की पुरानी मांग, क्या पूरी करेगी BJP
नायडू की TDP ने लोकसभा चुनाव में 16 सीटें जीतीं और जन सेना पार्टी और BJP के साथ गठबंधन में है। जबकि JDU ने 12 सीटें हासिल कीं और वो भाजपा और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के साथ गठबंधन में है। इन दोनों का ही समर्थन बीजेपी के लिए और भी महत्वपूर्ण है, जिसके पास लोकसभा में केवल 240 सीटें हैं
बिहार और आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नीतीश और चंद्रबाबू की पुरानी मांग, क्या पूरी करेगी BJP
लोकसभा चुनाव में खंडित जनादेश ने केंद्र में सरकार गठन में तेलुगु देशम पार्टी (TDP) प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और जनता दल (यूनाइटेड) के नीतीश कुमार की भूमिका पर सवाल खड़ा कर दिया है। अब ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि दोनों ही नेता अपने-अपने राज्य आंध्र प्रदेश और बिहार के लिए विशेष दर्जा दिए जाने की अपनी पुरानी मांग को फिर से दोहरा सकते हैं। नायडू की TDP ने लोकसभा चुनाव में 16 सीटें जीतीं और जन सेना पार्टी और BJP के साथ गठबंधन में है। जबकि JDU ने 12 सीटें हासिल कीं और वो भाजपा और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के साथ गठबंधन में है। इन दोनों का ही समर्थन बीजेपी के लिए और भी महत्वपूर्ण है, जिसके पास लोकसभा में केवल 240 सीटें हैं।
इस बीच, कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा था कि कांग्रेस सत्ता में आने पर आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य दर्जा देने की गारंटी देगी, जैसा कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वादा किया था।
क्या है विशेष राज्य का दर्जा?
भारत के पांचवें वित्त आयोग ने 1969 में ऐतिहासिक आर्थिक या भौगोलिक नुकसान को झेल रहे राज्यों के तेजी से विकास के लिए उनके के लिए स्पेशल कैटेगरी या विशेष दर्जा देने की शुरुआत की।
किन शर्तों पर मिलता है विशेष राज्य का दर्जा?
राज्य को विशेष दर्जा दिए जाने के लिए इन शर्तों और नियमों पर खरा उतरना जरूरी है। जैसे कि वो राज्यः
- दुर्गम और पहाड़ी वाला इलाके हो
- अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगा हो
- प्रति व्यक्ति आय और नॉन-टैक्स रेवेन्यू काफी कम हो
- इंफ्रास्ट्रक्चर की काफी ज्यादा कमी हो
- जनजातीय आबादी ज्यादा हो, लेकिन आबादी का घनत्व कम हो
14वें वित्त आयोग ने विशेष दर्जे के कॉन्सेप्ट को खत्म कर दिया था, क्योंकि ये सुझाव दिया गया था कि टैक्स रेवेन्यू में बंटवारे को 32% से बढ़ाकर 42% करके राज्यों के संसाधन अंतर को भरा जाना चाहिए।
किन राज्यों को मिला है विशेष दर्जा है?
जब ये मुद्दा पहली बार 1969 में सामने आया, तब राष्ट्रीय विकास परिषद की ओर से फंड आवंटन के गाडगिल फॉर्मूले को मंजूरी दे दी गई, तो असम, जम्मू और कश्मीर और नागालैंड को विशेष दर्जा दिया गया, जिन्हें 90% ग्रांट के रूप में केंद्रीय सहायता और 10% लोन दिया गया।
बाद में, ज्यादा राज्यों को राज्य का दर्जा मिलने पर स्पेशल कैटेगरी का दर्जा दिया गया। इनमें 1970-71 से हिमाचल प्रदेश, 1971-72 में मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा शामिल हैं। 1975-76 में सिक्किम और 1986-87 में अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम और 2001-02 में उत्तराखंड भी आ गया।
फिलहाल देश में 11 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है, जिनमें तेलंगाना भी शामिल है। तेलंगाना को ये दर्जा इसलिए दिया गया क्योंकि ये किसी दूसरे राज्य- आंध्र प्रदेश से अलग होकर बना था, जिससे राज्य की वित्तीय स्थिति पर असर पड़ा था।
विशेष दर्जा मिलने से राज्यों को क्या लाभ मिलते है?
इस स्टेटस के तहत, सरकार केंद्र की योजनाओं में 90% रकम का भुगतान करती है। नॉन-स्पेशल कैटेगरी का दर्जा प्राप्त राज्यों के लिए, केंद्रीय सहायता की गणना 30% ग्रांट और 70% कर्ज पर की गई थी।
विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों के लिए खास महत्व की परियोजनाओं के लिए स्पेशल स्कीम में मदद भी की जाती है। इसके अलावा, खर्च न की गई धनराशि वित्तीय वर्ष के आखिर में वापस नहीं ली जाती है।
विशेष राज्य का दर्जा क्यों मांग रहे हैं बिहार और आंध्र प्रदेश?
2000 में खनिज समृद्ध झारखंड के अलग होने के बाद से नीतीश कुमार (Nitish Kumar) बिहार के लिए विशेष दर्जे की मांग कर रहे थे।
लगभग 54,000 रुपए प्रति व्यक्ति GDP के साथ, बिहार लगातार सबसे गरीब राज्यों में से एक रहा है। सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि राज्य 94 लाख गरीब परिवारों का घर है और विशेष दर्जा देने से सरकार को अगले पांच सालों में कल्याणकारी योजनाओं के लिए जरूरी लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपए जमा करने में मदद मिल जाएगी।
केंद्र की 'मल्टी डायमेंशनल पावर्टी इंडेक्स' (MPI) रिपोर्ट के अनुसार, बिहार को भारत का सबसे गरीब राज्य बताया गया है। अनुमान है कि इसकी लगभग 52% आबादी की अच्छे स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर तक सही पहुंच नहीं है।
भले ही राज्य विशेष कैटेगरी के दर्जे के ज्यादतर मानदंडों पर खरा उतरता है, लेकिन ये पहाड़ी इलाकों और भौगोलिक रूप से दुर्गम इलाकों के मानदंडों को पूरा नहीं करता है।
वहीं आंध्र प्रदेश भी 2014 में अपने विभाजन के बाद हैदराबाद के तेलंगाना का हिस्सा बनने के कारण रेवेन्यू के नुकसान के आधार पर विशेष दर्जा मांग रहा है। क्योंकि हैदराबाद ही अविभाजित आंध्र प्रदेश का डेवलपमेंट सेंटर था।
नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद से नायडू और जगन मोहन रेड्डी ने बार-बार विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग की ताकि, राज्य के वित्तीय संकट को दूर किया जा सके।नायडू 2014-2019 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे, जबिक 2019 से 2024 जगन मोहन ने ये पद संभाला।
नीति आयोग को आंध्र प्रदेश सरकार की तरफ से दी गई प्रजेंटेशन के अनुसार, 14वें वित्त आयोग ने अनुमान लगाया कि 2015-20 की पांच साल के पीरियड के लिए आंध्र प्रदेश के लिए टैक्स बंटवारे के बाद रेवेन्यू घाटा 22,113 करोड़ रुपये होगा, लेकिन हकीकत में ये आंकड़ा 66,362 करोड़ रुपये रहा। विभाजन के समय राज्य का बकाया कर्ज 97,000 करोड़ रुपये था, जो 2018-19 तक 2,58,928 करोड़ रुपए तक पहुंच गया और अब 3.5 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा है।
सरकार का तर्क है कि राज्य को अनुचित तरीके से बांटा गया था, जिसमें उसे लगभग 59% आबादी, कर्ज और देनदारियां और रेवेन्यू का केवल 47% ही विरासत में मिला।
आज आंध्र प्रदेश एक कृषि प्रधान राज्य है। 2015-16 में तेलंगाना का प्रति व्यक्ति राजस्व 14,411 रुपए था, जबकि आंध्र प्रदेश के लिए यह केवल 8,397 रुपए था।
नायडू, नीतीश पहले भी बना चुके हैं दबाव
2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से चंद्रबाबू नायडू (Chandrababu Naidu) विशेष दर्जा देने की मांग कर रहे थे। मार्च 2018 में, नायडू ने केंद्र के उनकी दलीलें सुनने से इनकार करने के बाद, मोदी सरकार में अपने दो मंत्री- पी अशोक गजपति राजू (नागरिक उड्डयन) और वाई सत्यनारायण चौधरी (MoS, विज्ञान और प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान) का इस्तीफा करा दिया। फिर उन्होंने NDA छोड़ दिया और मई 2019 के विधानसभा चुनाव के लिए BJP विरोधी, मोदी विरोधी अभियान शुरू किया।
फरवरी में पिछले विधानसभा सत्र के दौरान, जगन मोहन रेड्डी ने विशेष दर्जे के मुद्दे पर निराशा जताई थी और कहा था कि वो चाहते हैं कि किसी भी पार्टी को लोकसभा में पूर्ण बहुमत न मिले, ताकि राज्य इस दर्जे के लिए मोलभाव कर सके।
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए नीतीश कुमार ने सबसे पहले 2006 में मुद्दा उठाया था, लेकिन बाद की केंद्र सरकारों ने इसे अनसुना कर दिया।
उन्होंने बिहार के बारे में नीति आयोग के आकलन को स्वीकार किया, लेकिन राज्य के पिछड़ेपन के लिए अपने खुद के कारण बताए, जिसमें अनुपात के बिना ही ज्यादा जनसंख्या का हवाला दिया गया।
विशेष दर्जे से आंध्र प्रदेश और बिहार को क्या फायदा होगा?
विशेष दर्जे का मतलब आंध्र प्रदेश और बिहार को ज्यादा केंद्रीय निधि देना होगा। उदाहरण के लिए, विशेष दर्जा वाले राज्यों को प्रति व्यक्ति ग्रांट प्रति वर्ष 5,573 करोड़ रुपए है, जबकि आंध्र प्रदेश को केवल 3,428 करोड़ रुपए मिलते हैं।
आंध्र प्रदेश सरकारों का मानना है कि कृषि प्रधान राज्य के तेजी से औद्योगीकरण के लिए स्पेशल इंसेंटिंव बेहद जरूरी है और इससे युवाओं के लिए रोजगार के ज्यादा अवसर आएंगे।
ये दर्जा विशेष अस्पतालों, फाइव स्टार होटलों, मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री, IT जैसे हाई वैल्यू सर्विस सेक्टर और हायर एजुकेशन और रिसर्च के प्रमुख संस्थानों में निवेश को भी बढ़ावा देगा।