क्या एक लोकसभा सीट से बन सकते हैं 2 सांसद? भारत में ऐसा भी हो चुका है

Loksabha Election: आजादी के बाद हुए पहले 2 लोकसभा चुनावों के दौरान करीब 20 प्रतिशत सीटों पर एक साथ 2 सांसद चुने जाते थे- एक सामान्य कैटेगरी से और एक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति कैटेगरी से। कुछ सीटों पर तो 3 सासंद भी चुने जाते थे। हालांकि 1961 में यह बहु-सासंद वाली व्यवस्था खत्म हो गई

अपडेटेड Mar 16, 2024 पर 5:10 PM
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एक-से अधिक सांसदों वाली व्यवस्था को 1961 में समाप्त कर दिया गया

भारत का राजनीतिक सिस्टम पहले और भी जटिल था। आजादी के बाद हुए पहले 2 लोकसभा चुनावों के दौरान करीब 20 प्रतिशत सीटों पर जनता एक नहीं, बल्कि 2-2 लोकसभा सांसद चुनती थी। एक सांसद सामान्य कैटेगरी से और दूसरा अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति कैटेगरी से। 1951-52 में देश का पहला आम चुनाव 26 राज्यों के 400 लोकसभा सीटों पर हुआ था। इनमें से 314 लोकसभा सीटों में एक सांसद चुना गए। वहीं बाकी 86 सीटों सामान्य और अनुसूचित जाति वर्ग से दो-दो सांसद चुने गए। पश्चिम बंगाल की एक सीट- नॉर्थ बंगाल में तो तीन सांसद भी चुने गए।

ये एक-से अधिक सांसदों वाली व्यवस्था वंचित वर्गों (दलितों और आदिवासी समुदायों) के लोगों को लोकसभा में प्रतिनिधित्व देने के लिए बनाया गया था। यह पहली बार था कि जब किसी बड़े लोकतंत्रिक देश में वचिंत वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए ऐसा सकारात्म कदम उठाया गया था। बहु-सांसदों वाली निर्वाचन व्यवस्था, 1951-52 और 1957 में हुए पहले दो लोकसभा चुनावों का एक महत्वपूर्ण पहचान थी।

इस व्यवस्था को 1961 में समाप्त कर दिया गया। इसकी जगह अलग-अलग सामान्य और आरक्षित सीटों (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए) की व्यवस्था लाई गई। नीचे दिए टेबल में आप देख सकते हैं कि पहले 2 लोकसभा चुनावों के दौरान देश में कैसे कुछ सीटों पर 2 सांसद चुने जाते थे-

साल संसदीय सीट 1-सांसद वाली सीट 2-सांसदों वाली सीट SC  समुदाय के लिए आरक्षित सीट ST समुदाय के लिए आरक्षित सीट कुल सीट
1951-52 400 306 86 - 8 489
1957 403 296 91 - 16 494
1962 494 385 - 79 30 494


1951 के लोकसभा चुनाव में, 2-सांसदों वाली सबसे अधिक लोकसभा सीट उत्तर प्रदेश (17) में थी। इसके बाद मद्रास (13), बिहार (11) और बॉम्बे (8) का स्थान था। साल 1957 में भाषाई आधार पर राज्यों के नए सिरे से पुनर्गठन के बाद देश में कुल लोकसभा सीटों की संख्या 494 हो गई। वहीं 2-सांसदों वाली सबसे अधिक सीट फिर उत्तर प्रदेश (18) को मिलीं। इसके बाद आंध्र प्रदेश (8), बिहार (8), पश्चिम बंगाल (8), बॉम्बे (8) और मद्रास (7) का स्थान रहा।

पहले लोकसभा चुनाव के दौरान किस राज्य से कितने प्रतिनिधि थे, इसे आप नीचे गिए टेबल में देख सकते हैं-

S. No राज्य संसदीय सीट 1-सांसद वाली सीट 2-सांसदों वाली सीट SC  समुदाय के लिए आरक्षित सीट ST समुदाय के लिए आरक्षित सीट कुल सीट
1. असम 10 8 2 - 8 12
2. बिहार 44 31 11 - 2 55
3. बॉम्बे 37 29 8 - - 45
4. मध्य प्रदेश 23 16 6 - 1 29
5. मद्रास 62 49 13 - - 75
6. ओडिशा 16 9 4 - 3 20
7. पंजाब 15 12 3 - - 18
8. उत्तर प्रदेश 69 52 17 - - 86
9. पश्चिम बंगाल 25 19 6 - - 34
10. हैदराबाद 21 17 4 - - 25
11. मध्य भारत 9 6 2 - 1 11
12. मैसूर 9 7 2 - - 11
13. पटियाला एंड ईस्ट पंजाब स्टेट्स यूनियन 4 3 1 - - 5
14. राजस्थान 18 15 2 - 1 20
15. सौराष्ट्र 6 6 - - - 6
16. त्रावणकोर-कोचिन 11 10 1 - - 12
17. अजमेर 2 2 - - - 2
18. भोपाल 2 2 -- - - 2
19. बिलासपुर 1 1 - - - 1
20. कुर्ग 1 - - - - 1
21. दिल्ली 3 2 1 - - 4
22. हिमाचल प्रदेश 2 1 1 - - 3
23. कच्छ 2 2 - - - 2
24. मणिपुर 2 2 - - - 2
25. त्रिपुरा 2 2 - - - 2
26. विंध्य प्रदेश 4 2 2 - - 6
27. कुल 400 306 86 - 8 489

इसमें कोई हैरानी वाली बात नहीं है कि यह सिस्टम काफी बोझिल, लोगों को भ्रमित करने वाला था। 'टू-मेंबर कंस्टीट्यूएंसी एबॉलिशिन एक्ट 1961' ने इस सिस्टम को खत्म कर दिया। 1962 के लोकसभा चुनाव में पहली बार एक सांसदों वाला अलग-अलग सामान्य और आरक्षित सीटों का सिस्टम अपनाया गया। 1962 में देश में कुल 494 लोकसभा सीटे थीं, जिसमें 385 सामान्य, 79 एससी और 30 एसटी सीटे थीं

543 सीटों वाली मौजूदा लोकसभा, उस समय के मुकाबले से 10 प्रतिशत बड़ी है। इसमें एससी समुदाय के लिए 84 और एसटी समुदाय के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं।

आज की तारीख में बहुत कम लोगों को याद है कि आजादी के बाद पहले 2 चुनावों में यहां एक सीट के लिए दो-दो लोकसभा सांसद चुने जाते थे। फिर भी हम यह जरूर कह सकते हैं दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने अपने शुरुआती सालों में वचिंत वर्ग के लोगों को आवाज देने के लिए कई साहसिक और आकर्षक प्रयोग किए थे।

(नलिन मेहता, मनीकंट्रोल के मैनेजिंग एडिटर और नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज में नॉन-रेजिडेंट सीनियर फेलो हैं। वे "द न्यू बीजेपी: मोदी एंड द मेकिंग ऑफ द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट पॉलिटिकल पार्टी" सहति कई किताबों के लेखक हैं।)"

Nalin Mehta

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