यह सब कुछ 6 अप्रैल को दिए गए राहुल गांधी के चुनावी भाषण से शुरू हुआ, जहां उन्होंने संपत्ति के फिर से बंटवारे का जिक्र किया। उस वक्त शायद वह भावनाओं में बह गए और उन्होंने 'वित्तीय और संस्थागत सर्वे' का वादा कर डाला, ताकि यह पता लगाया जा सके कि किसके पास कितनी संपत्ति है। उन्होंने 'हिंदुस्तान का धन' शब्द का इस्तेमाल किया और यह कांग्रेस के डिजिटल प्लेटफॉर्म पर इसे सुना जा सकता है। राहुल गांधी यहीं नहीं रुके और उन्होंने कहा कि लोगों को उनकी जरूरत के हिसाब से संसाधन दिया जाएगा।
सीधे तौर पर कहें, तो राहुल गांधी ने भारत में संपत्ति के बंटवारे का वामपंथी आइडिया पेश किया, जिसे अब कम्युनिस्ट देश चीन भी छोड़ चुका है। उनके इस भाषण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हमला बोला। हालांकि, इस मामले को प्रधानमंत्री ने 'अल्पसंख्यक' ट्विस्ट दे दिया, जिससे कांग्रेस रक्षात्मक मुद्रा में आ गई। राहुल गांधी ने जहां जाति के साथ-साथ गरीब-अमीर के बीच विभाजन का लाभ उठाने का प्रयास किया, वहीं मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने कांग्रेस के फुल टॉस को सीमा रेखा से बाहर भेज दिया है।
हम आपको बता रहे हैं कि बीजेपी ने किस तरह से कांग्रेस को अपने फंदे में फंसा लिया
UPA के दौरान गैर-बराबरी ज्यादा थी
राहुल गांधी लोगों को उनका 'अधिकार' (पैसा) देकर जिस गैर-बराबरी को दूर करना चाहते हैं, उसकी स्थिति यूपीए के शासन में ज्यादा खराब थी। हालांकि, कोरोना से में पहले तक मोदी सरकार में इस स्थिति में सुधार हुआ था। आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य शमिका रवि ने पेरिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर टॉमस पिकेटी के आंकड़ों के हवाला देते हुए यह दावा किया था। इसके बाद, बीजेपी ने भी कई मौकों पर भी इस आंकड़े का हवाला दिया था।
मोदी का 'माइनरिटी' ट्विस्ट
मोदी ने सवाल किया कि क्या कांग्रेस मुसलमान समुदाय के बीच संपत्ति का फिर से बंटवारा करेगी। उन्होंने 2006 में मनमोहन सिंह के उस बयान का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है। हालांकि, बीजेपी ने सिंह के बयान के उस हिस्से का हवाला दिया जिसमें 'खास तौर पर मुसलमानों' का इस्तेमाल किया गया था। हालांकि, इस बहस में अल्पसंख्यक का सवाल नहीं था, लेकिन बीजेपी ने सिंह के 2006 के भाषण और कांग्रेस के 2024 के घोषणा पत्र का घालमेल कर दिया, जिसमें अल्पसंख्यकों की उचित हिस्सेदारी की बात कही गई थी।
संपत्ति के बंटवारे को लेकर चल रहे विवाद के बीच इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के चेयरमैन सैम पित्रोदा ने भारत में इनहेरिटेंस टैक्स को फिर से लाने की वकालत की, जिससे कांग्रेस के लिए मामला और जटिल हो गया। उन्होंने न सिर्फ इस तरह के कानून की वकालत की, बल्कि 'संपत्ति का फिर से बंटवारा वाले आइडिया' को भी लोगों के हित में बताया। पित्रोदा का कहना था, ' अमेरिका में इनहेरिटेंस टैक्स है। अगर किसी के पास 10 करोड़ डॉलर की संपत्ति है, तो वह अपने बच्चों को सिर्फ 45 पर्सेंट हिस्सा ही ट्रांसफर कर सकता है। बाकी 55 पर्सेंट हिस्सा सरकार ले लेती है। यह दिलचस्प कानून है। आपको कम से कम आधी संपत्ति लोगों के लिए छोड़नी चाहिए।'
'राजीव गांधी ने खुद के लिए खत्म किया था इनहेरिटेंस टैक्स'
अगर आपको लगता है कि विवादास्पद इनहेरिटेंस टैक्स को लेकर बवाल खत्म हो गया है, तो आप इसको लेकर दोबारा सोचें। बीजेपी कांग्रेस को यह याद दिला रही है कि राजीव गांधी की सरकार ने ही इस टैक्स को खत्म किया था और अब अपने स्वार्थ के लिए फिर से अलग सुर में बोल रही है। मध्य प्रदेश के मुरैना में एक रैली को संबोधित करते हुए मोदी ने आरोप लगाया, 'इनहेरिटेंस टैक्स से जुड़े तथ्य आंखें खोलने वाले हैं। जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मृत्यु हुई, तो उनके बच्चे को उनकी प्रॉपर्टी मिलनी थी। हालांकि, एक नियम था कि इसका प्रॉपर्टी का कुछ हिस्सा सरकार को मिलेगा। प्रॉपर्टी के हिस्से को सरकार से बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इनहेरिटेंस लॉ को खत्म कर दिया।'