इस बार के लोकसभा चुनाव के नतीजे राजनीति में एक बहुत बड़े बदलाव की ओर इशारा करते हैं। इन परिणाम ने भारतीय राजनीति में हुए जातिगत मंथन को उजागर कर दिया है। चुनाव नतीजों ने न केवल SC/ST/OBC/EBC/अल्पसंख्यकों के नए जाति समीकरणों का खुलासा किया है, बल्कि राजनीतिक स्पेक्ट्रम में एक नए दलित-बहुजन समीकरण को भी जन्म दिया है। देश की कुल 543 लोकसभा सीट में से 160 सीट ऐसी हैं, जहां दलित मतदाता का असर ज्यादा हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो, जो दलित बहुल हैं। इस बार दलितों का साथ NDA को नहीं मिला, तभी तो बीजेपी के नेतृत्व वाले इस गठबंधन को दलित बहुल वाली 37 सीटों का नुकसान हुआ और वो 60 सीटों पर जीती।
वहीं अगर के इंडिया गठबंधन की बात करें, तो दलितों का साथ विपक्ष को खूब अच्छे से मिला है। क्योंकि 95 दलित बहुल सीटों पर विपक्ष के गठबंधन की जीत हुई और उसे इस चुनाव में 55 सीटों की बढ़त मिली है।
बड़ी बात ये है कि उत्तर प्रदेश और देशभर में दलितों की सबसे बड़ी नेता मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी का इस बार उनके ही कोर वोटर ने साथ छोड़ दिया और वो ज्यादा से ज्यादा इंडिया गुट की ओर चला गया।
बड़ी बात ये है कि BSP को पूरे देश में महज 2.04 फीसदी वोट मिला। वहीं अगर उत्तर प्रदेश की बात की जाए, तो UP में मायावती ने 2024 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया था। बसपा को 9.39 फीसदी वोट मिले, लेकिन एक भी सीट नहीं निकाल पाई।
इसी के साथ आइए एक नजर डालते हैं, देश की इन दलित बहुल सीटों पर और जानते हैं पिछले कुछ चुनाव में दलितों को रिझाने में किस पार्टी को कितनी कामयाबी मिली है।
2009 में किसे मिली दलित बहुल सीटों पर जीत
शुरुआत करते हैं साल 2009 के लोकसभा चुनाव से, जब देश में किसी भी पार्टी को बहुत नहीं मिला था, लेकिन कांग्रेस के नेतृ्त्व वाले यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायन्स (UPA) की सरकार बनी थी। इस चुनाव में 206 सीटें जीत कर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी थी।
वहीं अगर बात दलित बहुल सीटों की जाए, तो उस चुनाव में इन 160 सीटों में से 54 सीटें कांग्रेस के खाते में गई थीं और इन सीटों पर उसे 29.26% वोट मिला था। इसके बाद दूसरे नंबर पर बीजेपी रही, जिसे 14.04% वोट के साथ सिर्फ 22 सीटें मिलीं।
जबकि सपा को 16 दलित बहुल सीटें मिलीं और 6.57 फीसदी वोट प्रतिशत उसके खाते में गया। बड़ी बात ये है कि खुद को दलितों का हितैशी बताने वाली मायावती की बहुजन समाज पार्टी सिर्फ 14 सीट और 9.36% वोट मिला।
2014 में सत्ता परिवर्तन हुआ और स्वभाविक है नतीजे बीजेपी के पक्ष में ही गए। उस साल इन 160 दलित बहुल सीटों पर बीजेपी का सीट और वोट पर्सेंटेज, दोनों में जबरदस्त उछाल आया।
तब बीजेपी को 76 सीटों पर जीत मिली और इन सीटों पर उसका वोट प्रतिशत 26.82% रहा। इस चुनाव में एक बड़ा बदलाव जो देखने को मिला वो ये है कि इन सीटों की लड़ाई में कांग्रेस दूसरे नंबर से खिसक कर चौथे पर आ गई। सपा और बसपा तो बिल्कुल ही गायब हो गईं।
कांग्रेस को 2014 में सिर्फ 13 दलित बहुल सीटें मिलीं और वोट प्रतिशत 16.46% रहा। जबकि उस बार दूसरे नंबर पर 20 सीटों के साथ ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस रही और उसे 6.95% वोट मिले।
2019 में बीजेपी बढ़ा ग्राफ
इसके बाद अगर पिछले यानि 2019 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डाली जाए, तो बीजेपी का ग्राफ इस बार और भी ऊपर गया और उसे अब तक की सबसे ज्यादा 89 दलित बहुल सीटों पर सफलता मिली। इस बार उसका वोट प्रतिशत 35.96% रहा।
वहीं अगर कांग्रेस की बात करें, तो वो केवल 16.01% वोट के साथ 11 सीटों पर ही सिमट गई। जबकि उससे ज्यादा 13 सीट तमिलनाडु की DMK के खाते में गईं। हालांकि, इन सीटों पर उसका वोट प्रतिशत महज 4.38% रहा।